और पढ़ें: क्या आप जानते है शिशुओं के लिए हल्दी के फायदे कितने होते हैं? जाने विस्तार से!
प्रीमैच्योर में भैंगापन होना ( Squint In Eyes)
भैंगेपन की समस्या सामान्य और प्रीमैच्याेर दोनों ही नवजात में होना आम बात है। बता दें कि भैंगेपन में बच्चे की आंख अंदर या बाहर की तरफ होने लगती है। कई बार एक आंख में और कई बार दोनों आंखों में भैंगेपन की समस्या हो जाती है। इसमें एक या दोनों आंखों के तिरछा होने से आंखें सुस्त होने लगती है, जिससे आंख की रोशनी कम होने लगती है। अगर शुरुआत में इस पर ध्यान दिया जाए तो इससे निपटा जा सकता है।
[mc4wp_form id=”183492″]
जन्मजात काला मोतिया (Glaucoma)
आंखों में काला मोतिया की समस्या जन्मजात भी हो सकती है। इसे इन्फेंटाइल ग्लूकॉमा (Infantile Glaucoma) भी कहते हैं। इसमें आंख का ड्रेनेज सिस्टम आसामन्य होता है। इसकी वजह से आंख की रोशनी को पहुंचने वाले नुकसान की भरपाई करना मुश्किल होता है, लेकिन इसके प्रभाव को बढ़ने से रोका जा सकता है। बता दें कि इसमें आंख से लगातार पानी आने लगता है। रोशनी में आंख को चौंध लगती और खुलने में मुश्किल होती है। इसमें बच्चे की आंख का साइज भी बढ़ने लगता है। वैसे, आमतौर पर आंख का साइज 11 मिमी होता है लेकिन, इस समस्या में आंख का साइज 11 से बढ़कर 15 मिमी तक होने लगता है।
और पढ़ें: क्या आप जानते हैं, शिशुओं को चाँदी के बर्तन में खाना क्यों खिलाना चाहिए?
रेटिनोपैथी (Retinopathy) ऑफ प्रीमैच्योरिटी
यह समस्या उन बच्चों में अधिक पाई जाती है जो समय से पहले जन्म लेते हैं और जिन बच्चों का वजन सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है। बता दें कि गर्भावस्था में बच्चे की आंख का विकास तीसरे महीने में होने लगता है और आंख के पर्दे में नई खून की नालियां बनने लगती हैं, जिससे कई बार आंख के पर्दे पर खून आने और पर्दे के खिसकने की संभावना बनी रहती है। यह बीमारी आंख की रोशनी के लिए खतरनाक होती है। इसलिए लेजर द्वारा इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
आंख में फुंसी होना
आंख की पलकों पर पाए जाने वाले जिईज ग्लैंड्स (Zeis Glands) में संक्रमण के कारण हुई सूजन को आंख की फुंसी कह जाता है। यह समस्या दोनों तरह के शिशुओं में पाई जाती है। यह बच्चों के बड़े होने पर भी हो सकती है। जिन बच्चों में दृष्टि दोष होता है, जो बच्चे अधिकतर आंख रगड़ते रहते हैं, जिन बच्चों की आंख की पलकों पर रूसी जमा होती रहती है और जिन लोगों को डायबीटीज हो, उनमें यह समस्या सबसे अधिक देखी जाती है।
और पढ़ें:क्यों है बेबी ऑयल बच्चों के लिए जरूरी?
आंखों की जांच ( Eye Checkup) जरूरी
आंख के विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे को जन्म देने के बाद और अस्पताल से डिस्चार्ज होने से पहले ही एक बार शिशुओं की आंखों को किसी आई सर्जन से चेक करा लेना बेहतर होता है। इससे शिशु की आंख में जो भी परेशानी होगी वो सामने आ जाएगी। अगर ऐसा नहीं करवा पाए हैं तो बच्चे को स्कूल में बैठाने से पहले यानी तीन साढ़े तीन साल की उम्र में आंखों की पूरी जांच करवाएं।
सही नंबर का चश्मा लगवाएं
अगर बच्चे की नजर कमजोर है तो चश्मा बनवाएं और उसे पहनने के लिए कहें। कई बार पेरेंट्स बच्चों को इसलिए चश्मा नहीं पहनने देते क्योंकि, उन्हें लगता है कि इससे बच्चे की आंखें कहीं और ज्यादा कमजोर न हो जाएं, लेकिन, ऐसा सोचना गलत है। इसलिए जरूरी है कि साल में एक बार बच्चें का आई टेस्ट जरूर करवाएं।नवजात बच्चों को विटामिन-ए की कमी न होने दें क्योंकि, इसकी कमी से बच्चों में रतौंधी की समस्या हो सकती है।
आंख में बिना समस्य के कोई भी आई ड्रॉप न डालें। अगर आंख में किसी भी तरह की समस्या दिखती है, तो पहले डॉक्टर की सलाह लें। आई ड्रॉप के खुलने के बाद उसे एक महीने के अंदर ही इस्तेमाल कर लें।