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पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी से क्या है मतलब?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 07/02/2022

    पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी से क्या है मतलब?

    डायबिटीज एक लाइफस्टाइल संबंधी बीमारी है, जो महिला या पुरुष को किसी भी उम्र में हो सकती है। जिन महिलाओं को मेनोपॉज होने वाला है, अगर उनमें डायबिटीज की समस्या है, तो उससे पहले और बाद में महिला के शरीर में डायबिटीज के कारण कई परिवर्तन देखने को मिलते हैं। मेनोपॉज के कारण डायबिटीज की बीमारी शरीर में कैसा असर दिखाती है और इससे इन्सुलिन सेंसटिविटी पर क्या असर पड़ता है, यह बात जानना बहुत अहम है। पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी (Insulin Sensitivity In Postmenopausal Women) पर क्या असर होता है, इस संबंध में कई स्टडीज की जा चुकी हैं।  आज इस आर्टिकल में हम आपको पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी के बारे में जानकारी देंगे। आइए पहले जान लेते हैं कि इन्सुलिन सेंसटिविटी क्या होती है।

    पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी (Insulin Sensitivity In Postmenopausal Women) के असर में जानने से पहले आपको इंसुलिन सेंसिटीविटी के बारे में पता होना बहुत जरूरी है। इंसुलिन हमारे शरीर में पाया जाने वाला बहुत महत्वपूर्ण हॉर्मोन है। इंसुलिन का निर्माण अग्नाशय से होता है। डायबिटीज की बीमारी में इंसुलिन के प्रति शरीर की सेल्स संवेदनशीलता खो देती हैं। जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या होती है, उनकी सेल्स इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता देती हैं। हाय इंसुलिन सेंसिटिविटी (Insulin Sensitivity) शरीर के सेल्स को अलाऊ करती है कि बॉडी ब्लड ग्लूकोज को अधिक प्रभावी रूप से प्रयोग करें ताकि ब्लड शुगर कम हो सके।

    अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज की समस्या है, तो ऐसे में लाइफस्टाइल में बदलाव कर, रोजाना एक्सरसाइज कर, स्ट्रेस को कम करके, पर्याप्त मात्रा में नींद लेकर, इन्सुलिन सेंसटिविटी को बढ़ाया जा सकता है। डायबिटीज की बीमारी को कंट्रोल में रखा जा सकता है लेकिन उसके लिए लाइफस्टाइल में कई बदलाव जरूरी हो जाते हैं। लो इंसुलिन सेंसिटिविटी को इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin Resistance) भी कहा जाता है। इस समस्या के कारण सेल्स ग्लूकोस की पर्याप्त मात्रा को एब्जॉर्व नहीं कर पाती हैं। इस कारण से ब्लड में धीरे-धीरे शुगर का लेवल बढ़ता जाता है।लो इंसुलिन सेंसिटिविटी (Insulin Sensitivity) कई बीमारियों को न्यौता देने का काम करती है।

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    पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी (Insulin Sensitivity In Postmenopausal Women)

    पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी

    पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी और हॉर्मोनल रिप्लेसमेंट थेरिपी पर कम्बाइंड फिजिकल एक्टिविटी का क्या असर होता है, ये बात अब तक क्लीयर नहीं हो पाई है। जांच के लिए स्टडी की गई कि पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में अधिक व्यायाम प्रशिक्षण लिया है, उनकी तुलना में पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में अधिक इंसुलिन संवेदनशीलता है या फिर फिजिकली एक्टिव महिलाओं में, जो कि पोस्ट मेनोपॉजल हैं। साथ ही में स्टडी में पोस्ट मेनोपॉजल महिलाएं, जो कि हॉर्मोन रिप्लेसमेंस थेरिपी का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनमें अधिक इंसुलिन सेंसिटीविटी है या फिर जो इनका इस्तेमाल नहीं कर रही हैं उनमें। साथ ही में शरीर की संरचना या कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस इन महिलाओं में इंसुलिन संवेदनशीलता की मजबूती के बारे में काफी था या नहीं, इस संबंध में भी स्टडी की गई।

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    पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी:  स्टडी के दौरान क्या निकला निष्कर्ष?

    स्टडी के दौरान निष्कर्ष यह निकला कि ओवरऑल एचआरटी (overall HRT) एक कमजोर इंसुलिन सेंसिटीविटी इंडेक्स (insulin sensitivity index) से जुड़ा हुआ है। अधिक व्यायाम से इंसुलिन सेंसिटीविटी इंडेक्स भी बढ़ता है जबकि पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरिपी (hormone replacement therapy) से प्लामा इंसुलिन लेवल को कम करने में फायदा हो सकता है लेकिन उनमें इंसुलिन सेंसिटीविटी इंडेक्स कम ही होता है। वहीं एक अन्य स्टडी में एक साल के एरोबिक और स्ट्रेंथ एक्सरसाइज इंटरवेंशन प्रोग्राम में भाग लेने से स्वस्थ पोस्टमेनोपॉजल और निष्क्रिय महिलाओं में इंसुलिन संवेदनशीलता में बदलाव नहीं हुआ। पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी को लेकर जो स्टडी हुई है, उम्मीद है आपको उसके बारे में जानकारी मिल गई होगी। अब जानिए कि डायबिटीज और मेनोपॉज की समस्या अगर एक साथ हो जाए, तो किन समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है।

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    डायबिटीज और मेनोपॉज (Diabetes and menopause) का क्या है संबंध?

    मेनोपॉज हर महिला के जीवन में एक उम्र के बाद आने वाला शारीरिक परिवर्तन है। इस कारण से महिलाओं के पीरियड्स बंद हो जाते हैं और साथ ही शरीर में एस्ट्रोजन का लेवल भी कम हो जाता है। कुछ महिलाओं में अंडाशय को हटा देने के बाद भी मेनोपॉज शुरू हो जाता है। अगर कोई महिला मेनोपॉज से गुजर रही है और ऐसे में उसे डायबिटीज की भी समस्या है, तो उसके शरीर में बहुत से परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।

    अगर आपको पहले से ही डायबिटीज की समस्या है और मेनोपॉज शुरू हो चुका है, तो ऐसे में आपके ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ सकता है और आपको डायबिटीज कॉम्प्लिकेशंस (Diabetes complications) का सामना करना पड़ सकता है। मेनोपॉज के दौरान एस्ट्रोजन लेबल घट जाता है, जिसके कारण इंसुलिन के प्रति रिस्पांस भी बदल जाता है। कुछ महिलाएं मेनोपॉज और डायबिटीज के कारण अधिक वेट गेन (weight gain) कर सकती हैं। यानी कि ऐसे में वेट पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, वरना वह तेजी से बढ़ सकता है। साथ ही इंफेक्शन के चांसेस बढ़ जाते हैं क्योंकि हाय ब्लड शुगर लेवल, यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (Urinary tract infection) और वजाइनल इंफेक्शन की संभावना को बढ़ाने का काम करता है। ऐसी महिलाओं को सोने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। वही मेनोपॉज के साथ ही डायबिटीज की समस्या के कारण वजायनल नर्व डैमेज हो सकती हैं। जिसके कारण सेक्शुअल प्रॉब्लम का सामना करना पड़ सकता है।

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    इस आर्टिकल में हमने आपको पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में इंसुलिन सेंसिटीविटी (Insulin Sensitivity In Postmenopausal Women) को लेकर जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्स्पर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।

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