वॉटर बर्थ से जुड़े मिथ में इंफेक्शन होना भी जुड़ा हुआ है। ऐसा कहना सही नहीं होगा। इस बात का आधार है कि बच्चे को जन्म देते समय मां को कुछ मात्रा में यूरिन या फिर स्टूल पास हो जाता है, लेकिन ऐसा सभी महिलाओं के साथ नहीं होता है। अगर वॉटर बर्थ किसी एक्सपर्ट के हाथों हो रहा है तो किसी भी विषय में चिंता करने की जरूरत नही है। इस तरह की रिसर्च में भी ये बात सामने आई है कि वॉटर बर्थ के दौरान होने वाले बच्चे को केवल एक प्रतिशत इंफेक्शन होने का चांस रहता है। गुनगुने पानी में इंफेक्शन का खतरा कम हो जाता है। इस वॉटर बर्थ से जुड़े मिथ को नकारा जा सकता है। इसका सच जरूर जानें।
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मिथ- बाथिंग टब में लेबर की स्पीड तेज या फिर धीमी पड़ सकती है।
ये दोनों ही बातें सही हो सकती है, लेकिन इसे वॉटर बर्थ से जुड़े मिथ से ही जोड़ा जाएगा। कुछ विषेशज्ञों का मानना है कि जब तक 6 सेमी तक डायलेशन न हो जाए, तब तक बाथिंग टब में नहीं जाना चाहिए। कई बार वॉटर बर्थ के दौरान वार्म वॉटर की वजह से लेबर स्लो डाउन हो जाता है। 6 सेमी तक डायलेशन के बाद जब महिला बाथिंग टब में जाएगी तो उसकी मसल्स भी रिलैक्स होंगी। वॉटर बर्थ के दौरान लेबर बर्थ तेजी से होगा या धीमे, ये बात कई बार परिस्थितियों पर निर्भर करती है। इस बारे में एक राय बनना सही नहीं रहेगा। इसे लेकर महिला को डराने का काम कर सकते हैं। इस बारे में जानकारी प्राप्त करें।
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मिथ- वॉटर बर्थ के दौरान लुब्रिकेशन न होने की वजह से ज्यादा दर्द होता है।
ये गलत धारणा है। वॉटर बर्थ के दौरान गुनगुने पानी की वजह से पेल्विक मसल्स को रिलैक्स फील होता है। वॉटर बर्थ के दौरान दर्द अधिक होगा या नहीं इस विषय में कहना मुश्किल है। साथ ही वॉटर बर्थ के दौरान टियरिंग होने का खतरा कम रहता है। वॉटर बर्थ से जुड़े मिथ में दर्द की ज्यादा समस्या भी सामने आती है। वॉटर बर्थ से जुड़े मिथ आपको परेशान कर सकते हैं, एक्सपर्ट या डॉक्टर से इस बारे में परामर्श करें।