रेयर डिजीज के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन रेयर डिजीज के अधिकतर केसेस जेनेटिक कारणों के चलते होते हैं, जिनके पीछे जींस और क्रोमोज़ोम्स कारण बनते हैं। रेयर डिजीज में 40 प्रतिशत केसेस जेनेटिक कारणों के चलते होते हैं। कुछ केसेस में, जेनेटिक बदलावों के कारण होनेवाली रेयर डिजीज एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन तक माता-पिता के जरिये पहुंच जाती है। वहीं कुछ मामलों में ये व्यक्तिगत रूप से लोगों को देखी जा सकती है। कई रेयर डिजीज (rare disease) में, जैसे इन्फेक्शन्स, रेयर कैंसर्स और कुछ ऑटो इम्यून दिक्कतें माता-पिता से ना आकर अपने आप में पैदा होती हैं। इसे लेकर दुनियाभर के रिसर्चर्स इलाज ढूंढने की कोशिशों में लगे हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए अभी काफी समय लग सकता है।
भारत में रेयर डिजीज (Rare disease) के लिए उपलब्ध पॉलिसीज
भारत में रेयर डिजीज के ट्रीटमेंट के लिए आम तौर पर महंगे इलाज ही उपलब्ध हैं। पूरे देश में बहुत से नवजात शिशु जेनेटिक डिसऑर्डर्स के साथ पैदा होते हैं। हर साल करीब आधे मिलियन बच्चे मेलफोर्मेशन के साथ पैदा होते हैं और वहीं करीब 20,000-25,000 बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ। लेकिन फिर भी देश के ज्यादातर लोगों के पास में रेयर डिजीज (rare disease) से बचाव के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है। साथ ही देश में इन लोगों के लिए ना ही कोई हेल्थ प्रोग्राम है और ना ही नवजातों में जेनेटिक डिसऑर्डर को पहचानने के लिए कोई स्क्रीनिंग की सुविधा है।
आपको जानकार हैरानी होगी कि देश की कुछ कम्युनिटी में रेयर डिजीज के ज्यादातर मामले देखे जाते हैं। जिसका कारण अक्सर उन कम्युनिटीज की रूढ़िवादी विवाह परंपरा को माना गया है। इन कम्युनिटीज में ज्यादातर मामले G6PD डेफिशिएंसी, डाउन सिंड्रोम, सिकल सेल डिजीज और बी थेलेसिमिया के होते हैं। वहीं दुसरे मामलों में आम तौर पर थेलेसिमिया, सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी गंभीर समस्याएं देखी जाती हैं।
और पढ़ें: नीमन पिक डिजीज क्या है? जानिए कैसे ये दुर्लभ बीमारी बन जाती है बच्चों की मौत का कारण
डाउन सिंड्रोम (Down syndrome)