बच्चों में अल्सरेटिव कोलाइटिस का निदान (Diagnosing ulcerative colitis)
इस समस्या के निदान के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है। हालांकि, डॉक्टर अल्सरेटिव कोलिटिस जैसे लक्षणों के लिए जिम्मेदार अन्य स्वास्थ्य स्थितियों का पता लगाने के लिए कई टेस्ट कर सकता है। शारीरिक परीक्षण के साथ ही वह बच्चे क लक्षणों के बारे में पूछता है। वह आपसे पूछ सकता है कि बच्चे क लक्षण कब गंभीर हो जाते हैं और कितनी देर में सामान्य होते हैं। इसके अलावा वह कुछ टेस्ट की भी सलाह दे सकता है जैसे- ब्लड टेस्ट (blood tests) जिसमें यह चेक किया जाता है रेड ब्लड सेल्स (red blood cell) का स्तर कम तो नहीं है, जो एनीमिया का संकेत देता है। इसका अलावा व्हाइट ब्लड सेल्स के स्तर की भी जांच की जाती है कि कहीं यह अधिक तो नहीं है जो इम्यून सिस्टम से जुड़ी समस्या की वजह से हो सकता है। मल में खून, बैक्टीरिया व पैरासाइट की जांच के लिए स्टूल सैंपल टेस्ट भी किया जा सकता है।
सूजन के संकेतों का पता लगाने के लिए कोलोनोस्कोपी (colonoscopy) जिसे अपर या लोअर एंडोस्कोपी भी कहते हैं, की जा सकती है। कुछ मामलों में डॉक्टर बायोप्सी (biopsy) भी कर सकता है।
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बच्चों में अल्सरेटिव कोलाइटिस का इलाज (ulcerative colitis treatment)

आंत में सूजन का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे में यह कितना गंभीर है। बड़ों में आमतौर पर इसका उपचार खास तरह के एनीमा (enema) से किया जाता है जिसमें दवा होती है। हालांकि बच्चों तो एनीमा नहीं दिया जाता है, क्योंकि वह इसे सहन नहीं कर सकतें। जो बच्चे दवा खा सकते है उनके उपचार में शामिल है-
- आंत की सूजन ( को कम करने के लिए अमीनोसैलिसलेट्स (aminosalicylates)
- इम्यून सिस्टम (immune system) को आंत पर हमला करने से रोकने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (corticosteroids) दिया जा सकता है
- सूजन के परिणामस्वरूप शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया को कम करने के लिए इम्यूनोमॉड्यूलेटर्स (immunomodulators) या TNF- अल्फा ब्लॉकिंग एजेंट दिया जाता है।
यदि ऊपर बताए गए इलाज से बच्चे के लक्षणों में सुधार नहीं होता है या वह और खराब हो जाते हैं तो डॉक्टर सर्जरी (surgery) की सलाह दे सकता है, जिसमें आंत के प्रभावित हिस्से को हटाया जाता है।
वैसे तो पूरी आंत या उसके कुछ हिस्से के हटाने पर बच्चा सामान्य जिंदगी तो जी सकता है, लेकिन इसका असर उसके पाचन पर बहुत गंभीर होता है। इतना ही नहीं आंत के प्रभावित हिस्से को हटाने के बावजूद भविष्य में दूसरे हिस्से में अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis) हो सकता है। आमतौर पर निम्न स्थितियों में सर्जरी की सलाह दी जाती है-
- आंत में यदि छेद हो जाए
- आंत चौड़ा हो जाए और उसमें सूजन हो
- ब्लीडिंग रुक नहीं रही हो
- उपचार से लक्षणों में सुधार न हो रहा हो।
पैरेंट्स के लिए आंत में सूजन की समस्या से निपटने के टिप्स (coping with ulcerative colitis)
कुछ बातों का ध्यान रखकर पैरेंट्स न सिर्फ अपनी टेंशन कम कर सकते हैं, बल्कि बच्चे को भी बेहतर और स्वस्थ जिंदगी के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
- अपने प्रियजनों, शिक्षकों और करीबी दोस्तों को बीमारी, इसके लिए जरूर पोषण की जरूरतों और दवाओं के बारे में जानकारी दें।
- बच्चे को पूरा पोषण (nutrition) मिले इसके लिए प्रोफेशनल डायटिशियन से उसकी मील प्लानिंग करवाएं।
- ऐसे सपोर्ट ग्रुप की तलाश करें जिसमें लोग इन्फ्लामेट्री बाउल डिसऑर्डर (inflammatory bowel syndrome) यानी आंत से जुड़ी समस्या से पीड़ित हों।
- जरूरत हो तो काउंसलर से बात करें।
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लंबे समय में बच्चे पर अल्सरेटिव कोलाइटिस का असर
इस बीमारी का न सिर्फ बच्चों पर शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक असर भी बहुत गहरा होता है। बीमारी के कारण उनका शरीर कमजोर हो जाता है और पोषक तत्वों की कमी होने लगती है जिसका असर उनके सामान्य व्यवहार पर भी देखने को मिलता है। इसकी वजह से बच्चों को निम्न भावनात्मक परेशानियां होती हैं-
- बीमारी और दवा के कारण मूंड स्विंग (mood swing) होना
- बीमारी के लिए खुद को दोषी मानना
- शारीरिक रूप से कमजोर होने पर चिड़चिड़ापन
- खुद को दूसरों से अलग समझना
- गुस्सा होना कि ‘आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?’
- अपने लुक, धीमे विकास और कम वजन को लेकर चिंतित रहना
- दोस्तों के साथ सामान्य तरीके से न खेल पाने के कारण गुस्सा व चिढ़
- दूसरे बच्चों की तरह शारीरिक गतिविधियां (physical activity) न करने पाने की वजह से खुद को कमजोर महसूस करना
भावनात्मक समस्याओं (emotional issues) के साथ ही ऐसे बच्चों को कुछ सामाजिक समस्याओं (social issues) का भी सामना करना पड़ता है जैसे-
- स्कूल में दूसरे छात्रों का ताने मारना
- बार-बार बाथरूम जाने पर शर्मिंदगी महसूस करना
- खाने की चॉइस को लेकर पीयर प्रेशर (peer pressure)
- जिन लोगों को बीमारी की जानकारी नहीं है, उन्हें हैंडल करना
- फिजिकल स्टेमिना में बदलाव
- स्कूल के काम पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में बदलाव।
आंत में सूजन की समस्या को हैंडल करना बच्चों के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह न सिर्फ उनके खेलने-कूदने, बल्कि मनपसंद खाने पर भी पाबंदी लगा देता है। वह अपना बचपन खुलकर जी नहीं पाते, ऐसे में पैरेंट्स और दोस्तों का सहयोग उनके लिए बहुत जरूरी है।