भारत देश भले ही प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहा हो, लेकिन ये बात हैरान कर देती है कि हर साल कई महिलाओं कि सिर्फ इसलिए मृत्यु हो जाती है क्योंकि उनको सही पोषण और उचित सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। यूनिसेफ के प्रमुख प्रकाशन द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन रिपोर्ट के अनुसार 78,000 महिलाओं को प्रेग्नेंसी से लेकर डिलिवरी के बीच तक मौत का सामना करना पड़ता है। एक प्रेग्नेंट महिला की मौत का मतलब होता है कि दो लोगों की मौत हो जाना।
महिलाओं के स्वास्थ्य पर अगर बचपन से ही ध्यान दिया जाए तो शायद ऐसी भयावह स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। एक स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए मां का स्वस्थ होना बहुत जरूरी होती है।
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गर्ल चाइल्ड डे पर ये जानना है जरूरी
गर्ल चाइल्ड के लिए 1991-2000 के दौरान नेशनल एक्शन प्लान बनाया गया था। इस प्लान के तहत ये बात कही गई थी कि महिलाओं और गर्ल चाइल्ड को खुद ही अपने बारे में सोचना होगा और लोगों का नजरिया बदलना होगा। लड़कियों ने कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। भारत में लड़कियों के जन्म के बाद उनको कई चीजों से अलग कर दिया जाता है। लड़का न पैदा करने की स्थिति में महिलाओं को ही दोषी माना जाता है। जबकि सच तो ये है कि लड़का पैदा होगा या फिर लड़की, ये पुरुष का स्पर्म तय करता है, न कि महिला।
सही स्वास्थ्य सुविधाएं न मिल पाने के कारण कम उम्र में ही महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। देश भर में केरला ही ऐसा राज्य है जहां का सेक्स रेशियो सही है। ज्यादातर राज्यों में सेक्स रेशियो यानी लिंग अनुपात में भारी अंतर देखने मिलता है। ज्यादातर पूर्वी और उत्तरी राज्यों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है। वहीं 100 जिले की महिलाएं निरक्षर यानी बिल्कुल भी पढ़ी लिखी नहीं हैं। महिलाओं को स्कूल इनरॉलमेंट पुरुषों की अपेक्षा 50 % तक कम है।
गर्ल चाइल्ड डे पर जाने मृत्यु दर (Death rate) है कितनी?
सैंपल रजिस्ट्रेशन रेट (IMR) के अनुसार, 2016 में 34 में से केवल एक गर्ल चाइल्ट के जीवित बच जाने की संभावना थी। यानी 34 लड़कियां पैदा होने के बाद कुछ ही समय बाद केवल एक ही लड़की जिंदा बची, बाकी सबकी मौत हो गई। वहीं 2017 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (SRS) के अनुसार, 29 राज्यों में से केवल पांच राज्यों में एक गर्ल चाइल्ड के जीवित रहने की अधिक संभावना थी। ये वाकई भयावह रिजल्ट हैं। यानी गर्ल चाइल्ड की मृत्यु दर अधिक है। सैंपल रजिस्ट्रेशन रेट के अनुसार मरने वाली लड़कियों की उम्र एक साल से भी कम थी।
लड़कियों की मृत्यु दर (Death rate of girls)
ज्यादातर सभी राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की मृत्युदर अधिक पाई गई है। कुछ राज्यों में जैसे कि छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्यप्रदेश, तमिलनाडू और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में गर्ल चाइल्ड की मृत्युदर अधिक पाई गई। ये सभी रिपोर्ट्स तीन साल के सर्वे पर बेस्ड है। साल 2015 से 2017 तक में सर्वे किया गया था। 0-4 वर्ष तक की गर्ल चाइल्ड की मृत्यु दर 8.9 थी, वही भारत के ग्रामीण इलाको में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मृत्युदर 10.0 पाई गई। वहीं शहरी क्षेत्रों में मृत्युदर यानी गर्ल चाइल्ड मोरेलिटी 6.0 थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि 19.8% गर्ल चाइल्स की डेथ अप्रशिक्षित अधिकारियों की वजह से हुई।