कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। भारत में लगभग 2.25 मिलियन लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। आमतौर से कोशिकाओं की अनियंत्रित बढ़ोतरी के कारण इसकी शुरुआत होती है। इसके कारण शरीर का सामान्य तरीके के काम करना मुश्किल हो जाता है। कैंसर का इलाज सफलतापूर्वक किया जा सकता है। भारतीयों में 75 वर्ष की आयु से पहले कैंसर के प्रसार की दर 9.81% और मौत की दर 7.34% है। भारत में वर्ष 2018 के अनुमानित कैंसर के मामलों की बात करें तो उस वर्ष देश में लगभग 1.16 मिलियन नए मामले आए, 7,84,800 मौतें हुईं और 2.26 मिलियन ऐसे मामले थे जो 5 वर्ष से चल रहे थे।
कैंसर कई तरह के होते हैं। कैंसर फेफड़ों, स्तन, कोलन और यहां तक कि हमारे खून में भी हो सकता है। कुछ मायनों में सभी कैंसर एक जैसे होते हैं हालांकि उनके बढ़ने और फैलने का तरीका अलग होता है। भारत में तंबाकू से होने वाले सिर और गर्दन के कैंसर से जुड़े मामले बहुत ज़्यादा हैं। मुंह, सर्वाइकल, स्तन और कोलन कैंसर भारत में पाए जाने वाले सबसे आम प्रकार के कैंसर हैं। हालंकि भारत में पश्चिमी देशों की तुलना में कोलन कैंसर के मामले कम पाए जाते हैं लेकिन यह मौत का सातवां सबसे बड़ा कारण है। अनुमान लगाया गया है कि देश में कोलन कैंसर से 50,000 से ज़्यादा मरीज हैं।
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कैसे होता है कोलन कैंसर?
कोलन और गुदा हमारे पाचन तंत्र के निचले हिस्से हैं। ये आंत का निचला हिस्सा हैं जो मल से पानी को अवशोषित करते हैं और मल त्याग होने तक उसे जमा रखने में मदद करते हैं। मलाशय या कोलन में पैदा होने वाले प्रीकैंसरस पोलिप्स (असामान्य ऊतकों) में बढ़ोतरी होने से कोलन कैंसर उत्पन्न होता है। पहले कोलन कैंसर 50 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोगों को होता था। हालांकि पिछले एक दशक से युवाओं में इस के मामलों में तेज बढ़ोतरी हुई है। कोलन कैंसर के लगभग 35% मरीज़ 40 वर्ष से कम आयु के हैं। इसलिए समय से पता चलने पर कोलन कैंसर का अच्छे से इलाज किया जा सकता है।
दुनिया भर में कैंसर के मामलों का एक तिहाई हिस्सा कोलन और मलाशय कैंसर (सीआरसी) का है और ये मौत के प्रमुख कारणों में से हैं। हालांकि कोलोरेक्टल कैंसर के मामले में आनुवांशिक (वंशानुगत) कारण भी प्रमुख वजह हो सकता है लेकिन इस तरह के मामले कम ही देखने में आते हैं। इस तरह के अधिकांश कैंसर के लिए मोटे तौर पर पर्यावरणीय कारण ज़िम्मेदार होते हैं जो आमतौर से पश्चिमी जीवन शैली में पाए जाते हैं, जैसे मोटापा, निष्क्रिय जीवन शैली, बहुत ज़्यादा लाल मांस और कम फाइबर वाले आहार के साथ ज़्यादा कैलोरी वाला आहार खाना और धूम्रपान व शराब का सेवन।
कोलन कैंसर के कुछ लक्षणों में थकान, कमजोरी, मलत्याग की आदतों में बदलाव, दस्त, कब्ज, मल में खून के धब्बे, पेट में ऐंठन और सूजन के साथ अचानक वजन कम होना शामिल हैं। ये कुछ संकेत हैं जिन्हें कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए। ऊपर बताए लक्षण पेट से जुड़ी दूसरी बीमारियों का संकेत भी हो सकते हैं, लेकिन जल्दी जांच करवाना अच्छा है ताकि कोलन कैंसर की आशंका को दूर किया जा सके।
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फाइबर और कोलन कैंसर का क्या है ताल्लुक?
कोलोन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने के कई तरीके हैं, जैसे- लोगों की सामान्य जांच (कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए) करना, आनुवांशिकी से जुड़ी सलाह व पर्यावरणीय कारकों में सुधार, नशीले पदार्थों (धूम्रपान और शराब) का सेवन बंद करना, आहार में फाइबर की मात्रा बढ़ाना और आहार में मांस की मात्रा को कम करना।
आहार में फाइबर बढ़ाने का मतलब है खाने में पौधों से मिलने वाली ऐसी चीज़ों को शामिल करना जिन्हें हमारा शरीर पचा नहीं सकता। वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट ऐसे खाद्य तत्व हैं जिन्हें शरीर पचा लेता है लेकिन फाइबर को शरीर नहीं पचा पाता। इसके बजाय यह पेट, छोटी आंत और कोलन से होता हुआ आखिर में शरीर से बाहर निकल जाता है।
कोलोरेक्टल कैंसर से होने वाली मौतों को रोकने के मामले में फाइबर वाले आहार की भूमिका पर पिछले 5-6 दशकों से काफी रिसर्च हो रहा है। पहले हुए बहुत सारे अध्ययनों और उनके मेटा-विश्लेषण ने कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज या रोकथाम के मामले में फाइबर से होने वाले फायदों या नुकसान के बारे में परस्पर विरोधी नतीजे दिखाए हैं, हालांकि अधिकांश ने फायदेमंद नतीजे ही दिखाए हैं। फाइबर के कारण कई तरह के फायदे मिलते हैं। ज्यादा फाइबर वाले आहार से मल बढ़ता है और मल आसान व जल्दी से शरीर से बाहर निकल जाता है (जिसके न होने पर कब्ज हो जाता है)। इसके होने से बड़ी आंत की कोशिकाओं का कार्सिनोजेनिक से संभावित संपर्क कम होता है।
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फाइबर और कोलन कैंसर के बारे में क्या कहते हैं अध्ययन?
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि फाइबर आहार ’अपोप्टोसिस’ (पुरानी और अव्यवस्थित कोशिकाओं की तुरंत मृत्यु) को बढ़ावा देते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोक देते हैं। ज्यादा फाइबर वाले आहार विशेष रूप से अनाज और मोटे अनाज भी इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार, मोटापे की कम करने, शरीर में सूजन कम करने, खराब लिपिड कम करने आदि से कोलोरेक्टल कैंसर को रोकने में अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावी होते हैं। इन सब में सुधार करने पर यह कोलो-रेक्टल कैंसर होने के बाद भी जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
फाइबर में ब्यूटिरेट नामक महत्वपूर्ण यौगिक भी होता है, जिसके फर्मेन्टेशन से ट्यूमर माइक्रोएन्वायरमेंट (ट्यूमर के अंदर और आस-पास का वातावरण) मोड्यूलेट होता है। ब्यूटिरेट कैंसर कोशिकाओं के केन्द्र में जमा होता है जहां आनुवंशिक सामग्री जमा होती है। यह कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकता है।
कई अध्ययनों से पता चला है कि हर तरह का फाइबर कैंसर को रोकने में उतना अच्छा नहीं होता है। फलों, सब्जियों, या ओट्स की तुलना में अनाज और मोटे अनाज से मिलने वाले फाइबर को कोलोरेक्टल कैंसर कम करने में ज्यादा बेहतर पाया गया है। ये टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस और हृदय रोग को कम करने के साथ मौत की दर को भी कम करते हैं। इसके सटीक कारणों का पता नहीं है लेकिन यह उनमें पाये जाने वाले ज्यादा फाइबर के कारण हो सकता है।
कुछ अध्ययनों को छोड़कर पहले हुए ज्यादातर अध्ययनों से उनका लाभकारी प्रभाव ही सामने आया है, लेकिन फाइबर के पक्ष में कोई पक्का सबूत नहीं मिला है। जांच करने वाले कई लोगों को लगता है कि ये नतीजे पक्षपातपूर्ण हैं क्योंकि इन अध्ययनों पर व्यक्तिगत सोच और बहुत सारे उलझाने वाले कारकों का भी प्रभाव है। हालांकि हाल में हुई कई बेहतर अध्ययनों में भी फाइबर से होने वाले फायदों का पता चला है।
2018 में जेएएमए ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित एक संभावित अध्ययन में कोलोरेक्टल कैंसर वाले मरीज़ को ज्यादा फाइबर वाला आहार देने से मृत्यु दर में कमी देखी गई है। इसके अलावा अब लंबे समय के ईपीआईसी अध्ययन (यूरोपीय प्रोस्पेक्टिव इंवेस्टिगेशन इनटू कैंसर एंड न्यूट्रिशन) में आंकड़ों को जमा किया जा रहा है। यह अध्ययन 10 यूरोपीय देशों में लगभग आधे मिलियन लोगों पर किया गया था। इन पर 15 वर्षों (1999 से 2015) तक नज़र रखी गई थी। आईएआरसी में फॉलोअप मेज़रमेंट्स और जीवन शैली के एक्सपोजर को जमा किया गया था।
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इस अध्ययन से मिले परिणामों से जीवन शैली और आहार संबंधी कारकों का विभिन्न प्रकार के कैंसर से संबंध स्थापित हो पाएगा। यह कोलोरेक्टल कैंसर सहित विभिन्न प्रकार के कैंसर के लिए अवधारणा बनाने और उन्हें रोकने की रणनीतियों को बनाने में मदद करेगा।
कोलन कैंसर को रोकने के अलावा ज्यादा फाइबर वाले आहार के अन्य लाभ भी हो सकते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। बीन्स, ओट्स, अलसी और ओट ब्रान्स जैसे खाद्य पदार्थ “खराब” कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके खून में मौजूद कुल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं। यह रक्तचाप और सूजन को कम करने में भी मदद कर सकता है। यह डायबिटीज़ के मरीज़ों के खून में शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। घुलनशील फाइबर चीनी के अवशोषण को कम कर सकते हैं और इस तरह वे खून में शुगर के स्तर को सही बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। अघुलनशील फाइबर वाला आहार लेने से टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा कम हो सकता है। इसके अलावाअध्ययनों से पता चलता है कि आहार में फाइबर की मात्रा बढ़ाने से कैंसर के साथ-साथ दिल के रोगों से मरने का खतरा भी कम हो जाता है।