परिचय
हाइपोथर्मिया क्या है?
हाइपोथर्मिया या कोल्ड एक्सपोजर एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब शरीर का तापमान 95 ° F से नीचे चला जाता है। हाइपोथर्मिया के कारण कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। हाइपोथर्मिया विशेषरुप से इसलिए खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के सोचने की क्षमता को अधिक प्रभावित करता है।
मानव शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है लेकिन हाइपोथर्मिया की स्थिति में शरीर का तापमान 35 डिग्री सेल्यियस से कम हो जाता है। चूंकि हाइपोथर्मिया ठंडे मौसम के संपर्क में आने या ठंडे पानी में नहाने के कारण होता है इसलिए इसे कोल्ड एक्सपोजर कहा जाता है। बॉडी का तापमान कम होने के कारण हृदय, नर्वस सिस्टम और शरीर के अन्य अंग सामान्य रुप से कार्य नहीं कर पाते हैं। इससे हृदय और रेस्पिरेटरी सिस्टम फेल होने का जोखिम रहता है।अगर समस्या बढ़ जाती है तो आपके लिए गंभीर स्थिति बन सकती है ।
इसलिए इसका समय रहते इलाज जरूरी है। इसके भी कुछ लक्षण होते हैं ,जिसे ध्यान देने पर आप इसकी शुरूआती स्थिति को समझ सकते हैं।
कितना सामान्य है हाइपोथर्मिया होना?
हाइपोथर्मिया एक सामान्य डिसॉर्डर है। ये महिला और पुरुष दोनों में सामान प्रभाव डालता है। पूरी दुनिया में लाखों लोग हाइपोथर्मिया से पीड़ित हैं। हाइपोथर्मिया बच्चों, बुजुर्गों, मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों, लंबे समय तक ठंडे तापमान में रहने वाले लोगों, एल्कोहॉल और ड्रग का सेवन करने वाले लोगों और डायबिटीज सहित अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों पर अधिक प्रभाव डालता है। ज्यादा जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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लक्षण
हाइपोथर्मिया के क्या लक्षण है?
हाइपोथर्मिया शरीर के कई सिस्टम को प्रभावित करता है। हाइपोथर्मिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर का तापमान गिर जाता है और लक्षण धीरे-धीरे नजर आते हैं। समय के साथ हाइपोथर्मिया के ये लक्षण सामने आने लगते हैं :
- तेज कंपकंपी
- सांस धीमी चलना
- यादाश्त कमजोर होना
- कन्फ्यूजन
- थकान
- बोलने में कठिनाई
- त्वचा लाल पड़ना
- एनर्जी कम होना
- ब्लड प्रेशर घटना
कभी-कभी कुछ लोगों में इसमें से कोई भी लक्षण सामने नहीं आते हैं और अचानक से कुछ समय के लिए व्यक्ति अचेत हो जाता है।
वयस्कों की अपेक्षा शिशुओं और बच्चों का शरीर अधिक ठंडा होता है। जिसके कारण हाइपोथर्मिया के निम्न लक्षण नजर आते हैं:
- लगातार रोना
- कमजोरी
- त्वचा लाल पड़ना
- कोल्ड स्किन
हाइपोथर्मिया से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक विकार भी हो सकता है। जैसे- डिप्रेशन, चिंता,घबराहट या व्यवहार में बदलाव।
इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी सामने आते हैं :
- हाथ पांव ठंडे पड़ना
- सामान्य से अधिक ठंड लगना
- स्किन सिकुड़ जाना
- नींद न आना
- चक्कर आना
- भूख न लगना
- उल्टी और मितली
- ब्लड प्रेशर बढ़ना
मुझे डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
ऊपर बताएं गए लक्षणों में किसी भी लक्षण के सामने आने के बाद आप डॉक्टर से मिलें। हर किसी के शरीर पर हाइपोथर्मिया अलग प्रभाव डाल सकता है। इसलिए किसी भी परिस्थिति के लिए आप डॉक्टर से बात कर लें। हाइपोथर्मिया से पीड़ित व्यक्ति का हार्ट बीट बढ़ सकता है इसलिए उसे घबराहट होने, यादाश्त कमजोर होने या बेचैनी होने पर तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
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कारण
हाइपोथर्मिया होने के कारण क्या है?
ठंड का मौसम हाइपोथर्मिया का मुख्य कारण है। जब शरीर में अधिक ठंड लगती है तो इसकी गर्माहट तेजी से घटने लगती है जिसके कारण हाइपोथर्मिया होता है। ठंडे पानी में अधिक देर तक तैरने या नहाने से भी शरीर पर हाइपोथर्मिया का प्रभाव पड़ता है। कोल्ड एक्सपोजर के कारण हाइपोथर्मिया होना आम समस्या है।
इसके साथ ही कम गर्म कपड़े पहनने, ठंडे वातावरण में रहने, नाव पलटने की दुर्घटना होने और अधिक देर तक एयर कंडीशन रुम में रहने के कारण भी हाइपोथर्मिया होता है। कुछ स्वास्थ्य समस्याओं जैसे डायबिटीज, थायराइड, गंभीर ट्रॉमा, ड्रग्स एवं कुछ दवाओं के सेवन के कारण भी हाइपोथर्मिया होता है।
मेटाबोलिक डिसऑर्डर के कारण शरीर में कम मात्रा में हीट जनरेट होता है जिसके कारण व्यक्ति को हाइपोथर्मिया हो सकता है। साथ ही पिट्यूटरी और एड्रिनल ग्लैंड के कमजोर होने एवं बर्फ वाले पानी में स्नान करने से भी यह समस्या हो सकती है।
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जोखिम
हाइपोथर्मिया के साथ मुझे क्या समस्याएं हो सकती हैं?
हाइपोथर्मिया एक खतरनाक समस्या है। इलाज में देरी करने पर इस समस्या का जोखिम बढ़ने लगता है। हाइपोथर्मिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर की कोशिकाएं मृत हो सकती हैं या ऊतक जम सकते हैं। इस स्थिति को फ्रोस्टबाइट (frostbite) कहते हैं। साथ ही नर्व और रक्त वाहिकाएं डैमेज हो सकती है और। टिश्यू डैमेज होने से रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है जिसके कारण व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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उपचार
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप ना समझें। हाइपोथर्मिया के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
हाइपोथर्मिया का निदान कैसे किया जाता है?
हाइपोथर्मिया का पता लगाने के लिए डॉक्टर शरीर की जांच करते हैं और मरीज का पारिवारिक इतिहास भी देखते हैं। आमतौर पर हाइपोथर्मिया का निदान शारीरिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इस बीमारी को जानने के लिए कुछ टेस्ट कराए जाते हैं :
- ब्लड टेस्ट हाइपोथर्मिया और गंभीरता का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- विशेष थर्मामीटर से मरीज के शरीर का तापमान मापा जाता है।
शरीर के तापमान के आधार पर ही हाइपोथर्मिया का निदान किया जाता है। यदि शरीर का तापमान 90 से 95 डिग्री फारेनहाइट है तो माइल्ड हाइपोथर्मिया, 82 से 90 डिग्री फारेनहाइट तापमान होने पर हाइपोथर्मिया और 82 डिग्री फारेनहाइट तापमान होने पर गंभीर हाइपोथर्मिया हो सकती है। चूंकि हर व्यक्ति के शरीर पर हाइपोथर्मिया का प्रभाव अलग-अलग होता है इसलिए शरीर के तापमान में भी अंतर हो सकता है।
हाइपोथर्मिया का इलाज कैसे होता है?
हाइपोथर्मिया का इलाज बीमारी की गंभीरता के आधार पर किया जाता है। इसका कोई सटीक इलाज नहीं है लेकिन, कुछ थेरिपी और दवाओं से व्यक्ति में हाइपोथर्मिया के असर को कम किया जाता है। हाइपोथर्मिया के लिए तीन तरह की मेडिकेशन की जाती है :
- माइल्ड हाइपोथर्मिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर को गर्म कंबल से कवर किया जाता है और गर्म फ्लूइड दी जाती है।
- बॉडी में सामान्य ब्लड फ्लो के लिए हीमोडायलिसिस मशीन की सहायता से ब्लड को गर्म किया जाता है। इसके साथ ही किडनी के मरीजों का ब्लड फिल्टर करके किडनी के कार्यों को सुचारु बनाया जाता है। कुछ मरीजों में हार्ट बाईपास मशीन का भी उपयोग किया जाता है।
- साल्ट वाटर का गर्म इंट्रावेनस सॉल्यूशन दिया जाता है या ब्लड को गर्म करने के लिए नसों में इंजेक्शन लगाया जाता है।
- बॉडी टेम्परेचर को बढ़ाने के लिए ह्यूमिडिफाइड ऑक्सीजन मास्क का प्रयोग किया जाता है या नाक में नेसल ट्यूब (nasal tube ) लगाया जाता है।
- शरीर के कुछ हिस्सों जैसे फेफड़े या एब्डोमिनल कैविटी को गर्म करने के लिए साल्ट वाटर का विलयन दिया जाता है।
इसके अलावा गर्म या शुष्क कम्प्रेशर जैसे गर्म पानी की बॉटल या गर्म टॉवेल से मरीज के शरीर की सिंकाई की जाती है। गर्म कम्प्रेसर को छाती, गर्दन और कमर पर चलाया जाता है। पैरों, बांहों और सिर पर कम्प्रेशर नहीं घुमाना चाहिए।
इन हिस्सों पर कम्प्रेशर चलाने से ठंडा रक्त हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क की तरफ वापस लौट आता है जो काफी घातक हो सकता है। कम्प्रेशर का तापमान अधिक नहीं होना चाहिए अन्यथा स्किन जल सकती है और मरीज को कार्डिएक अरेस्ट भी हो सकता है। इसके साथ ही मरीज की ब्रीदिंग और नाड़ी को हमेशा चेक करते रहना चाहिए।
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घरेलू उपचार
जीवनशैली में होने वाले बदलाव क्या हैं, जो मुझे हाइपोथर्मिया को ठीक करने में मदद कर सकते हैं?
अगर आपको हाइपोथर्मिया है तो आपके डॉक्टर वह आहार बताएंगे जिसकी तासीर बहुत गर्म होती हो और जिनका सेवन करने से शरीर का तापमान बढ़ता हो। इसके साथ आपको गर्म तरल पदार्थ जैसे सब्जियों का गर्म सूप, शोरबा आदि लेना चाहिए। नमक के पानी का विलयन भी शरीर में ब्लड को गर्म करने में मदद करता है। इसके साथ ही निम्न गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए:
इसके साथ ही मरीज के कमरे का तापमान 68 से 70 डिग्री फारेनहाइट रखना चाहिए और खिड़की एवं दरवाजे सही तरीके से बंद रखने चाहिए ताकि रुम पूरी तरह गर्म रहे। हाइपोथर्मिया से पीड़ित मरीज यदि खाने की स्थिति में नहीं है तो उसे गर्म, मीठा, नॉन एल्कोहलिक और नॉन कैफिनेटेड पेय पदार्थ दे जो शरीर को गर्म रखने में मदद करता है।
यदि संभव हो तो मरीज को गर्म और ड्राई जगह पर रखें और ठंडी हवाओं, ठंडे वातावरण एवं ठंडे पानी के संपर्क में न आने दें। इसके अलावा पर्याप्त गर्म कपड़ों के शरीर को कवर करके रखें। हाइपोथर्मिया से पीड़ित मरीज को एल्कोहल से भी परहेज करना चाहिए और शरीर को गर्म रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में कैलोरी और एक्स्ट्रा फैट लेना चाहिए।
मरीज को दिन में कई बार गर्म तरल पदार्थ देते रहना चाहिए और रुम का तापमान भी चेक करते रहना चाहिए। हाइपोथर्मिया से पीड़ित मरीज को नहलाना नहीं चाहिए और जितना संभव हो उसकी बॉडी को गर्म रखने की कोशिश करनी चाहिए।इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं।
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हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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