प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह के टेस्ट की आवश्यकता पड़ सकती है, जिसमें से एक न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग (Nuchal Translucency Screening) भी है। यह टेस्ट प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे की सेहत से जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता है। इससे बच्चे में डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम आदि का पता चल सकता है। यह एक प्रकार से अल्ट्रासाउंड की तरह होता है। न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग बच्चे की गर्दन के पीछे फ्लूइड से भरी जगह होती है। तो आइए जानते हैं कि न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग (Nuchal Translucency Screening) क्या होता है और इसे प्रेग्नेंसी के दौरान क्यों किया जाता है। इसी के साथ यह भी जानें कि इस स्क्रीनिंग के दौरान किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
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न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग क्या है (Nuchal Translucency Screening)?
कई बार प्रेग्नेंसी के दोरान न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग की आवश्यकता पड़ सकती है। यह जांच गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला एक परीक्षण है। इसका उपयोग बच्चे की गर्दन के पीछे द्रव के आकार की मोटाई को मापने के लिए किया जाता है। यानि कि शिशुओं की गर्दन के पीछे कुछ तरल होता है। डाउंस सिंड्रोम शिकार बहुत से शिशुओं में इस तरल की मात्रा काफी ज्यादा होती है। इसलिए डाउंस सिंड्रोम का पता लगाने के लिए यह टेस्ट किया जाता है। यदि गर्दन के पीछे का क्षेत्र सामान्य से अधिक मोटा है, तो यह डाउन सिंड्रोम, ट्राइसॉमी 18 या हृदय की समस्याओं का संकेत है। यह जांच प्रेग्नेंसी के 11 से 14 सप्ताह के बीच के समय में की जाती है। इसके बाद, यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या बच्चे को वास्तव में कोई समस्या है या नहीं, इसका पता लगाने के आपको डायग्नोस्टिक परीक्षण की आवश्यकता होती है, जैसे कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस) या एमनियोसेंटेसिस।
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एनटी स्कैन करवाने की जरूरत क्यों पड़ सकती है (Why need to have an NT scan)?
डॉक्टर प्रेग्नेंसी के दौरान सभी गर्भवती महिलाओं को न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग की सलाह देते हैं, ताकि शिशुओं में होने वाले डाउंस सिंड्रोम का पता लगाया जा सके। डाउंस सिंड्रोम से ग्रस्त शिशु से मां केलिए भी डिलिवरी के दौरान खतरा बढ़ सकता है । बड़ी उम्र में प्रेग्नेंट हुई महिलाओं के लिए तो खासतौर पर। इस स्क्रीनिंग में दो स्टेज शामिल होती हैं। एक रक्त परीक्षण और अल्ट्रासाउंड, जिसमें दो पदार्थों के स्तर की जांच करता है – गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन-ए (पीएपीपी-ए) और मानव कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन। एक विशेष प्रकार से अल्ट्रासाउंड है, जिसे न्यूकल ट्रांसलूसेंसी स्क्रीनिंग कहा जाता है। इसमें बच्चे की गर्दन के पीछे के हिस्से को मापा जाता है। हालांकि, इन डायग्नोस्टिक जांचों में गर्भपात होने का भी रिस्क हो सकता है। इसी वजह से डॉक्टर डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाने से पहले डॉक्टर स्क्रीनिंग टेस्ट की सलाह देते हैं।
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न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग की जरूरत कब होती है (When is nuchal translucency screening needed) ?
न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग प्रेग्नेंसी के एक विशेष समय पर किया जाता है। यह स्क्रीनिंग प्रेग्नेंसी के 11 हफ्ते और 13 हफ्ते में किया जाता है। इसे कराने का सबसे बेहतर समय प्रेग्नेंसी का 12 वां सप्ताह भी माना जाता है। जब आपके शिशु की सिर से नितंब तक की लंबाई (सीआरएल- क्राउन रंप लेंथ) 45 मि.मी. (1.8 इंच) और 84 मि.मी. (3.3 इंच) के बीच होती है। यही इसका सही समय होता है। इसके पहले या बाद के समय में इसे कराने से सही परिणा प्राप्त नहीं होते हैं। इसके अलावा, यह स्क्रीनिंग आमतौर पर पेट पर से किया जाता है, इसलिए पेट करवाने के दौरान पेट में यूरिन फूल होना जरूरी है। इसके अलावा, डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के दौरान पेट पर कुछ जैल लगाएंगे। फिर उसके बाद जांच शुरू करेंगे। ताकि सही कंडिशन का पता चल सके। इसके अलावा, ट्रांसवेजायनल अल्ट्रासाउंड (टीवीएस) समय आपका पेट खाली होना चाहिए, यानि की पेट में यूरिन नहीं होना चाहिए। इसमें डॉक्टर आपके शिशु को उसके सिर के ऊपरी सिरे से रीढ़ के निचले हिस्से तक मापना शुरु करेंगे।
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न्यूकल स्कैन कितना सही होता है (How accurate is nuchal scan)?
न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग, डाउंस सिंड्रोम से ग्रस्त लगभग 80 प्रतिशत बच्चों में इसका पता लग जाता है। इसके अलावा, जिन शिशु में डाउंस सिंड्रोम होने के उच्च जोखिम का भी सही समय का पता चल जाता है। इसे फाल्स पॉजिटिव कहा जाता है। एनटी स्कैन टेस्ट में सही परिणाम के लिए अल्ट्रासाउंड के साथ ब्लड टेस्ट भी करवाया जाता है। खून की जांच में फ्री बीटा-एचसीजी हॉर्मोन और पैप-ए (PAPP-A) प्रोटीन के स्तरों से परिणाम का पता लगाया जाता है। इस डाउंस सिंड्रोम वाले शिशुओं में एचसीजी का उच्च स्तर और पैप-ए का स्तर कम होता है। जब एनटी स्कैन को खून की जांच से जोड़ा जाता है, तो डाउंस की पहचान की दर बढ़कर 92 प्रतिशत हो जाती है। इसे कम्बाइंड टेस्ट कहा जाता है। सबसे सटीक स्क्रीनिंग टेस्ट है – नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी)। इसमें पहचान की दर 99 प्रतिशत से भी ज्यादा है। एनआईपीटी की फाल्स पॉजिटिव दर 0.1 प्रतिशत है, जिसका मतलब है कि कम्बाइंड टेस्ट की तुलना में इसके बहुत कम मामले फाल्स पॉजिटिव पाए जाते हैं।
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क्या इस जांच के माध्यम से अन्य असामान्यताओं के खतरों का भी पता चलता है (Does this test also detect the dangers of other abnormalities?)?
प्रेग्नेंसी में मां और बच्चे दोनों को खतरे से बचाने के लिए डॉक्टर गर्भवती मां को एडवड्र्स सिंड्रोम और पैटोज सिंड्रोम के जोखिम के बारे में भी बताएंगे। ये दोनों स्थितियां डाउंस सिंड्रोम से बहुत दुर्लभ हैं और सबसे बड़ा चिंता विषय यह है कि इनसे प्रभावित अधिकांश गर्भावस्थाओं में गर्भपात ही करावाने की आवश्यकता पड़ जाती है। इस सिड्रोम के शिकार स्थितियों वाले शिशुओं में आमतौर पर ऐसी असामान्यताएं भी होती हैं, जिन्हें एनटी स्कैन या 20 सप्ताह की गर्भावस्था में होने वाले एनॉमली (टिफ्फा) स्कैन में भी देखा जा सकता है। लेकिन यह सभी टेस्ट अपनी जगह जरूरी है। स्क्रीनिंग के दौरान डॉक्टर पेट पर अल्ट्रासाउंड में प्रोब का इस्तेमाल करते है। इस प्रॉसेज में योनि के अंदर प्रोब डालकर जांच की जा सकती है और सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा, अल्ट्रासाउंड में हाय फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स से भी शरीर के अंदर का हिस्सा देखा जाता है । इस जांच में तस्वीर के माध्यम से डॉक्टर को बच्चे की गर्दन के पीछे ट्रांसलूसेंसी या साफ जगह का पता चल जाता है। टेस्ट मां और बच्चे दोनों के लिए ही बहुत जरूरी है।
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न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्क्रीनिंग (Nuchal Translucency Screening) के बारे में आपने जाना यहां कि इसकी जरूरत क्यों पड़ती है और इसे प्रेग्नेंसी के दौरान किस समय करवाना चाहिए। यह टेस्ट बहत जरूरी है मां और बच्चे दोनों के लिए। यदि आप प्रेग्नेंट है, तो इस टेस्ट को करवाने से पहले एक बार अपने डॉक्टर से इसे समझ लें, क्योंकि यह जांच काफी महंगी है, आप इसे कैसे और कहां से करवा सकती हैं। यदि यह टेस्ट आपके बजट से बाहर है, तो इसमें डॉक्टर आपकी मदद ले सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए डाॅक्टर की सलाह लें।
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