के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
कभी-कभी किसी भी कारण अगर व्यक्ति को ज्यादा उल्टी आये या लंबे वक्त से उल्टी होने की परेशानी होने पर एसोफेगस फटने लगती है। दरअसल एसोफेगस एक तरह का ट्यूब होता है, जो गले से पेट आपस में कनेक्ट करता है। लंबे वक्त से हो रही उल्टी की परेशानी की वजह ट्यूब फटने लगता है। इस स्थिति को मैलरी-वाइस सिंड्रोम (MWS) कहते हैं। वैसे यह परेशानी प्रायः 7 से 10 दिनों में अपने आप ठीक हो जाती है लेकिन, कभ-कभी मैलरी-वाइस सिंड्रोम से ब्लीडिंग की भी समस्या शुरू हो सकती यही। अगर समस्या गंभीर हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में सर्जरी की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है।
मैलरी-वाइस सिंड्रोम के ज्यादातर मामले 40 से 60 साल के उम्र में देखने को मिलती है और यह महिला या पुरुष दोनों में होने वाली शारीरिक परेशानी है। एसोफेगस इंफेक्शन की वजह से होने वाली परेशानी है, जिसका इलाज दवा से किया जा सकता है।
मैलरी-वाइस सिंड्रोम होने पर इसके लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे-
इन लक्षणों के होने पर या महसूस होने पर इसे नजरअंदाज न करें और डॉक्टर से संपर्क करें।
हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार उल्टी के दौरान आने वाले ब्लड का रंग डार्क हो सकते हैं। ब्लड क्लॉट नजर आ सकते हैं या फिर कॉफी के रंग की उल्टी हो सकती है। इन लक्षणों के साथ-साथ अन्य शारीरिक परेशानी या कोई अन्य शारीरिक डिसऑर्डर की समस्या शुरू हो सकती है। जैसे-
जोलिंजर (Zollinger)- एलिसन सिंड्रोम (Ellison syndrome) रेयर सिंड्रोम है, जिस वजह से छोटे ट्यूमर पेट में अत्यधिक एसिड का निर्माण करते हैं। ऐसी स्थिति में पेशेंट को अल्सर की समस्या भी शुरू हो सकती है।
यह ध्यान रखना आवश्यक है की मैलरी-वाइस सिंड्रोम की जानकारी चेकअप कर डॉक्टर आपको बता सकते हैं। इसलिए ऊपर बताये गई परेशानी महसूस होने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
मैलरी-वाइस सिंड्रोम निम्नलिखित कारणों से हो सकते हैं। इन कारणों में शामिल है
ऊपर बताए गए कारणों की वजह से मैलरी-वाइस सिंड्रोम होने का खतरा बना रहता है। इसलिए ऐसी कोई भी परेशानी होने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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मैलरी-वाइस सिंड्रोम के लक्षण होने पर डॉक्टर स्टूल टेस्ट और ब्लड टेस्ट करते हैं। इसी दौरान एंडोस्कोपी भी की जाती है। एंडोस्कोपी के दौरान मुंह से एक लचीली पाइप एसोफेगस में डाली जाती है। इस लचीली ट्यूब में कैमरा लगा होता है जिसकी मदद से बीमारी की गंभीरता को समझाना आसान हो जाता है और इससे इलाज भी बेहतर तरह से की जाती है।
मैलरी-वाइस सिंड्रोम होने पर निम्नलिखित टेस्ट किये जाते हैं। जैसे-
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मैलरी-वाइस सिंड्रोम का इलाज निम्नलिखित तरह से किया जाता है। जैसे-
एंडोस्कोपी थेरिपी- मैलरी-वाइस सिंड्रोम की स्थिति में कभी-कभी ब्लीडिंग नहीं रुकने पर एंडोस्कोपी थेरिपी की जाती है। इस थेरिपी के दौरान इंजेक्शन थेरिपी या स्क्लेरोथेरिपी से ब्लीडिंग को रोका जा सकता है। इंजेक्शन थेरिपी या स्क्लेरोथेरिपी के अलावा कोगुलेशन थेरिपी से वेसल्स में हीट दी जाती है।
सर्जिकल ऑप्शन- एंडोस्कोपी थेरिपी के बावजूद अगर ब्लीडिंग की समस्या नहीं रूकती है, तो लेप्रोस्कोपी सर्जरी की मदद ली जाती है। इस सर्जरी की मदद से ब्लीडिंग को रोकने की कोशिश की जाती है।
दवा- मैलरी-वाइस सिंड्रोम होने पर हेल्थ एक्सपर्ट फेमोटिडीन (पेप्सिड) या लैंसोप्राजोल (प्रीवेसिड) जैस दवाएं देते हैं। इन दवाओं के सेवन से MWS की परेशानी कम हो सकती है।
इन तीन विकल्पों की मदद से मैलरी-वाइस सिंड्रोम का इलाज किया जाता है लेकिन, इलाज के दौरान डॉक्टर जो सलाह देते हैं उसका सही तरह से पालन करना चाहिए। जबतक इलाज करवाने की सलाह दी जाती है उसे जरूर फॉलो करें और अपने मर्जी के अनुसार दवाओं का सेवन न करें और न ही बंद करें।
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मैलरी-वाइस सिंड्रोम (MWS) से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं। जैसे-
अगर आप मैलरी-वाइस सिंड्रोम से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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