आम तौर पर शादी-शुदा जोड़े को जब माँ-पिता बनने के सुख का खबर मिलता है तब सबसे पहले उनके मन क्या आता है? जरा सोचिये! आपने बिल्कुल सही सोचा। सभी चाहते हैं कि उनके प्यार की निशानी जब इस धरती पर आए तो बिल्कुल स्वस्थ हो। मुश्किल की बात यह है कि अगर किसी के फैमिली हिस्ट्री में हेरीडिटरी प्रॉबल्म्स की समस्या है या माँ ने देर से कंसिव किया है तो शिशु नॉर्मल या स्वस्थ जन्म नहीं भी ले सकता है। इसके लिए डॉक्टर सबसे पहले अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट करने की सलाह देता है। अगर अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट का रिजल्ट पॉजिटीव आता है तो अगले चरण में एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने की सलाह देते हैं।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट को एमिनो टेस्ट भी कहा जाता है। असल में एमनियोसेंटेसिस टेस्ट एक तरह का डायगोनिस्टिक टेस्ट होता है जो ट्रिपल टेस्ट से निकाला जाता है। एमनियोसेंटेसिस टेस्ट वह प्रक्रिया होता है जिसमें यूटेरस से एमनियोटिक फ्लूइड निकालकर उसका टेस्टिंग किया जाता है। शायद आप सोच रहे होंगे कि एमनियोटिक फ्लूइड क्या होता है। यह फ्लूइड वह होता है जो प्रेग्नेंसी के समय गर्भस्थ शिशु को सुरक्षा प्रदान करने में सहायता करता है। इस फ्लूइड में कई फेट्ल सेल्स या भ्रूण की कोशिकाएं और बहुत तरह के प्रोटीन्स होते हैं।
एमिनो टेस्ट से शिशु के सेहत के बारे में सही जानकारी मिलती है। इससे शिशु के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है और उसके लिए पहले तैयारी करने का समय मिल जाता है। इससे शिशु के जन्म लेते ही उसका इलाज करना संभव हो पाता है। और शिशु को भी स्वस्थ जीवन का लाभ मिल पाता है।
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एमनियोसेंटेसिस टेस्ट कब कर सकते हैं
अब अगला सवाल यह आता है कि यह टेस्ट कब करना चाहिए। यह टेस्ट आपके गर्भ में पल रहे शिशु के जेनेटिक संरचना के बारे में जानकारी देता है। एमिनो टेस्ट गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार का बर्थ डिफेक्ट्स, जैसे कि डाउन सिंड्रोम या क्रोमोसोमल एब्नार्मेलिटीज है कि नहीं इसका पता लगाने में मदद करता है। वैसे तो एमिनो टेस्ट प्रेग्नेंसी के 15 से 20 वें हफ्ते में करना सही होता है। इसके पहले करने पर कॉम्प्लीकेशन्स होने की संभावना रहती है।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने से पहले क्या तैयारी करनी चाहिए
अगर 20वें हफ्ते के पहले एमिनो टेस्ट की जा रही है तो प्रक्रिया के दौरान ब्लैडर को भरा रखने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह यूटेरस को सहारा देता है। इसलिए अपॉइंटमेंट देने से पहले ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फ्लूइड पीने के लिए कहा जाता है। लेकिन यह टेस्ट अगर 20 वें हफ्ते के बाद की जा रही है तो ब्लाडर को खाली रखने की सलाह दी जाती है ताकि प्रक्रिया के दौरान कोई दुष्परिणाम न हो।
आपके हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स आपको मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर लेंगे। वह अच्छी तरह से इस प्रक्रिया संबंधित सारी जानकारी दे देंगे।
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एमनियोसेंटेसिस टेस्ट क्यों किया जाता है
आपके दिमाग में यह सवाल तो सबसे पहले आयेगा कि आखिर क्यों इस टेस्ट को करने की इतनी जरूरत है। नहीं भी करेंगे तो क्या बूरा होगा। चलिये आपके भीतर के इस अन्तर्द्वन्द्व को इस प्रकार से क्लियर करते हैं।
- अगर आपके शिशु को डाउन सिंड्रोम होने का खतरा होता है तो एमनियोटिक फ्लूइड के टेस्ट के मदद से इसका पता लगाया जा सकता है।
- फेटल लंग टेस्टिंग के आधार यह धारणा किया जा सकता है कि शिशु का लंग्स ठीक तरह से काम करेगा कि नहीं।
- यहां तक इस टेस्ट से भ्रूण को किसी प्रकार का इंफेक्शन तो नहीं है इस बात का पता लगाया जाता है।
- जिन शिशु को एनीमिया होता है वह आरएच सेंसिटाइजेशन (Rh sensitization) होते हैं उसकी जांच करने के लिए भी यह टेस्ट किया जाता है। यह वह अवस्था है जब माँ का इम्युन सिस्टेम विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन के विरूद्ध में शिशु के ब्लड सेल्स के सतह पर एंटीबॉडीज का उत्पादन करते हैं।
- अगर प्रेग्नेंसी के दौरान एमनियोटिक फ्लूइड अत्यधिक मात्रा में एकत्र हो जाता है तो इस टेस्ट की मदद से उसे निकाला जाता है।
- पैटरनिटी टेस्ट भी किया जाता है। एमनियोसेंटेसिस टेस्ट भ्रूण से डीएनए लेकर उससे पिता का डीएनए कॉम्पेयर करता है।
- अगर फर्स्ट ट्राइमेस्टर का रिजल्ट पॉजिटिव आता है तो डॉक्टर डायग्नोसिस करने के लिए यह टेस्ट करने की सलाह देते हैं।
- अगर पहले प्रेग्नेंसी में क्रोमोजोमल कंडिशन या न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट हुआ था तो इस प्रेग्नेंसी में भी खतरा हो सकता है। डाउन सिंड्रोम या न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट का खतरा शिशु को है कि नहीं यह पता लगाने के लिए एमिनो टेस्ट करना जरूरी हो जाता है। क्योंकि इस अवस्था के कारण शिशु की रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क प्रभावित हो सकती है।
- अगर आपकी उम्र 35 साल या उससे भी ज्यादा है तो शिशु को डाउन सिंड्रोम होने की संभावना होती है।
- अगर परिवार में किसी को डाउन सिंड्रोम या न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट स्पाइना बिफिडा का इतिहास है तो डॉक्टर एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने की सलाह देते हैं।
- अगर अल्ट्रासाउन्ड का रिजल्ट अच्छा नहीं आया है तो एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने के लिए कहा जाता है।
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एमनियोसेंटेसिस प्रक्रिया करने का तरीका
इस टेस्ट को करने के लिए सबसे पहले अल्ट्रासाउन्ड किया जाता है ताकि सुई लगाने के लिए सही स्थान का पता लगाया जा सके। इस प्रक्रिया को करने के लिए कम से कम 45 मिनट का समय लगता है। फ्लूइड को संग्रहित करने के लिए लगभग 5 मिनट लगता है। एमनियोटिक फ्लूइड इस टेस्ट को करने के लिए सबसे पहले अल्ट्रासाउन्ड किया जाता है ताकि सुई लगाने के लिए सही स्थान का पता लगाया जा सके। इस प्रक्रिया को करने के लिए कम से कम 45 मिनट का समय लगता है। फ्लूइड को संग्रहित करने के लिए लगभग 5 मिनट लगता है। एमनियोटिक फ्लूइड जो भ्रूण के कोशिकाओं से लिया जाता है वह लैब्राटोरी में एनालाइसिस के लिए भेज दिया जाता है। रिजल्ट कुछ दिनों में या कुछ हफ्तों में आ जाता है।
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एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने के दौरान क्या होता है
चलिये अब आपको विस्तार से प्रेग्नेंसी के दौरान एमिनो टेस्ट को कैसे किया जाता है जानते हैं। हेल्थकेयर असिस्टेंट अल्ट्रासाउंड के मदद से यूटेरस में बेबी के पोजिशन देखते हैं। इसके लिए आपको एग्ज़ाम टेबल पर लेटाया जाता है। पेट पर एक जेल जैसा पदार्थ लगाया जाता है। उसके बाद एक छोटा डिवाइस जिसको अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर कहते हैं उसके मदद से बेबी का पोजिशन मॉनिटर किया जाता है।
उसके बाद एंटीसेप्टिक से पेट को साफ किया जाता है। फिर अल्ट्रासाउंड के मदद से एक सुई को एब्डोमिनल वाल और यूटेरस के भीतर डाला जाता है। बहुत थोड़े-से मात्रा में सिरिंज से एमनियोटिक फ्लूइड को निकाल दिया जाता है। प्रेग्नेंसी के सप्ताह के आधार पर ही फ्लूइड को निकाला जाता है। प्रक्रिया के चलने के दौरान आपको स्थिर रहने की जरूरत है। जब त्वचा में सुई को घुसाया जाता है तब ऐंठन जैसा महसूस होता है।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करने के बाद किस तरह के परेशानियां होती हैं?
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट के दौरान डॉक्टर बेबी के हार्ट रेट को भी मॉनिटर कर पाते हैं। आम तौर पर एमिनो टेस्ट के बाद मरीज को पेट में ऐंठन या पेल्विक एरिया में बेचैनी जैसा महसूस होता है। टेस्ट के तुरन्त बाद ही आप अपने रूटीन लाइफ में लौट नहीं सकते हैं। सेक्चुअल एक्टिविटी और एक्सरसाइज से दो दिनों के लिए दूर रहें। इन सबके बावजूद अगर आपको कुछ समस्याएं होती हैं तो तुरन्त डॉक्टर से सलाह लें। जैसे-
- कई घंटों तक पेट में ऐंठन जैसा दर्द होना
- बुखार
- ज्यादा वजाइनल ब्लीडिंग होना
- एमनियोटिक फ्लूइड ज्यादा निकलना
- जहां पर सुई लगाई गई है वहां पर लालिमा या सूजन होना
- शिशु का हिलना डुलना कम होना या अजीब महसूस होना।
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एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से मां और गर्भस्थ शिशु या शिशु के जन्म के बाद क्या खतरा होता है
अब आता है सबसे अहम् सवाल, क्या इस टेस्ट को करना सेफ होता है? वैसे तो इस टेस्ट को करने से संभवत: कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। लेकिन बहुत समय ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब माँ और शिशु को नुकसान पहुँचने का खतरा बन जाता है।
1-आम तौर पर एमनियोटिक फ्लूइड कुछ दिनों या एक हफ्ते तक वजाइना से निकलता है लेकिन कुछ दिनों के बाद बंद हो जाता है। इससे गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
2-गर्भपात होने की संभावना 0.1 से 0.3 प्रतिशत रहता है। रिसर्च से यह पता चलता है कि अगर यह टेस्ट प्रेग्नेंसी के 15 वें हफ्तें मे किया जाता है तो यह खतरा होने का संभावना ज्यादा रहता है।
3-सुई से शिशु को नुकसान भी पहुँच सकता है, क्योंकि सारी एहतियात बरतने के बावजूद सुई देते समय अगर शिशु का हाथ या पैर आ जाता है उसको नुकसान पहुँच सकता है।
4-वैसे तो इस टेस्ट के दौरान खास कोई इंफेक्शन होने का डर नहीं रहता है। लेकिन एमिनो टेस्ट के दौरान यदि आपको यूटेरिन इंफेक्शन, हेपाटाइटिस सी, टोक्सोप्लाज़मोसिस या एचआईवी/ एड्स है तो शिशु तक यह इंफेक्शन होने का खतरा बन सकता है।
अंतिम में यही कह सकते हैं कि शिशु के स्वस्थ और सेहतमंद जन्म लेने के स्वार्थ से एमिनो टेस्ट करवाना चाहिए। इस टेस्ट को करने से अगर शिशु में कोई भी डिस्ऑर्डर नजर आता है तो उसका इलाज करना संभव होता है।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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