डाउन सिंड्रोम की समस्या (Down syndrome problem) से पीड़ित बच्चों में दिखने वाले लक्षण कम या फिर गंभीर भी हो सकते हैं। ऐसे बच्चों की मसल्स में कम ताकत होती हैं। साथ ही ऐसे बच्चे नॉर्मल बच्चों की तुलना में बैठना, चलना या उठना सीखने में ज्यादा समय लेते हैं। ऐसे बच्चों की दिमाग यानी बौद्धिक विकास और शारीरिक विकास अन्य बच्चों की तुमना में धीमा होता है। बच्चों के चेहरे पर अजीब से लक्षण जैसे कि चेहरा सपाट होना, कान छोटा दिखना, आंखों का तिरछापन, जीभ बड़ी होना, मुंह से लार गिरना, चेहरे के अजीब से भाव आदि दिख सकते हैं। इन कारणों से माता-पिता को बच्चे को अकेले छोड़ने में भी डर लगता है। पेरेंट्स ये जानते हैं कि स्पेशल बच्चों का मजाक कभी भी उड़ाया जा सकता है। इस कारण से वो बच्चों को अधिकतर घर में ही रखना पसंद करते हैं।
स्कूल का रैवया जाता है बदल
स्पेशल बच्चों के लिए वैसे तो अलग से स्कूल के इंतेजाम होते हैं, लेकिन ऐसे बच्चे नॉर्मल स्कूल में भी पढ़ सकते हैं। अधिकतर स्कूल डाउन सिंड्रोम की समस्या (Down syndrome problem) से पीड़ित बच्चों के एडमिशन के लिए मना कर देता है। उनका मानना होता है कि इसका बाकी बच्चों पर भी इफेक्ट पड़ेगा। जबकि ये सच नहीं है। स्पेशल बच्चों को केवल अधिक प्यार की जरूरत होती है। अगर परिवार और शिक्षकों से पूरा प्यार मिले तो चीजों को आसानी से समझने लगते हैं। हमारे समाज में स्पेशल बच्चों को अलग नजरिये से देखा जाता है, इसी कारण से उनके लिए जीवन अधिक चैलेंजिंग हो जाता है।
खर्च बढ़ता है तो तनाव भी बढ़ जाता है
स्पेशल चाइल्ड के पेरेंट्स को बच्चे के भविष्य के लिए दो गुनी मेहनत करनी पड़ती है। बच्चों की थेरिपी के साथ ही स्पेशल ट्रेनिंग में भी पेरेंट्स को पूरा समय देना पड़ता है। अगर स्पेशल बच्चों के पेरेंट्स कामकाजी हो, तो समस्याएं अधिक बढ़ जाती हैं। स्पेशल बच्चे की जिम्मेदारी को संभालने के लिए किसी एक को जॉब छोड़ना जरूरी हो जाता है। स्पेशल बच्चे बहुत नाजुक भी होते हैं। उन्हें इंफेक्शन की भी जल्दी संभावना रहती है। ऐसे में घर का खर्चा बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। कई बार तो परिवार के अन्य सदस्य इन बातों को लेकर इश्यू भी बनाने लगते हैं। इन बातों के कारण पेरेंट्स को भी टेंशन होने लगती है।
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ये जानना भी है आपके लिए बहुत जरूरी

बेबी की प्लानिंग करते समय लोग बहुत सी बातों का ध्यान देते हैं। अगर बेबी को सही समय पर प्लान किया जाए तो भी डाउन सिंड्रोम की समस्या (Down syndrome problem) से बचा जा सकता है। वैसे तो ये जेनेटिक डिसऑर्डर है, लेकिन अधिक उम्र में मां बनना भी इस बीमारी का कारण हो सकता है। अनुवांशिक विकार कई कारणों से हो सकता है, जानिए क्या हैं कारण
आपकी समझदारी से बच्चा हो जाएगा होशियार
ऐसा नहीं कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे किसी बातो को समझते नहीं है। हां ये कहा जा सकता है कि उनको सिखाने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। अगर बच्चे को सही तरह से सिखाया जाए तो वो नॉर्मल स्कूल में भी पढ़ सकता है। जब बच्चा बड़ा हो जाए तो उसे सही और गलत के बारे में भी जानकारी दें। ऐसा करने से बच्चा नॉर्मल बच्चों के बीच खुद को सुरक्षित महसूस कर सकेगा। साथ ही बच्चे को सामान्य रूटीन में भी लाएं। डाउन सिंड्रोम की समस्या (Down syndrome problem) से पीड़ित बच्चे भी सामान्य जीवन यापन कर सकते हैं। हम सब को मिलकर इस बारे में सोचना होगा।
डाउन सिंड्रोम की समस्या (Down syndrome problem) से पीड़ित लोगों के लिए स्कूलिंग से लेकर जॉब तक, कई तरह की परेशानियां उनके सामने होती हैं। अगर पेरेंट्स बच्चे को उत्साहित करें तो यकीन मानिए बहुत सी समस्याओं का तुरंत निदान हो जाएगा। ऐसे बच्चे के प्रति समाज के साथ ही परिवार को सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए। माता-पिता को स्पेशल बच्चों के खानपान पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर आपके आसपास स्पेशल बच्चे रहते हैं तो कोशिश करें कि उन्हें प्यार दें और उनकी भावनाओं को समझे।
डॉक्टर से परामर्श के बाद ही आपको बच्चे को किसी प्रकार का ट्रीटमेंट देना चाहिए। हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता है। इस आर्टिकल में हमने आपको डाउन सिंड्रोम की समस्या (Down syndrome problem) के संबंध में जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंग।