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खुजली वाली त्वचा या जिसे साइंस की भाषा में प्रुरिटस (pruritus) कहते हैं, कभी-कभी बेहद अनकम्फर्टेबल हो सकती है। नेशनल एक्जिमा एसोसिएशन (एनईए) के अनुसार, जो लोग अक्सर खुजली वाली त्वचा का अनुभव करते हैं, उन्हें नींद की समस्या से भी दो चार होना पड़ सकता है। ऐसे में वे एंग्जायटी के भी शिकार हो सकते हैं।
त्वचा पर खुजली करते समय कभी-कभी खरोंच भी आ सकती है, जिससे संक्रमण हो सकता है। खारिश वाली त्वचा के सामान्य कारणों में इन्सेक्ट बाइट्स, एलर्जी, स्ट्रेस और स्किन डिजीज (जैसे एक्जिमा और सोरायसिस) शामिल हैं। इन सबके बीच अच्छी बात यह है कि दाद खाज खुजली के आयुर्वेदिक उपचार आपको राहत दे सकते हैं। तो जानते हैं कि खुजली का आयुर्वेदिक इलाज क्या है, त्वचा रोगों के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी प्रभावी साबित होती है।
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ज्यादातर छोटी-मोटी त्वचा की समस्याएं, जैसे फफोले (blisters), स्किन इर्रिटेशन और सूजन, बाहरी कारणों की वजह से हो सकती है। जैसे- ज्वेलरी में निकल (nickel), कीड़े के काटने, इंफ्केटेड कट की वजह से सूजन और दर्द त्वचा को परेशान कर सकता है। वहीं, आयुर्वेद के अनुसार क्रोनिक स्किन कंडीशन जैसे कि सोरायसिस (psoriasis), एक्जिमा (eczema), पुरानी पित्ती (chronic hives), या मुहांसे (acne) की वजह आंतरिक कारण होते हैं। आयुर्वेद की माने तो रक्त, फेफड़े और यकृत में असंतुलन से उत्पन्न विषाक्त पदार्थ स्किन डिजीज का कारण बनते हैं।
आयुर्वेद में त्वचा की समस्याओं को जन्म देने वाले विषाक्त पदार्थ अतिरिक्त रक्त धातु (blood tissue) से उत्पन्न होते हैं। जब हम गर्म खाद्य पदार्थों, शराब, ज्यादा धूप के संपर्क में रहते हैं या तीव्र नकारात्मक भावनाओं का अनुभव करते हैं, तो स्किन डिजीज की संभावना बढ़ जाती है। पित्त बढ़े व्यक्तियों को वात या कफ बढ़े हुए लोगों की तुलना में त्वचा रोगों का अनुभव अधिक होता है। आयुर्वेद के अनुसार पित्त, ब्लड को और गर्म करता है जिससे त्वचा समस्याएं पैदा होती हैं। दूसरी ओर, जब रस और रक्त धातु शरीर में संतुलित होते हैं, तो त्वचा नम, स्मूथ और चमकदार होती है।
खुजली कई स्वास्थ्य स्थितियों का एक लक्षण है। कुछ सामान्य कारण हैं-
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खुजली का आयुर्वेदिक उपचार कई तरीकों से किया जाता है। जैसे-
विरेचन (Virechana)
विरेचन आयुर्वेदिक थेरेपी से पीलिया, पित्त विकार, दमा (asthma), मिर्गी (epilepsy) और स्किन कंडीशन के इलाज के लिए अच्छी मानी गई है। इस प्रक्रिया में रेक्टल रूट से बॉडी में मौजूद एक्स्ट्रा पित्त, वात, कफ और टॉक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए कई तरह की जड़ी बूटियों को शामिल किया जाता है।
इन हर्ब्स को व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार चुना जाता है। अगर आप एक्जिमा का आयुर्वेदिक इलाज ढूंढ रहे हैं तो विरेचन प्रक्रिया इसमें उपयोगी हो सकती है और एक्जिमा के कारण होने वाली खुजली से छुटकारा मिल सकता है। इसे खुजली का आयुर्वेदिक इलाज कह सकते हैं।
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वमन
इस आयुर्वेदिक प्रक्रिया में व्यक्ति में बढ़े हुए दोष को उल्टी के माध्यम से निकाला जाता है। वमन से शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थ और बढ़े हुए पित्त और कफ को खत्म करने में मदद मिलती है। वमन प्रक्रिया विशेष रूप से सोरायसिस के इलाज में बहुत उपयोगी है और इस स्किन डिजीज की वजह से होने वाली खुजली को कम कर सकती है।
रक्तमोक्षण (Raktamokshana)
रक्तमोक्षण एक प्रकार का रक्तपात है। इसमें आमतौर पर मैटेलिक इंस्ट्रूमेंट्स (metallic instruments) का उपयोग किया जाता है। इस आयुर्वेदिक प्रक्रिया में ब्लड स्ट्रीम से टॉक्सिन्स को करके रक्त-जनित बिमारियों (blood-borne conditions) का इलाज किया जाता है। यह ल्यूकोडरमा, खुजली, चिकनपॉक्स और सोरायसिस जैसी तमाम त्वचा संबंधित बिमारियों को मैनेज करने में प्रभावी है। इन स्किन प्रॉब्लम्स के कारण होने वाली खुजली को कम करने में यह आयुर्वेदिक प्रक्रिया मदद कर सकती है।
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लेप (Lepa)
खुजली का आयुर्वेदिक इलाज तलाश कर रहे हैं तो ये बेस्ट इलाज है। कई अवयवों जैसे- अमलकी (आंवला), तेल, जौ, वचा (calamus) आदि से तैयार किया गया एक तरह का आयुर्वेदिक लेप है। इसका इस्तेमाल प्रभावित हिस्से पर किया जाता है। दोषघ्न (दोष-निवारण), विघ्न (विष-निरोध) और वारण्य मुक्हल्पा (कॉस्मेटिक) लेप, आयुर्वेदिक में तीन प्रकार के लेप हैं। इनका इस्तेमाल खुजली की समस्या में फायदेमंद है।
उद्वर्थन (Udvarthana)
इसमें कई तरह की जड़ी बूटियों के मिश्रण से एक हर्बल पाउडर तैयार किया जाता है। इस हर्बल पाउडर का इस्तेमाल खुजली के उपचार में किया जाता है।
कई वर्षों से खुजली का आयुर्वेदिक इलाज हर्ब्स के माध्यम से किया जा रहा है।
खदिरा
दाद खाज खुजली की आयुर्वेदिक हर्ब में कई फाइटोकोनस्टिटुएंट्स (phytoconstituents) जैसे- कैटेचिन (catechin), टैनिन्स (tannins) सक्रिय तत्त्व मौजूद होते हैं। यह सोरायसिस के उपचार में काफी उपयोगी है।
हरिद्रा
हरिद्रा में जीवाणुरोधी (antibacterial), कैरीमैनेटिव (carminative) और कृमिनाशक (anthelmintic) गुण होते हैं। इस हर्ब का उपयोग सोरायसिस, दाद, प्रुरिटस (pruritus) और स्किन एलर्जी के उपचार में किया जाता है। हरिद्रा का इस्तेमाल काढ़े, पाउडर, पेस्ट, लेप के रूप में डॉक्टर की सलाह से कर सकते हैं।
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दारुहरिद्रा (Daruharidra)
दारुहरिद्रा त्वचा रोगों के लिए आयुर्वेदिक दवा है जो पाचन तंत्र पर काम करती है। इसके इस्तेमाल से शरीर से बढ़े हुए पित्त का नाश होता है जो अधिकांश स्किन डिजीज का कारण बनता है। आयुर्वेदिक डर्मेटोलॉजिस्ट दारूहरिद्रा को अक्सर खुजली सहित सोरायसिस के लक्षणों को कम करने के लिए निर्देशित करते हैं। इसका काढ़ा, पाउडर, पेस्ट का इस्तेमाल डॉक्टर के निर्देशानुसार किया जा सकता है।
निम्बा
इस आयुर्वेदिक दवा में कृमिनाशक (anthelmintic) और एंटीसेप्टिक (antiseptic) गुण होते हैं। खुजली के लिए आयुर्वेदिक दवा के रूप में इसका सेवन किया जाता है। इसके सेवन से ब्लड साफ़ होता है जिससे बॉडी से सभी विषाक्त पदार्थ को बाहर निकलते हैं। इस दवा का उपयोग एक्जिमा और चिकनपॉक्स के कारण होने वाली खुजली में आराम पहुंचाता है।
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मंजिष्ठा (Manjishtha)
मंजिष्ठा रक्त-शुद्ध करने वाली कई जड़ी-बूटियों में से सबसे प्रभावी है, जो ब्लड फ्लो को सुधारता है। इससे बॉडी के टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं। इसके औषधीय गुण सोरायसिस के ट्रीटमेंट में मददगार होते हैं। साथ ही इसका उपयोग पीलिया, हेपेटाइटिस और गठिया के इलाज में भी किया जाता है। इसे पाउडर, लेप, काढ़े के रूप में डॉक्टर की सलाह से इस्तेमाल किया जा सकता है।
गंधक रसायन
दाद, खुजली के लिए आयुर्वेदिक दवा के रूप में यह हर्बल फॉर्मूला काफी प्रभावकारी है। गुड़, पिप्पली, अदरक, दालचीनी की पत्तियां और छाल, काली मिर्च, शहद आदि जड़ी-बूटियों को मिलाकर यह दवा तैयार की जाती है। यह दवा ब्लड को साफ करने में मदद करती है। इससे फोड़े, कुष्ठ और दूसरी क्रोनिक स्किन कंडीशन के उपचार में मदद मिलती है। इसका इस्तेमाल एक्जिमा के इलाज में भी किया जाता है। नतीजन, एक्जिमा की वजह से होने वाली खुजली कम हो जाती है।
मंजिष्ठादि क्वाथ (Manjishthadi kwatha)
यह आयुर्वेदिक क्वाथ 10 आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों (जैसे-हरिद्रा, मंजिष्ठ, त्रिफला आदि) से मिलकर बनाया जाता है। इसे गठिया और डायबिटीज के आयुर्वेदिक इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। एक्जिमा की वजह से होने वाली खुजली को दूर करने के लिए इसको उपयोग में लाया जाता है।
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आरोग्यवर्धिनी वटी (Arogyavardhini vati)
यह आयुर्वेदिक दवा न केवल बिमारियों को ठीक करती है बल्कि पूरी हेल्थ को बेहतर बनाने में हेल्प करती है। इसके इस्तेमाल से दाद, सोरायसिस और एक्जिमा जैसे कई त्वचा रोगों को मैनेज करना आसान हो जाता है। इससे स्किन डिजीज की वजह से होने वाली खुजली भी कम होती है। खुजली के आयुर्वेदिक इलाज में उपयोग की जाने वाली इस दवा को नीम, त्रिफला, अभ्रक भस्म (calcined preparation of mica), और ताम्र भस्म (calcined preparation of copper) आदि के मिश्रण से बनाया जाता है।
ऊपर बताए गए खुजली के आयुर्वेदिक उपचार हर व्यक्ति की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग होते हैं इसलिए, दवाओं और ट्रीटमेंट के लिए हमेशा आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
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आयुर्वेदिक इलाज से ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके, इसके लिए पेशेंस और डिसिप्लिन रखने की जरुरत होती है। उपचार शुरू करने के दो सप्ताह के भीतर कंडीशन बेहतर महसूस हो सकती है। एक स्टडी से सामने आया कि जालुकवचारण कर्म (Jalaukavacharana Karma) जो कि एक आयुर्वेदिक मेथड है, के इस्तेमाल से एक्जिमा के उपचार में काफी मदद मिली। इसके उपयोग से एक्जिमा के लक्षणों में राहत मिली। वहीं सिरवेदना कर्म से पीट और रक्त दोष में आराम मिला। आंतरिक स्नेहापन और अभ्यंग के साथ तीन दिनों तक किया गया सिरवेदना कर्म से और बेहतर परिणाम मिलें।
दाद-खाज-खुजली का आयुर्वेदिक इलाज आयुर्वेदिक डॉक्टर की देखरेख में ही होना चाहिए। हर व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है। इसलिए जरूरी नहीं है कि हर हर्ब सबके लिए फायदेमंद ही साबित हो। जैसे जिन लोगों में वात अधिक होता है, उन्हें दारुहरिद्रा के उपयोग में बहुत सतर्कता की आवश्यकता होती है। बिना डॉक्टर की सलाह से ली गई आयुर्वेदिक दवा या हर्बल प्रॉडक्ट स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं और स्थिति को और बदतर बना सकते हैं।
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क्या करें?
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क्या न करें?
खुजली का आयुर्वेदिक इलाज जितना प्रभावी है उतना ही कभी-कभी घरेलू इलाज भी होता है।
खुजली बहुत ही असहज हो सकती है। इसलिए, खुजली के कारण को जानकर उसका समय रहते इलाज कराना जरूरी है। आप चाहें तो इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।
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