backup og meta

क्या टाइप 1 डायबिटीज और सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज (STD) में संबंध है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/04/2021

    क्या टाइप 1 डायबिटीज और सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज (STD) में संबंध है?

    डायबिटीज में मरीज का ग्लूकोज लेवल बढ़ जाता है और इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता। टाइप 1 डायबिटीज के लिए अधिकतर अनुवांशिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है, जबकि सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज (STD) असुरक्षित यौन संबंध बनाने, दूषित इंजेक्शन या एक से अधिक पार्टनर से सेक्स संबंध रखने पर हो सकता है। कई डायबिटीज मरीजों के मन में यह शंका होती है क्या टाइप 1 डायबिटीज होने के कारण उन्हें STD होने का खतरा अधिक होता है? आइए, जानते हैं क्या टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी (सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज) एक दूसरे से कोई कनेक्शन है?

    सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज क्या है? (What Is Sexually Transmitted Disease)

    यह एक तरह का संक्रमण है जो यौन संबंध बनाने के दौरान एक संक्रमित से दूसरे पार्टनर तक पहुंचता है। सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिसीज के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया, वायरस और पैरासाइट संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक ब्लड, सीमेन, वजायनल फ्लूड के जरिए पहुंचते है। इसलिए हमेशा यौन संबंध बनाने के दौरान सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए कहा जाता है। कई बार एसटीडी नॉन सेक्शुअल एक्टिविटी जैसे संक्रमित मां से गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच सकता है, दूषित इंजेक्शन या ब्लड ट्रांस्फ्यूजन के जरिए भी यह एक से दूसरे तक फैल सकता है। हालांकि ज्यादातर मामलों में संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध बनाने के दौरान ही एसटीडी होने का खतरा सबसे अधिक होता है।

    टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी

    क्या टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी का कोई संबंध है (Type 1 Diabetes And STD)?

    जहां तक टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी का सवाल है तो एक्सपर्ट्स की मानें तो डायबिटीज (diabetes) की वजह से सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (sexually Transmitted Diseases) नहीं होती है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि एसटीडी भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को बढ़ा देता है। लॉस एंजेलस की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिन लोगों की क्लैमाइडिया की हिस्ट्री रही है उनमें टाइप 2 डायबिटीज डायग्नोस होने का खतरा 82 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। स्पैनिश शोधकर्ताओं के मुताबिक, क्लैमाइडिया और हर्पीस जैसे सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज मिडिल एज लोगों में इंसुलिन की संवेदनशीलता को बढ़ा देता है। हालांकि टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी के संबंध को लेकर बहुत अधिक रिसर्च नहीं हुई है। लेकिन अभी तक जो भी रिसर्च हुई है उसमें टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी में कोई सीधा संबंध नहीं देखा गया है। हां, विशेषज्ञों के मुताबिक एसटीडी डायबिटीज के मरीजों में ब्लड ग्लूकोज लेवल बढ़ा सकता है। इसलिए इसका पता चलने पर तुरंत उपचार की जरूरत है, वरना जटिलताएं हो सकती हैं। यदि आपका ब्लड ग्लूकोज लेवल बहुत अधिक है और आपको एसटीडी होने का शक है तो जितना जल्दी हो सकते डॉक्टर से सलाह लें, क्योंकि एसटीडी के अधिकांश मामलों में जल्दी और आसानी से उपचार किया जा सकता है। एसटीडी से बचाव के लिए हमेशा यौन संबंध बनाने के दौरान कॉन्डम का इस्तेमाल सुरक्षित रहता है। टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी से जुड़ी जानकारी के बाद बढ़ते हैं आगे।

    और पढ़ें- चार स्टेज में फैलती है सिफलिस की बीमारी, तीसरी स्टेज होती है सबसे खतरनाक

    क्या एसटीडी (STD) टाइप 1 डायबिटीज मरीजों का शुगर लेवल बढ़ा देता है?

    टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी में कोई सीधा संबंध नहीं है यानी डायबिटीज के कारण एसडीटी नहीं होता, लेकिन कोई डायबिटीज पेशेंट यदि एसटीडी से पीड़ित हो जाता है तो उनका ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। साथ ही डायबिटीज के मरीजों के लिए संक्रमण से लड़ना सामन्य लोगों के मुकाबले मुश्किल होता है। डायबिटीड पेशेंट यदि एसटीडी से संक्रमित होता है तो उसका ब्लड शुगर लेवल बहुत अधिक बढ़ जाता है जिससे डायबिटीक कीटोएसिडोसिस का खतरा बढ़ जाता है। यदि लंबे समय से आपका ब्लड शुगर लेवल अधिक रहता है तो इस बारे में आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत है। आपके शुगर लेवल को कंट्रोल करना कितना मुश्किल है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने बीमार हैं या किस तरह के संक्रमण से ग्रसित है, क्योंकि अलग-अलग एसटीडी में ब्लड शुगर लेवल अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है।

    आमतौर पर ज्यादातर सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज एंटीबायोटिक्स या एंटीफंगल दवाओं से ठीक हो जाते हैं। इन दवाओं का आपके ब्लड शुगर लेवल पर असर भी अलग-अलग होता है, लेकिन अधिकांश का मानना है कि इससे ब्लड शुगर लेवल खतरनाक स्तर तक कम हो सकता है। जिससे डायबिटीज के मरीजों की मुश्किल और बढ़ सकती है। ऐसे में डॉक्टर स्थिति का पूरा मूल्यांकन करने और आपकी मेडिकल हिस्ट्री देखने के बाद ही इलाज का तरीका सोचता है। सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज जहां ब्लड शुगर लेवल बढ़ा देती है, वहीं इसके इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाओं से शुगर लेवल कम हो जाता है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों के एसडीटी से पीड़ित होने पर बार-बार अपना ग्लूकोज लेवल चेक करने की जरूरत होती है। टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी का सीधा कोई संबंध नहीं है।

    सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज के लक्षण (Sexually Transmitted Diseases Symptoms)

    टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी से जुड़ी जानकारी के बाद जान लेते हैं STD के लक्षण। सेक्शुअली ट्रासमिटेड डिसीज का जल्दी उपचार कराने के लिए इसके लक्षणों का पता होना जरूरी है। वैसे तो जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति में इसके लक्षण दिखे ही, लेकिन इसके कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल है।

    • गुप्तांग या रेक्टल एरिया में घाव या छाले
    • पेशाब के समय दर्द या जलन होना
    • पेनिस से डिस्चार्ज होना
    • वजाइनल डिस्चार्ज से दुर्गंध आना
    • असामान्य वजाइनल ब्लीडिंग
    • सेक्स के दौरान दर्द
    • लिम्फ नोड्स में सूजन या घाव
    • पेट के निचले हिस्से में दर्द
    • बुखार
    • हाथ, पैर या शरीर पर रैशेज

    लक्षणों को उभरने में कुछ दिनों का भी समय लग सकता है या कई साल भी लग सकते हैं जब तक कि आपको इससे किसी तरह की परेशानी न हो।

    और पढ़ें- एनल एसटीआई टेस्टिंग क्या है और ये क्यों जरूरी है

    सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज के प्रकार (Types Of Sexually Transmitted Diseases)

    टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी का कोई कनेक्शन तो नहीं है, लेकिन सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज के प्रकार जानना जरूरी है।

    क्लैमाइडिया (Chlamydia)

    क्लैमाइडिया रोग ट्रैकोमैटिस नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। यह बैक्टीरिया सिर्फ इंसानों में ही इंफेक्शन फैलता है। सही समय पर निदान करने पर इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। इसके लक्षणों में शामिल है-

  • सेक्स और पेशाब के समय दर्द या असहजता
  • पेनिस और वजाइना से हरा या पीला डिस्चार्ज
  • पेट के निचले हिस्से में दर्द
  • यूरेथ्रा, प्रोस्टेट ग्लैंड या टेस्टिकल्स का संक्रमण
  • पेल्विक इन्फ्लामेट्री डिसीज
  • इन्फर्टिलिटी
  • यदि किसी नवजात को मां से क्लैमाइडिया होता है तो इससे गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं जैसे न्यूमोनिया, आई इंफेक्शन और अंधापन।

    एचपीवी HPV (Human Papillomavirus)

    ह्यूमन पैपीलोमावायरस से संक्रमित होने पर आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। है। एचपीवी का सबसे आम लक्षण जननांगों, मुंह या गले पर मस्सा होना। एचपीवी के अधिकांश मामले बिना इलाज के ही ठीक हो जाता है। एचपीवी संक्रमण होने पर व्यक्ति को ओरल कैंसर, जेनिटल कैंसर या रेक्टल कैंसर भी हो सकता है। वैसे तो इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके गंभीर प्रकार से बचाने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है।

    सिफलिस (Syphilis)

    सिफलिस बैक्टीरिया से होने वाला यह एक अन्य एसटीडी है जिसके लक्षण जल्दी नजर नहीं आते है। इसमें व्यक्ति के प्राइवेट पार्ट, रेक्टम या मुंह पर घाव हो सकता है। इसके दर्द नहीं होता, लेकिन यह रोग संक्रामक है। इससे पीड़ित व्यक्ति में लाल चकत्ते, थकान, बुखार, सिरदर्द, जोड़ों का दर्द, वजन कम होना या बाल झड़ने जैसे लक्षण दिखते हैं।

    एचआईवी (HIV)

    यह भी सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज है जो पीड़ित के इम्यून सिस्टम को कमजोर बना देता है। इसका समय रहते इलाज न करने पर स्थिति गंभीर हो जाती है और यह एड्स का रूप ले लेती है। इसके लक्षणों में शामिल है बुखार, ठंडी लगना, दर्द, गले में खराश, सिरदर्द, जी मिचलाना व चकत्ते आदि।

    गोनोरिया (Gonorrhea)

    यह एक अन्य एसटीडी है जिसके लक्षण जल्दी नजर नहीं आते और इसके अधिकांश लक्षण क्लैमाइडिया जैसे ही होते हैं। इसमें होने वाले डिस्चार्ज का रंग सफेद या पीला हो सकता है। इसमें गले में खराश महसूस होती है और जननांगों के पास खुजली भी हो सकती है। नवजात के लिए यह जानलेवा हो सकता है।

    और पढ़ें- STD टेस्टिंग: जानिए कब टेस्ट है जरूरी और रखें इन बातों का ख्याल

    क्या कॉन्ट्रासेप्शन (गर्भनिरोधक) से सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज से बचा जा सकता है?

    कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स, इंजक्शन, इंप्लांट या इंट्रा यूटराइन डिवाइस (IUD) आदि कॉन्ट्रासेप्शन के सामान्य तरीक है जो अनचाही प्रेग्नेंसी से बचाते हैं, मगर कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि इससे एसटीडी से भी बचाव संभव है जो सही नहीं है। एसटीडी से बचाव का सबसे बेहतर तरीका कॉन्डम ही है। वैसे आप यदि कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स का इस्तेमाल कर रही हैं तो इससे आपके शुगर लेवल में बदलाव हो सकता है। इसलिए आप यदि डायबिटीज की शिकार हैं, तो कॉन्ट्रासेप्शन का कोई भी तरीका इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर की राय अवश्य लें।

    सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज से बचाव (Avoidance Of Sexually Transmitted Disease)

    एसटीडी से बचाव के लिए सतर्क और जागरुक रहना बहुत जरूरी है साथ ही कुछ बातों का ध्यान रखें-

    • एक ही सेक्सुअल पार्टनर के साथ संबंध बनाएं और कॉन्डम का इस्तेमाल करें।
    • बेहतर होगा कि संबंध बनाने के पहले दोनों पार्टनर अपनी एसटीडी जांच करवा लें।
    • यदि किसी एक पार्टनर को सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज है तो उसे ईमानदारी से दूसरे पार्टनर को बता देना चाहिए और संबंध बनाने से परहेज करें।
    • जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाएं।

    और पढ़ें- Herpes Simplex: हार्पीस सिम्पलेक्स वायरस से किसको रहता है ज्यादा खतरा?

    सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज वैसे तो हर किसी के लिए चिंता का विषय है, लेकिन डायबिटीज के मरीजों के लिए यह और परेशान करने वाला है क्योंकि इससे संक्रमण और गंभीर हो सकता है। यदि आपका ग्लूकोज लेवल बहुत ज्यादा है तो आपको एसटीडी जैसे संक्रामक बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है और यदि आप एसटीडी से पीड़ित हैं तो यह आपके ब्लड शुगर लेवल को बढ़ा देता है जिससे डायबिटिक केटोएसिडोसिस का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए डायबिटीज मरीजों को एसटीडी को लेकर खास सावधानी बरतने की जरूरत है। टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी से बचने के लिए डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

    उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और टाइप 1 डायबिटीज और एसटीडी  से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

    के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

    डॉ. प्रणाली पाटील

    फार्मेसी · Hello Swasthya


    Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/04/2021

    advertisement iconadvertisement

    Was this article helpful?

    advertisement iconadvertisement
    advertisement iconadvertisement