अल्फा थैलेसीमिया (Alpha thalassemia)- यह तब होता है जब अल्फा ग्लोबिन (alpha globin) बनाने वाले जीन्स में बदलाव होता है। चार जीन्स शरीर को अल्फा ग्लोबिन बनाने में मदद करते हैं। आपके बच्चे को माता-पिता से दो-दो जीन्स मिलते हैं।
बीटा थैलेसीमिया (Beta thalassemia)- यह तब होता है जब बीटा ग्लोबिन नामक प्रोटीन बनाने वाले जीन्स में बदलाव होता है। दो जीन्स शरीर को बीटा ग्लोबिन बनाने में मदद करते हैं। आपके बच्चे को माता-पिता से एक-एक जीन्स मिलते हैं।
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गर्भावस्था में थैलेसीमिया का पता कैसे चलेगा? (Thalassaemia during pregnancy)
प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले रूटीन ब्लड टेस्ट से ही इसका पता चल जाता है। जब तक थैलेसीमिया (Thalassaemia) गंभीर न हो तो इसका पता नहीं चल पाता है। माइनर अल्फा या बीटा थैलेसीमिया की स्थिति में आमतौर पर लोगों को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि इसका कोई लक्षण नहीं होता है। कई बार डॉक्टर आपके पार्टनर के साथ ही पूरे परिवार के बारे में पूछता है ताकि सिकल सेल डिसीज (sickle cell disease) या थैलेसीमिया जीन म्यूटेशन के खतरे का पता लगाया जा सके। सिकल सेल डिसीज (Sickle cell disease) भी एक प्रकार का अनुवांशिक रक्त विकार (Genetic blood disorder) है। इस जांच से बच्चे में इन अनुवांशिक रक्त विकार की संभावना का पता चलता है। यदि आप प्रेग्नेंसी प्लान कर रही है और आपको इस बात कि चिंता सता रही है कि आप या आपके पार्टनर को थैलेसीमिय है तो इस बारे में कंसीव करने से पहले ही अपने डॉक्टर से सलाह लें और जरूरी टेस्ट करवाएं।
गर्भावस्था में थैलेसीमिया होने पर बरतें सावधानी (Thalassemia in pregnancy precautions)
थैलेसीमिया (Thalassemia) से पीड़ित ऐसी महिलाएं जिन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) की जरूरत पड़ती है उनमें इनफर्टिलिटी का खतरा अधिक होता है। हालांकि इस बीमारी से पीड़ित कुछ महिलाएं गर्भधारण करने में सफल रहती हैं। थैलेसीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत है।
- यदि आपको थैलेसीमिया (Thalassemia) है और पार्टनर में भी इसके लक्षण दिखते हैं तो संभव है कि आपका बच्चा भी इस बीमारी के साथ पैदा हो। जेनेटिक काउंसलर आपको इसके संभावित खतरों के बारे में बताएगा और अजन्मा बच्चा इससे प्रभावित हुआ है या नहीं यह पता लगाने के लिए कुछ टेस्ट की सलाह देगा।
- प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में होने वाला तनाव थैलेसीमिया के लक्षणों को और गंभीर बना सकता है। गर्भावस्था में महिलाओं का हृदय और लिवर कमजोर हो जाता है ऐसे में थैलेसीमिया होने पर प्रेग्नेंसी के दौरान इसकी निगरानी जरूरी है।
- प्रेग्नेंसी के दौरान मां के शरीर में रक्त की अधिक मात्रा की जरूरत होती है। जिससे एनीमिया (Anaemia) का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन की संभावना भी बढ़ जाती है जिसके कारण हृदय को शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त पहुंचाने के लिए अधिक काम करना पड़ता है। इसलिए थैलेसीमिया पीड़ित महिलाओं को गर्भवती होने से पहले हृदय (Heart) की जांच करवानी चाहिए। क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान इन्हें हृदय पर तनाव घटाने के लिए नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ्यूजन (Blood transfusion) की जरूरत पड़ सकती है।
- थैलेसीमिया (Thalassemia) के मरीजों में टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) विकसित होने का खतरा भी अधिक रहता है और प्रेग्नेंसी के दौरान तनाव स्थिति को और गंभीर बना सका है। इसलिए प्रेग्नेंसी से पहले और इसके दौरान भी डायबिटीज (Diabetes)को सही तरीके से कंट्रोल करना जरूरी है।
- प्रेग्नेंसी के शुरुआती महीनों में फॉलिक एसिड (Folic acid) बहुत जरूरी होता है। यह बच्चे को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (Neural tube defect) से बचाने में मदद करने के साथ ही थैलेसीमिया पीड़ित मां में खास तरह के एनीमिया जिसे मेगालोब्लास्टिक एनीमिया (Megaloblastic anemia) कहते हैं, के विकसित होने की संभावना को भी कम करता है।
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