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शीतदंश ठंड से त्वचा को होने वाला नुकसान है और यह लंबे समय तक ठंडे तापमान के संपर्क में रहने के कारण होता है (आमतौर पर 32 डिग्री F से नीचे)। शीतदंश के लक्षण आमतौर पर उंगलियों, हाथ, पैर की उंगलियां, पैर, कान, नाक और गाल पर देखे जा सकते हैं। यह समस्या स्थायी रूप से शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है, और गंभीर मामलों में अंग काटने की नौबत तक आ सकती है। ठंड में खुले अंगों और त्वचा पर इसका प्रभाव अधिक पड़ता है लेकिन शीतदंश से ग्लव्स और अन्य कपड़ों से ढंकी त्वचा को भी नुकसान हो सकता है। इस समस्या में प्रभावित अंग सुन्न हो सकते हैं या उनमें झुनझुनी हो सकती है। ठंड से लगने वाली चोटों को तीन डिग्री में बांटा जा सकता है-फ्रोस्टनीप, सुपरफिशल शीतदंश और डीप शीतदंश। बच्चों, वृद्धों और सर्कुलेटरी समस्याओं वाले लोगों को शीतदंश का अधिक खतरा होता है, लेकिन ज्यादातर मामले 30 से 49 तक की उम्र के वयस्कों के आते हैं।
शीतदंश को गंभीरता के अनुसार अलग डिग्री में बांटा गया है, ऐसे में उनके लक्षण भी अलग हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं:
यह केवल त्वचा की सतह को प्रभावित करता है। इसके शुरुआती लक्षण हैं दर्द और खुजली। इसके बाद त्वचा पर सफेद और पीले पैच बन जाते हैं और वो भाग सुन्न हो सकता है। यह शीतदंश शरीर को स्थायी नुकसान नहीं पहुंचाता। हालांकि, पहली डिग्री शीतदंश के साथ त्वचा का भाग थोड़े समय के लिए गर्मी और ठंड के प्रति संवेदनशीलता खो सकता है।
यह त्वचा के जमने और कठोर होने का कारण हो सकता है लेकिन त्वचा के गहरे ऊतकों को प्रभावित नहीं करता है। दो दिन के बाद त्वचा के जो भाग जम गए हैं, उनमें बैंगनी छाले हो सकते हैं। यह छाले काले व सख्त हो जाते हैं। जिन्हे ठीक होने में 3–4 हफ्ते लग सकते हैं। जिन लोगों को दूसरी डिग्री का शीतदंश होता है वो उस स्थान में दर्द, कुछ महसूस न होना या सुन्न होना जैसी समस्याएं महसूस कर सकते हैं।
यह शीतदंद बहुत ही गंभीर है। जिसमे त्वचा और शरीर को अधिक नुकसान होता है। इसमें मांसपेशियां, ब्लड वेसल्स, नसें और टेंडॉन्स जम जाते हैं। त्वचा नरम और मोम की तरह हो जाती है। कुछ लोग प्रभावित अंगों का प्रयोग नहीं कर पाते। यह समस्या कई लोगों के लिए स्थायी हो जाती है।
शीतदंश का सबसे बड़ा कारण है ठंडे मौसम में रहना। लेकिन, यह तब भी हो सकता है जब किसी का बर्फ, जमी हुई धातु या ठंडे तरल पदार्थों के साथ सीधा संपर्क हो।
शीतदंश की जिम्मेदार कुछ खास स्थितियां इस प्रकार है:
इन स्थितियों में शीतदंश का जोखिम बढ़ सकता है:
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शीतदंश का उपचार इसकी गंभीरता के अनुसार किया जाता है। जो इस प्रकार है:
शीतदंश का उपचार प्रभावित अंगों को गर्म करने से शुरू होता है। हालांकि, इस दौरान उन अंगों को गर्म करने के लिए उन्हें रगड़ने या मालिश करने की कोशिश न करें क्योंकि इससे त्वचा के टिशुओं को नुकसान हो सकता है। शीतदंश के शिकार व्यक्ति को ठंडे तापमान से गर्म कमरे या वातावरण में रखा जाता है। उनके कपड़ों को सुखाया जाता है। इसके साथ ही उन्हें रजाई या कंबल से ढका जा सकता है ताकि प्रभावित अंगों को गर्मी मिले।
प्रभावित व्यक्ति को गर्म करने प्रक्रिया धीरे-धीरे होनी चाहिए। शीतदंश से पीड़ित व्यक्ति के शरीर के प्रभावित हिस्सों को तब तक गर्म पानी में रख सकता है जब तक कि सामान्य रंग वापस न आ जाए। सामान्य ब्लड सर्कुलेशन शुरू होने पर ये क्षेत्र लाल और सूजे हुए हो सकते हैं। त्वचा के सामान्य रंग के दिखाई देने पर ठंडे क्षेत्र को गर्म पानी से हटा दें।
जब त्वचा गल जाती है तो डॉक्टर उस त्वचा की सुरक्षा के लिए इस स्थान को स्टेराइल शीट्स, तोलिये या ऐसी अन्य चीज़ से कवर करते है। उंगलियों और अंगूठे को शीतदंश से बचाने के लिए उन अलग किया जाता है क्योंकि वो एक दूसरे को गला सकते हैं।
अगर आपके शरीर पर छाले हो गए है तो डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक्स खाने के लिए दे सकते हैं। खून के प्रभाव को सामान्य करने के लिए आपकी नसों में इंजेक्शन लगाया जा सकता है जैसे टिश्यू प्लास्मीनजन एक्टिवेटर (TPA)। लेकिन, ये दवाएं गंभीर रक्तस्राव का कारण बन सकती हैं और आमतौर पर केवल सबसे गंभीर स्थितियों में और एक्सपोजर के 24 घंटों के भीतर उपयोग की जाती हैं।
हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी में एक दबाव वाले कमरे में शुद्ध ऑक्सीजन सांस के माध्यम से रोगी को दी जाती है। इस थेरेपी के बाद कुछ रोगियों में सुधार के लक्षण नजर आ सकते हैं।
डॉक्टर X-ray, हड्डियों का स्कैन या MRI करा सकते हैं। इससे उन्हें शीतदंश की गंभीरता का पता चल पायेगा। इसके साथ वो यह भी जान पाएंगे कि कहीं कोई हड्डी या मांसपेशी को नुकसान तो नहीं हुआ है।
गंभीर स्थितयों में सर्जरी की जाती है डेड टिश्यू या अंगों को निकाल दिया जाता है।
हमेशा ठंड या ठंडे स्थान में खुले, हल्के और आरामदायक गर्म कपड़े पहनें। ऐसे कपड़े पहने जो आपको ठंड से बचा सके। इसके साथ ही अगर आप किसी बारिश वाली जगह पर है तो अपने आपको पानी से बचाएं। ठंड या ठंडी जगह पर अपने हाथों और पैरों को बचाना भी आवश्यक है। इसलिए ऊनी जुराबों और दस्तानों के साथ यह भी ध्यान रखें कि आपके कपड़े अधिक तंग न हों, इनसे भी शीतदंश हो सकता है। आपके कपड़े और जूते ऐसे होने चाहिए ताकि उनके अंदर बर्फ या पानी न जाए।
अपने शरीर में पानी की कमी न होने दें। पानी की कमी होने से शीतदंश होने की संभावना बढ़ जाती है।
अगर आपको शुरुआत में ही शीतदंश के लक्षणों को पहचान जाते हैं तो इसके उपचार में कोई समस्या नहीं होती। इसलिए सबसे पहले इस समस्या के लक्षणों को पहचाने।
अगर आपको इसके लक्षण नजर आते हैं लेकिन आपको मेडिकल हेल्प नहीं मिल पा रही है तो मेडिकल हेल्प मिलने तक इन चीज़ों का ध्यान रखें:
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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