
बच्चे का सेक्स समझने के लिए पहले थोड़ा विज्ञान की भाषा को समझना जरूरी है। शिशु का सेक्स एक्स (X) एवं वाई (Y) सेक्स क्रोमोसोम पर निर्भर करता है। शिशु का निर्माण एग एवं स्पर्म के मिलने से बनता है, जिसमें एग यानी अंडाणु (Eggs) में एक्सएक्स क्रोमोसोम होता है और स्पर्म यानी शुक्राणु (Sperms) में एक्सवाई क्रोमोसोम होता है। जिन एम्ब्रीओ (Embryo) में एक्सवाई क्रोमोसोम (Embryos with XY chromosomes) होते हैं, तो उनमें मेल सेक्स ऑर्गन डेवलप होता है, वहीं सिर्फ एक्सएक्स क्रोमोसोम (XX chromosomes) वाले एम्ब्रीओ में फीमेल सेक्स ऑर्गन डेवलप होता है। इसका अर्थ यह है कि स्पर्म से बच्चे का सेक्स (Baby’s sex) निर्धारित होता है।
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गर्भ में पल रहे शिशु का सेक्स कब लड़की या लड़का बनता है? (When does an embryo become male or female?)
नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार फर्टिलाइजेशन के दौरान एम्ब्रीओ का क्रोमोसोमल सेक्स बनता है और प्रेग्नेंसी के 6 हफ्ते बीतने के बाद बेबी गर्ल (Baby girl) या बेबी बॉय (Baby boy) का बनना शुरू हो जाता है। हालांकि बच्चे का सेक्स निर्धारित होना अपने आप में एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें गोनाड्स (Gonads) एवं जेनेटिलिया (Genitalia) की खास भूमिका होती है। अब अगर इन बातों को और भी आसान शब्दों में समझें, तो भ्रूण यानी एम्ब्रीओ का निर्माण तब शुरू होता है जब टेस्टिस का निर्माण शुरू होता है और टेस्टिस का निर्माण टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) पर निर्भर करता है। मेल ऑर्गन के विकास के लिए टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन (Testosterone Hormone) की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वैसे इसके साथ-साथ वास डेफेरेंस (vas deferens), सेमिनल वेसेकिल्स (Seminal vesicles) और प्रोस्टेट ग्लैंड (Prostate gland) का भी विकास होता है। अब ठीक ऐसे फीमेल ऑर्गन के लिए ओवरी का विकास होता है। अब इससे एस्ट्राडिओल हॉर्मोन (Estradiol Hormone) का रिसाव होता है। एस्ट्राडियोल हॉर्मोन की मदद से ही फैलोपियन ट्यूब (Fallopian Tube), यूट्रस (Uterus) एवं वजायना (Vagina) का निर्माण होता है।
ये तो हुई मेडिकल साइंस की भाषा में बच्चे का सेक्स (Baby’s Sex in womb) निर्धारित होने का समय, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान कई ऐसे टेस्ट किये जाते हैं जिससे बच्चे का सेक्स (Baby’s Sex in womb) जाना जा सकता है।
नोट: भ्रूण का लिंग परीक्षण यानी बच्चे का सेक्स डिटरमिनेशन (Sex determination) करवाना भारत में कानूनी अपराध है। इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान लिंग परीक्षण ना करवाएं। यहां हम कुछ टेस्ट के बारे में आपसे सिर्फ जानकारी शेयर करने जा रहें। इसका लिंग परीक्षण यानी बच्चे का सेक्स डिटरमिनेशन (Baby’s Sex determination) की जानकारी देना हमारा उदेश्य नहीं है और ये टेस्ट रिपोर्ट भी पूरी तरह से सही नहीं होते हैं।
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गर्भावस्था के दौरान की जाने वाली टेस्ट कौन-कौन सी है? (Test during Pregnancy)
गर्भावस्था के दौरान कई अलग-अलग तरह की टेस्ट की जाती है जैसे ब्लड टेस्ट (Blood Test), यूरिन टेस्ट (Urine Test), अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) एवं और भी कई अन्य। यहां हम जिन टेस्ट की बात करने जा रहें उन्हें सिर्फ लिंग परीक्षण से जोड़कर देखना सही नहीं होगा, क्योंकि इससे गर्भ में पल रहे शिशु की एब्नॉर्मलटिस (Abnormalities) को समझने की कोशिश की जाती है अगर एब्नॉर्मलटिस की आशंका होती है तब।
- एनआईपीटी ब्लड टेस्टिंग (NIPT blood testing)- यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेस (U.S. Department of Health and Human Services) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार नॉनइनवेसिव पेरेंटल टेस्टिंग (Noninvasive prenatal testing) की जरूरत तब पड़ सकती है जब अगर किसी तरह डिसॉर्डर या जेनेटिकल एब्नॉर्मलटिस की आशंका होती है। इसलिए इस टेस्ट को सिर्फ शिशु का लिंग परिक्षण समझना गलत होगा और टेस्ट के दौरान अगर बच्चे के सेक्स की जानकारी अगर मिलती है, तो यह पूरी तरह से सही भी नहीं होती है।
- अल्ट्रासाउंड (Ultrasound)- नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड 18 से 21वें हफ्ते में शेड्यूल करते हैं, जबकि लिंग परिक्षण के लिए 14वें हफ्ते में अल्ट्रासाउंड शेड्यूल किया जाता है।