आपको जानकार हैरानी होगी कि देश की कुछ कम्युनिटी में रेयर डिजीज के ज्यादातर मामले देखे जाते हैं। जिसका कारण अक्सर उन कम्युनिटीज की रूढ़िवादी विवाह परंपरा को माना गया है। इन कम्युनिटीज में ज्यादातर मामले G6PD डेफिशिएंसी, डाउन सिंड्रोम, सिकल सेल डिजीज और बी थेलेसिमिया के होते हैं। वहीं दुसरे मामलों में आम तौर पर थेलेसिमिया, सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी गंभीर समस्याएं देखी जाती हैं।
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डाउन सिंड्रोम (Down syndrome)
डाउन सिंड्रोम में बच्चे उनके 21वें क्रोमोसोम की एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होते हैं। इसलिए इस समस्या को ट्रायसॉमी 21 भी कहा जाता है। रिप्रोडक्शन की प्रक्रिया के दौरान माँ-बाप के जीन्स बच्चों में आते हैं। ये जींस अपने साथ क्रोमोसोम भी लेकर आते हैं। जब बच्चे के सेल डेवेलप होते हैं, तो हर सेल में 23 जोड़ी क्रोमोसोम्स होते हैं। इस हिसाब से कुल 46 क्रोमोसोम्स होते हैं। इसमें से आधे मां के और आधे पिता के क्रोमोसोम्स होते हैं।
डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) से ग्रसित बच्चों में एक क्रोमोसोम अच्छे से बंट नहीं पाता और इसलिए क्रोमोसोम की संख्या 21 रह जाती है। इसकी वजह से बच्चे में शारीरिक और मानसिक विकास देर से और अच्छे से नहीं हो पाता।
इस तकलीफ में बच्चे में विकासात्मक देरी, चेहरे की विशिष्ट बनावट, बौद्धिक विकलांगता और थायराइड और दिल से जुड़ी अन्य तकलीफें हो सकती हैं। इसके अलावा बोलने, सुनने और देखने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इनमें से कुछ दिक्कतें पूरी जिंदगी बनी रहती हैं। इसके बाद भी डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) में साथ लोग बेहतर लाइफ जी पाते हैं। इसके लिए बच्चों और उनके परिवारों को दिया जानेवाला इंस्टीट्यूशनल सपोर्ट एक अच्छा ऑप्शन साबित होता है।
थेलेसिमिया (Thalassemia)
थेलेसिमिया एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो तब होता है, जब शरीर जरूरी मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। जो रक्त का एक प्रमुख भाग माना जाता है। जब शरीर में भरपूर मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बनता, तो रेड ब्लड सेल्स ठीक से काम नहीं कर पाते और उनका लाइफ स्पैन कम होता चला जाता है। जिसके कारण शरीर में कम मात्रा में हेल्दी रेड ब्लड सेल्स ही रह जाते हैं। इसके कारण बच्चे के पूरे विकास पर असर पड़ता है। थेलेसिमिया दो प्रकार के होते हैं, अल्फ़ा थेलेसिमिया और बीटा थेलेसिमिया (Thalassemia)।