क्या मां एक शब्द है या फिर एक एहसास, जो आपको बहुत कुछ करने के लिए उकसाता है। एक मां बच्चे की भूख का एहसास कर सकती है। उसके दर्द को भी महसूस कर सकती है। जरूरत पड़ने पर मां हमेशा साथ खड़ी रहती है और जब बच्चे को ऐसी मां मिलती है तो उसके मन में ये प्रश्न नहीं आता है कि मां मैं आपकी कोख से आया हूं या कहीं और से। ये सच है कि जन्म से बड़ा परवरिश का रिश्ता होता है। एडॉप्शन के साथ मां बनना (Becoming a mother with adoption) अक्सर लोगों के मन में कई सवाल पैदा कर देता है। अक्सर लोग ये प्रश्न करते हैं कि एडॉप्ट किए गए बच्चे के साथ मां की वो बॉन्डिंग नहीं बन पाती है, जो जन्म देने के बाद बनती है। आप इसे महज एक सोच भी कह सकते हैं। व्यक्ति का व्यवहार एक जैसा नहीं होता है, तो इस रिश्ते में एक जैसी राय कैसे बनाई जा सकती है? एडॉप्शन (Adoption) के बाद मां बनने का एहसास भी ठीक वैसा ही होता है, जैसा बच्चे को खुद जन्म देने के बाद। फर्क सिर्फ इतना होता कि एडॉप्शन (Adoption) के बाद बच्चा धीरे-धीरे मां के मन में पलता है। ये तर्क का विषय हो सकता है लेकिन ज्यादातर मांओं का एहसास एक जैसा ही होता है। आज हम आपको ऐसी ही एक मां से रूबरू कराएंगे, जिन्होंने एक बच्चे को गोद लिया और आज वो पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। ‘मदर्स डे’ के मौके पर पढ़ें ऐसी मां की कहानी, जिनके एक आशावादी कदम ने उनकी जिंदगी में खुशिया भर दी।
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एडॉप्शन के साथ मां बनना: राह मुश्किल लग रही थी, लेकिन मिला अपनों का साथ
ग्वालियर की रहने वाली मेघा अग्रवाल फर्टिलिटी प्रॉब्लम के चलते कंसीव नहीं कर पा रही थी। कई सालों के प्रयासों के बाद जब वो मां नहीं बन पाई, तो उनको दुख हुआ लेकिन उन्होंने आस नहीं छोड़ी। घर-परिवार के सदस्यों ने उन्हें एक कदम आगे बढ़ाने की हिम्मत दी। मेघा ने भी हिम्मत नहीं हारी और एडॉप्शन (Adoption) को बेहतर विकल्प मानकर एक प्यारी सी बच्ची को गोद लिया। अक्सर ऐसे केसेज में घर वालों की रजामंदी नहीं होती है और उन्हें मनाने में सालों का समय लग जाता है लेकिन मेघा इस मामलें में खुद को लकी मानती हैं। मेघा बताती हैं कि उन्होंने जब बच्ची को गोद लिया, तब वो तीन दिन की थी। मेघा ने बच्ची का नाम निया रखा। आज निया तीन साल की हो गई है और मेघा और रिया की बॉन्डिंग समय के साथ मजबूत होती जा रही है।
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एडॉप्शन के साथ मां बनना: क्या जन्म से बड़ा होता है परवरिश का रिश्ता?
मेघा से जब हमने पूछा कि जब आप बच्चे को गोद लेने वाली थी, तब आपके मन में क्या प्रश्न चल रहे थे? मेघा कहती हैं कि मेरे मन में एडॉप्शन (Adoption) से पहले कई सवाल चल रहे हैं। पहले मुझे लगता था कि गोद लेने में अपनापन नहीं होता है लेकिन ये मेरी गलत सोच थी। मैं और मेरे पति ये सोच रहे थे कि हम एडॉप्शन (Adoption) के बाद बच्चे को पूरा प्यार दे पाएंगे या नहीं। क्योंकि ये नैचुरल प्रोसेस (Natural process) नहीं होता है लेकिन मेरी सोच गलत साबित हुई। जिस दिन मैंने निया को गोद लिया उसे देखकर ही मुझे मेरी जिम्मेदारी का एहसास हो गया। शुरुआत थोड़ी कठिन थी क्योंकि निया बहुत छोटी थी। धीरे-धीरे मेरा उससे लगाव बढ़ता गया। अब ऐसा समय आ चुका है कि मैं खुद की कल्पना उसके बगैर नहीं कर सकती हूं। अगर मेरा किसी के लिए सबसे अधिक लगाव है, तो निया ही है। मैं मानती हूं कि बच्चे को जन्म देने (Babies birth) से कहीं बड़ा परवरिश का रिश्ता होता है।
एडॉप्शन के साथ मां बनना: हमारी प्राथमिकता है बच्चे की अच्छी परवरिश
मेघा से जब पूछा गया कि निया के जीवन में आने पर क्या बदलाव हुआ, तो मेघा कहती हैं एक नहीं बल्कि बहुत से बदलाव आए हैं जीवन में। मेघा कहती हैं कि मैं और मेरे हसबैंड रोहित अग्रवाल के लिए हमारी बेटी ही हमारी प्राथमिकता हैं। मैं अपने करियर को जारी रखना चाहती थी लेकिन निया के आने के बाद एहसास हुआ कि मैं अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभा पाऊंगी, इसलिए मैंने करियर से ब्रेक ले लिया। मेरा पूरा समय मेरी बेटी के लिए ही है। जब निया स्कूल जाने लगेगी, तो मैं अपने करियर के बारे में जरूर सोचूंगी। मेरे पति बिजनेसमैन हैं। पहले वो सुबह जाते थे और फिर काम खत्म करके रात में आते थे। बेटी के एडॉप्शन (Adoption) के बाद अब उनका घर में दिन से दो से तीन बार आना हो जाता है। जब तक वो बच्ची के साथ न खेल लें, उन्हें अच्छा नहीं लगता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एडॉप्शन के बाद मेरी फैमिली और मेरा बच्चे के साथ इतना अटैचमेंट हो जाएगा। वो भी हम लोगों के साथ पूरी तरह से अटैच हो चुकी है। मुझे अब एहसास होता है कि अगर मैंने एडॉप्शन (Adoption) का फैसला न लिया होता, तो जिंदगी में एक स्थान हमेशा खाली या अधूरा ही रह जाता।
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एडॉप्शन के साथ मां बनना पैदा कर सकता है शुरुआती डर
एडॉप्शन के साथ मां बनना (Becoming a mother with adoption) क्या होता है, इस बारे में बताते हुए मेघा कहती हैं कि भले ही अब राहें आसान लगने लगी हो, लेकिन जब हमने बच्चा गोद लेने के बारे में सोचा था, तो कुछ दोस्तों ने कहा था कि गोद लिए बच्चे के साथ वो वैसी बॉन्डिंग (Bonding) नहीं हो पाती है, जैसी खुद के बच्चे के साथ रहती हैं। अगर कोई एडॉप्शन (Adoption) के बारे में सोच रहा है, तो ये प्रश्न वाकई परेशान करने वाला हो सकता है लेकिन ये पूरा सच नहीं होता है। हम किसी भी नई शुरुआत को अक्सर कठिन बना देते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है। बस एक कदम बढ़ाने की जरूरत होती है और फिर रास्ता खुद-ब-खुद बनता चला जाता है। आज हम बच्चे की अच्छी परवरिश के साथ ही उसके उन सभी बातों की प्लानिंग करते हैं, जैसे आम माता-पिता करते हैं। समाज में कई तरह के लोग होते हैं। हो सकता है किसी और का एक्सपीरियंस अलग रहा हो। ऐसे में बेहतर होगा कि अपने मन की सुने और अपने आसपास से नकारात्मक विचारों को दूर करने की कोशिश करें।
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एडॉप्शन के साथ मां बनना: भविष्य को लेकर नहीं है मन में डर
मेघा कहती हैं कि एडॉप्शन के बाद अक्सर पेरेंट्स के मन में ये डर रहता है कि जब बच्चा बड़ा हो जाएगा, तो ये सच्चाई जानने के बाद कहीं दूर न हो जाए। भले ही लोग इससे डरते हो लेकिन मैंने सोचा है कि जब निया बड़ी हो जाएगी, मैं अपने तरीके से उसे सच्चाई बताउंगी। मुझे यकीन है कि वो बातों को समझेगी और हमे किसी भी तरह की समस्या नहीं होगा।
एडॉप्शन के साथ मां बनना (Becoming a mother with adoption) कैसा होता है, हमे यकीन है कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से समझ आ गया होगा। अगर कोई भी महिला किन्हीं कारणों से मां नहीं बन पा रही है, तो एडॉप्शन के साथ मां बनना बेहतर विकल्प साबित होता है। ये सच है कि हमारे समाज में एडॉप्शन को लेकर कई तरह की बातें होती है लेकिन उनसे घबराकर आपको जिंदगी के बेहतरीन पलों को खोना नहीं चाहिए। हमे उम्मीद है कि आपको “एडॉप्शन के साथ मां बनना” ये आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा। अगर आप इनफर्टिलिटी (Infertility) की समस्या से जूझ रहे हैं तो बिना देर किए डॉक्टर को दिखाएं। आप स्वास्थ्य संबंधी या एडॉप्शन के साथ मां बनना, इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं और अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।
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