कोलन कैंसर (Colon cancer) लार्ज इंटेस्टाइन का कैंसर है। कोलन हमारे डायजेस्टिव सिस्टम के अंतिम छोर को कहते हैं। ज्यादातर कोलन कैंसर छोटी कोशिकाओं के थक्कों के जमने से शुरू होते हैं। इन्हें अडेनोमेटस पोलिप्स ( Adenomatous Polyps ) भी कहा जाता है।
के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar
कोलन कैंसर (Colon cancer) लार्ज इंटेस्टाइन का कैंसर है। कोलन हमारे डायजेस्टिव सिस्टम के अंतिम छोर को कहते हैं। ज्यादातर कोलन कैंसर छोटी कोशिकाओं के थक्कों के जमने से शुरू होते हैं। इन्हें अडेनोमेटस पोलिप्स ( Adenomatous Polyps ) भी कहा जाता है।
कुछ समय बीतने पर यही कैंसर का रूप ले लेते हैं। आमतौर पर कोलन कैंसर बुजुर्ग लोगों में अधिक देखा जाता है। इसकी शुरुआत कई बार रेक्टम से भी होती है। इसलिए इसे कोलोरेक्टल कैंसर (Collateral cancer) भी कहते हैं।
कोलन कैंसर बहुत आम बीमारी है और ये किसी को भी हो सकती है, लेकिन अधिकतर बढ़ती उम्र के साथ इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से मिलें।
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कोलन कैंसर के लक्षण इस प्रकार हैं:
बहुत से लोगो में कैंसर की शुरुआत में कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देंगे। कैंसर के साइज और जगह के हिसाब से लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। किसी भी लक्षण के दिखने पर डॉक्टर से जरूर मिले।
अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है तो तुरंत अपने नजदीकी डॉक्टर से मिले। हर शरीर अलग स्थिति में अलग प्रतिक्रिया देता है इसलिए अपनी स्थिति के हिसाब से सही इलाज के लिए अपने डॉक्टर से जरूर मिले।
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कोलन कैंसर के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं। जैसे:
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हेरेडिटरी नॉनपोलीपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर (HNPCC) को लिंच सिंड्रोम (Lynch Syndrome) के नाम से भी जानते हैं। HNPCC सिंड्रोम से ग्रस्त लोगो में कैंसर होने की सम्भावना सामान्य मरीजों के मुकाबले ज्यादा होती है। माना जाता है की ऐसे लोग 50 वर्ष की उम्र से पहले ही कैंसर से ग्रस्त हो सकते हैं।
फेमिलियल ऐडीनोमेटस पॉलीपोसिस (FAP) एक प्रकार का बहुत कम पाया जाने वाली बीमारी है। इसकी वजह से आपके कोलन और रेक्टम में हजारो पोलिप्स बन जाएँगे। जिन लोगो में FAP का खतरा ज्यादा होता है उनमें कोलन कैंसर 40 वर्ष से पहले ही हो जाता है।
FAP, HNPCC कुछ इनहेरिटेड कैंसर के मुख्य लक्षण हैं। इनका पता जेनेटिक टेस्टिंग से लगाया जा सकता है। अगर आप अपने परिवार में हुए कोलन कैंसर की हिस्ट्री को लेकर परेशान हैं, तो डॉक्टर से पता कर लें की आपमें इस कैंसर के होने की कितनी संभावना है।
वेस्टर्न डायट ( Western Diet) लेने वाले लोगो में कोलन कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। वेस्टर्न डायट फैट्स में ज्यादा होती है और उसमें फाइबर कम होता है। ऐसे लोग जिन्हें शुरू से वेस्टर्न डायट लेने की आदत नहीं है और वो अचानक से जगह के बदलाव या फिर किसी और कारण की वजह से वेस्टर्न डायट लेने लगते हैं। ऐसे लोगो में कोलन कैंसर (Colon cancer) का खतरा अधिक होता है।
ये साफ नहीं है कि ऐसा क्यों होता है। आशंका लगाई जाती है कि अधिक वसा (Fats) और कम फाइबर ( Low Fiber) युक्त डायट की वजह से कोलन में रहने वाले माइक्रोब्स प्रभावित हो जाते हैं। इस विषय पर बहुत शोध हो रहा है और साइंटिस्ट इनके बारे में पता लगा रहे हैं।
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यहां दी जानकारी किसी भी चिकित्सा परामर्श का विकल्प नहीं है।
अगर कोलन कैंसर की जांच बायोप्सी के बाद की जाती है, तो उस स्थिति में डॉक्टर आपको एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और फेफड़ों का सीटी स्कैन करवाने कहेंगे। जिससे कि पता लगाया जा सके की कैंसर कितनी गहराई तक पहुंच चुका है। डॉक्टर्स कार्सिनोएम्ब्र्योनिक एंटीजन टेस्ट (CEA) भी करवा सकते है। कार्सिनोएम्ब्र्योनिक एंटीजन कैंसर कोशिकाओं से निकलने वाले पदार्थ को कहते हैं।
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कैंसर का इलाज करने के लिए कोई एक तरीका कारगर नहीं है। ये कैंसर के प्रकार, कैंसर स्टेज, उम्र , हेल्थ स्टेटस और कैंसर की गहराई पर निर्भर करता है। कोलन कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरिपी , सर्जरी या रेडिएशन थेरिपी कर सकते हैं।
सर्जरी की मदद से भी कैंसर निकाला जा सकता है। इस सर्जरी में कोलन का ब्लॉकेज हटाया जाता है, जिससे दर्द कम हो और खून न बहे।
कीमोथेरिपी में केमिकल्स की मदद से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है, जिससे कैंसर न हो। ये प्रक्रिया ज्यादातर कोशिकाओं के विभाजन के स्टेज में की जाती है, जिससे कैंसर कोशिकाओं का डीएनए (DNA) नष्ट किया जा सके। कैंसर को बनाने वाले मोलेक्युल्स को खत्म करके उसकी बढ़त को रोका जा सकता है।
कीमोथेरिपी से हम पूरे शरीर में फैले हुए कैंसर (मैलिग्नेंट कैंसर ) का भी इलाज कर सकते है, क्योंकि रासायनिक दवाएं पूरे शरीर में आराम से फैलाई जा सकती हैं। इलाज साइकल्स में होता है, जिससे कि एक साइकिल के बाद दूसरी साइकिल रिकवर होने का समय मिल सके। इस इलाज के बहुत से हानिकारक प्रभाव भी देखे जा सकते है, जैसे कि जी घबराना, बाल झड़ना, थकान होना, उल्टियां होना। कई बार कीमोथेरिपी के साथ और तरीको को भी इलाज़ प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। इसे कॉम्बिनेशन थेरिपी (Combination Therapy) कहते हैं।
शोध में पाया गया है कि रोजाना कम मात्रा में एस्प्रिन लेने से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर (जैसे की कोलन कैंसर) के मरीजो को इलाज में सहायता मिलती है। हालांकि एस्प्रिन का इस्तमाल कितना गुणकारी है इसका अभी तक कोई प्रमाण नहीं है। इसलिए ये इलाज का वैकल्पिक भाग है।
रेडिएशन थेरिपी को रेडियोथेरिपी (Radiotherapy or Radiation therapy) कहते हैं। इस प्रक्रिया में हम अत्यधिक ऊर्जावान किरणों की मदद से कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस थेरिपी में धातु से निकलने वाली किरणों का उपयोग होता है, जिन्हे गामा रेज ( Gamma Rays) के नाम से जाना जाता है। गामा किरणों से इलाज ही एक मात्र तरीका है, जिसमें ट्यूमर सिकुड़ जाता है।
रेडिएशन थेरिपी का इस्तमाल कैंसर की शुरआती स्टेजेस में नहीं किया जाएगा, लेकिन बाद की स्टेजेस में जब कैंसर रेक्टम के हिस्सों से होते हुए लिम्फ नोड्स तक पहुंच जाएगा तब रेडिएशन थेरिपी से ही उसका इलाज संभव है।
रेडिएशन थेरिपी के कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं जैसे सनबर्न, सनटैन, घबराहट होना, उल्टियां आना, डायरिया होना या थकान लगना। इलाज के बाद अक्सर बहुत से मरीजो को भूक न लगने की और वजन घटने की भी परेशानी होती है।
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अपनी जीवनशैली में ये बदलाव करके आप जल्द ही कोलन कैंसर की परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं :
अगर आप कोलन कैंसर (Colon cancer) से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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