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ट्रांजीशन लेंस क्या है? जानिए इनके फायदे और ये कैसे काम करते हैं

ट्रांजीशन लेंस क्या है? जानिए इनके फायदे और ये कैसे काम करते हैं

आज के आधुनिक दौर में न सिर्फ मोबाइल फोन ही स्मार्ट फोन है, बल्कि आंखों के चश्में भी स्मार्ट बन गए हैं। मार्केट में आप ट्रांजीशन चश्में यानी फोटोक्रोमेक लेंस खरीद सकते हैं, जिसे धूप और छांव दोनों ही जगह पर पहन सकते हैं। ट्रांजीशन लेंस (Transistor lens) यानी फोटोक्रोमिक लेंसेस (Photochromic Lenses) को प्रकाशवर्णी लेंस भी कहा जाता है।

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ट्रांजीशन लेंस यानी फोटोक्रोमेक लेंस क्या है?

आमतौर पर ट्रांजीशन लेंस आंखों की देखभाल और आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए नंबर के चश्में ही होते ही हैं। हालांकि, इनका इस्तेमाल आसानी से धूप में किया जा सकता है। आमतौर पर यह धूप में इस्तेमाल करने के लिए नंबर के चश्में होते हैं। ट्रांजीशन लेंस के चश्में के कांच छांव वाले स्थान में सफेद रंग के होते हैं, वहीं, धूप के प्रभाव में आते ही इनके कांच का रंग गहरा काला या भूरा हो जाता है। फोटोक्रोमेक लेंस को रंग बदलने वाला चश्मा भी कहा जाता है। फोटोक्रोमेक लेंस पर जब सूर्य की पराबैंगनी (Ultraviolet) विकिरण पड़ती हैं, तो इनका रंग पहले से अधिक गहरा हो जाता है और जब पराबैंगनी प्रकाश हटा लिया जाए, यानी छांव वाली जगह जैसे घर के अंदर या ऑफिस में पहना जाए, तो धीरे-धीरे इनके लेंस का रंग पहले जैसा साफ हो जाता है।

ट्रांजीशन लेंस यानी फोटोक्रोमेक लेंस कैसे बनाएं जाते हैं?

ट्रांजीशन लेंस यानी फोटोक्रोमेक लेंस कांच, पॉलीकार्बोनेट या किसी अन्य प्लास्टिक के बनाए जा सकते हैं। सूर्य के प्रकाश में इनका रंग परिवर्तन करने के लिए उनमें सिल्वर क्लोराइड मिलाया जाता है। इसके साथ ही ट्रांजीशन लेंस से रंग बदलने वाले चश्में बनाने के लिए इनके कांचों में सिल्वर क्लोराइड जैसे ही कई अन्य पदार्थ के सूक्ष्म क्रिस्टल मिलाए जाते हैं। इन क्रिस्टल का व्यास लगभग 50 अंगस्ट्रोम, यानी एक सेमी का बीस लाखवां हिस्सा होता है। इनके छोटे-छोटे कण पूरे कांच में बिखरे रहते हैं।

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रंग बदलने वाला चश्मा कैसे काम करता है?

सिल्वर क्लोराइड सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रति अत्यंत संवेदनशील होता है। जैसे ही फोटोक्रोमेक लेंस को धूप में ले जाया जाता हैं तो सूर्य के प्रकाश में मौजूद पराबैंगनी किरणें कांच से टकराती हैं। ये किरणें सिल्वर क्लोराइड के अणुओं को दो हिस्सों- सिल्वर और क्लोरीन के परमाणुओं में तोड़ देती हैं। जिससे सिल्वर क्लोराइड से टूटकर अलग हुआ सिल्वर कण ही फोटोक्रोमेक लेंस से बने चश्में के कांच का रंग काला कर देता है। जब फोटोक्रोमिक लेंस को धूप में से हटा दिया जाए या पराबैंगनी किरणों से दूर कर दिया जाए। तो वही सिल्वर और क्लोरीन एक बार फिर से जुड़कर सिल्वर क्लोराइड का अणु बना लेते हैं। जिसके बाद फोटोक्रोमेक लेंस का चश्मा वापस से सफेद रंग का या रंगहीन हो जाता है।

फोटोक्रोमिक लेंस में इस तरह की प्राकृतिक क्रिया इसलिए हो पाती है क्योंकि फोटोक्रोमिक लेंस में अक्रियाशील पदार्थ होने की वजह से सिल्वर क्लोराइड के टूटने के बाद भी सिल्वर और क्लोरीन वहीं मौजूद रहते हैं जो पराबैंगनी किरणों के हटाते ही दोबारा आपस में मिलकर सिल्वर क्लोराइड बना लेते हैं।

फोटोक्रोमिक लेंस का इस्तेमाल कहां-कहां किया जाता है?

आमतौर पर फोटोक्रोमिक लेंस का इस्तेमाल हवाई जहाज के विंड स्क्रीन और खिड़कियां बनाने में भी किया जाता है। इसके अलावा, कुछ विशेष परिस्थितियों में प्रकाश संवेदी दवाएं रखने वाली बोतलें बनाने के लिए भी फोटोक्रोमिक लेंस का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, ट्रांजीशन लेंस का इस्तेमाल अब नंबर के चश्में और साधारण चश्में बनाने के लिए भी किया जा रहा है।

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ट्रांजीशन लेंस के फायदे क्या हैं?

ट्रांजीशन लेंस या फोटोक्रोमिक लेंस का सबसे बड़ा फायदा है कि यह आंखों को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों और यूवीबी किरणों से 100 फीसदी तक सुरक्षा प्रदान करता है। साथ ही ट्रांजीशन लेंस लगभग सभी तरह के लेंस और डिजाइन में उपलब्ध है। इनमें हाई इंडेक्स लेंसेस, बिफोकल्स और प्रोग्रेसिव लेंसेस शामिल हैं। वहीं, अगर आंखों पर सूर्य की यू वी किरणें पड़ती हैं, तो इससे मोतियाबिंद का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, ट्रांजीशन लेंस का इस्तेमाल वयस्कों से लेकर छोटे उम्र के बच्चे भी कर सकते हैं, जो पूरी तरह से सुरक्षित है। हालांकि, फिर भी अगर आप कंप्यूटर स्क्रिन पर काम करना चाहते हैं और आपको नंबर का चश्मा चढ़ा हुआ है, तो आपको साधारण नंबर वाले चश्में का ही इस्तेमाल ही अधिक करना चाहिए, लेकिन अगर आप धूप में बाहर निकल रहे हैं या ड्राइविंग कर रहे हैं, तो ट्रांजीशन चश्में का ख्याल बेहतर हो सकता है।

हानिकारक ब्लू लाइट्स से भी करे बचाव

फोटोक्रोमिक लेंसेस आंखों को चकाचौंध करने वाली हानिकारक ब्लू लाइट से बचाने में मदद करते हैं। ब्लू लाइट डिजिटल आई स्ट्रेन को बढ़ावा देती है और रेटिना में ऑक्सीडेटिव तनाव का कारण बन सकती है। आमतौर पर फोन चलाते समय, फिल्म देखते समय भी आपके लिए ट्रांजीशन लेंस यानी रंग बदलने वाला चश्में का चुनाव करना भी बेहतर विकल्प हो सकता है। मार्केट में आपको रंग बदलने वाले चश्में के अलग-अलग ब्रांड अलग-अलग कीमतों पर मिल सकते हैं। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से परामर्श कर सकते हैं।

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ट्रांजीशन लेंस यानी रंग बदलने वाला चश्में का चुनाव करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

अगर आप अपने लिए ट्रांजीशन लेंस का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इसे खरीदते समय निम्न बातों का ध्यान रख सकते हैंः

  • कंफर्ट: चश्मे का लेंस और फ्रेम आरामदायक और अच्छी तरह फिट होना चाहिए। चश्मा लगाने के बाद यह आपको बहुत ज्यादा कसा या ढीला नहीं होना चाहिए। चश्में के फ्रेम का वजन बहुत हल्का होना चाहिए जो नाक और कान पर ज्यादा दबाव न डालता हो।
  • विजन: चश्मे से आपको कितना साफ दिखाई देता है इस बात का खास ख्याल रखें। आस-पास और दूर की वस्तुओं को देखने के साथ ही आस-पास लिखे गए शब्दों और थोड़ी दूरी पर लिखे गए शब्दों को पढ़ने की भी कोशिश करें।
  • लुक: ट्रांजीशन लेंस आपको अलग-अलग डिजाइन और फ्रेम्स में मिल सकते हैं। इसलिए अपने चेहरे की बनावट और पर्सानेलिटी के मुताबिक आपको रंग बदलने वाला चश्मा खरीदना चाहिए।
  • सेफ्टी: ट्रांजीशन लेंस खरीदने से पहले डॉक्टर से इसकी सलाह लें कि यह आपकी आंखों के लिए कितना सुरक्षित हो सकता है। साथ ही, आप जिस ब्रांड का रंग बदलने वाला चश्मा खरीद रहे हों, उससे भी इस बात की पूरी जानकारी लें।

हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।

 

 

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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Current Version

27/05/2020

Ankita mishra द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: shalu


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के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

डॉ. प्रणाली पाटील

फार्मेसी · Hello Swasthya


Ankita mishra द्वारा लिखित · अपडेटेड 27/05/2020

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