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एंजाइम क्या है: एंजाइम का पाचन के साथ क्या संबंध है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Mousumi dutta द्वारा लिखित · अपडेटेड 28/01/2022

    एंजाइम क्या है: एंजाइम का पाचन के साथ क्या संबंध है?

    एंजाइम शब्द से तो आप परिचित ही होंगे, लेकिन शायद यह नहीं जानते होंगे कि यह है क्या या इसका काम क्या है? चिंता न करें, आज हम इसी विषय पर विस्तार से बात करने वाले हैं कि एंजाइम होता क्या है, यह शरीर को फायदा पहुंचाता है या नुकसान। एंजाइम का अगर एक शब्द में परिचय दें, तो कहेंगे कि यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो भोजन को हजम करने में मदद करता है। 

    डाइजेस्टिव एंजाइम शरीर में ही बनता है। यह लार ग्रंथियों (salivary glands) और कोशिकाओं से निकलता है और पेट, पैंक्रियाज, और स्मॉल इंटेस्टाइन में रहकर भोजन को पचाने में मदद करता है। यह बड़े और जटिल मॉलिक्युल्स या अणुओं को विभाजित करने में मदद करता है। फिर  प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड और फैट्स (मैक्रोन्यूट्रिएन्ट्स) को छोटे भागों में विभाजित करके, फूड्स के पौष्टिक गुणों को रक्त कोशिकाओं (bloodstream) में एब्जॉर्ब करने की प्रक्रिया में सहायता करता है। डाइजेस्टिव एंजाइम्स के निकलने की प्रक्रिया खाने के समय से शुरू हो जाती है, जब कोई खाने का स्वाद और महक लेता है। 

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    बता दें कि शरीर में डाइजेस्टिव एंजाइम में कमी कुछ हेल्थ कंडिशन के कारण होते हैं। जिन हेल्थ कंडिशन का असर पैंक्रियाज पर होता है, उस हालात में एंजाइम्स की कमी होती है। क्योंकि पैंक्रियाज से कई जरूरी एंजाइम्स निकलते हैं। इस तरह की कमी होने पर डॉक्टर या तो डायट में बदलाव लाने की सलाह देते हैं या फिर जरूरत के अनुसार एंजाइम के सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं। 

    अब तक आप समझ ही गए होंगे कि एंजाइम का काम शरीर के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इससे मांसपेशियां बनती है, शरीर के विषाक्त पदार्थ नष्ट होते हैं,  पाचन क्रिया के दौरान खाने के कणों को तोड़ने में भी मदद मिलती है। एंजाइम के काम पर ज्यादा ताप, बीमारियों या केमिकल कंडिशन का असर पड़ता है, जिसके कारण ये नष्ट भी हो सकते हैं।  ऐसे परिस्थिति में एंजाइम काम करना बंद कर देता है। इसके असर के कारण शरीर की वह प्रक्रियाएं प्रभावित होती ह़ैं, जो एंजाइम के मदद से चलती हैं। एंजाइम नैचुरल तरीके से शरीर में उत्पादित होता है। सामान्य तौर पर एंजाइम इसी तरह से काम करता है, लेकिन इसको और भी अच्छी तरह से समझने के लिए चलिए इसके प्रकारों को और अच्छी तरह से समझ लेते हैं। 

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    एंजाइम के प्रकार

    हर डाइजेस्टिव एंजाइम के पोषक तत्व अलग-अलग होते हैं और ऐसे रूप में विभाजित होते है, जिससे वह एब्जॉर्ब हो सके। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण डाइजेस्टिव एंजाइम्स इस प्रकार से हैं-

    – एमाइलेस (Amylase)

    – माल्टेज (Maltase)

    – लैक्टेज (Lactase)

    – लाइपेज (Lipase)

    – प्रोटीजेस (Proteases)

    – सुक्रेज (Sucrase)

    एमाइलेस (Amylase) – एमाइलेस एंजाइम सैलिवरी ग्लैंड और पैंक्रियाज से निकलता है। यह कार्बोहाइड्रेड के पाचन में मदद करता है। यह स्टार्च को ब्रेक करके शुगर में बदलने में मदद करता है। यहां तक कि कभी-कभी ब्लड में एमाइलेस का लेवल पैंक्रियाज या दूसरे डाइजेस्टिव ट्रैक्ट डिजीज का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब ब्लड में एमाइलेस का स्तर ज्यादा हो जाता है, तब पैंक्रियाज डक्ट ब्लॉक हो जाता है, इससे पैंक्रियाटिक कैंसर या एक्युट पैंक्रियाटाइटिस हो सकता है, या अचानक पैंक्रियाज में सूजन हो सकता है। अगर एमाइलेस के स्तर में कमी आती है तो पैंक्रियाज में सूजन या लिवर की बीमारी भी हो सकती है। 

    लैक्टेज (Lactase)- लैक्टेज, वह है जो डेयरी के उत्पादकों या दूध से बनी चीजों में शुगर के रूप में मिलता है। लैक्टेज एंजाइम इनको तोड़कर ग्लूकोज और गैलेक्टोज में बदल देता है। एंट्रोसाइट्स नाम की कोशिकाओं द्वारा लैक्टेज का उत्पादन होता है। जो लैक्टेज एब्जॉर्ब नहीं होता, उसके कारण गैस या पेट में असुविधा उत्पन्न हो सकती है। 

    लाइपेज (Lipase)- लाइपेज का काम है फैट्स को ब्रेक करके फैटी एसिड्स को ग्लिसरॉल में बदलना। यह बहुत ही कम मात्रा में मुंह और पेट से निकलता है, लेकिन पैंक्रियाज से बहुत ज्यादा मात्रा में निकलता है।

    माल्टेज  (Maltase)- माल्टेज स्मॉल इंटेस्टाइन से निकलता है। यह माल्टोज (maltose ) को ग्लूकोज में ब्रेक करता है और जिसका शरीर एनर्जी के लिए इस्तेमाल करता है। पाचन क्रिया के दौरान स्ट्रार्च आंशिक रूप से एमाइलेसेस के कारण माल्टोज में बदल जाता है। जब माल्टेज, माल्टोज को ग्लूकोज में बदलता है, तब उसका इस्तेमाल या तो तुरन्त हो जाता है या बाद में इस्तेमाल होने के लिए ग्लाइकोजन के रूप में लिवर में स्टोर हो जाता है। 

    प्रोटीजेस (Proteases)- प्रोटीजेस को पेप्टिडेज या प्रोटियोलिटिक एंजाइम भी कहते हैं। यह डाइजेस्टिव एंजाइम, प्रोटीन को ब्रेक करके एमिनो एसिड में बदल देता है। इसके अलावा यह शरीर की दूसरी प्रक्रियाओं में भी भाग लेता है, जैसे- कोशिका का विभाजन (cell division), रक्त का थक्का (blood clotting) और इम्युन फंक्शन आदि। 

    सुक्रेज (Sucrase)- सुक्रेज स्मॉल इंटेस्टाइन से निकलता है। सुक्रेज यहां सुक्रोज को फ्रुक्टोज (फ्रक्टोज) और ग्लूकोज में ब्रेक करता है। इसी शुगर को शरीर एब्जॉर्ब कर पाता है। 

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    अब सवाल आता है कि क्यों एंजाइम डाइजेस्शन के लिए जरूरी होता है। क्या एंजाइम को कोई फैक्टर प्रभावित भी कर सकता है, जिससे उसके काम में बाधा उत्पन्न हो सकती है। इन प्रश्नों को आगे विस्तार से जान लेते हैं-

    एंजाइम डाइजेस्शन के लिए क्यों है जरूरी?

    जो भी आप खाते हैं, एंजाइम की मदद से उसका पाचन अच्छी तरह से हो जाता है। पाचन क्रिया के बेहतर होने के कारण शरीर भी स्वस्थ रहता है। यह शरीर के दूसरे केमिकल्स, जैसे कि पेट के एसिड और बाइल के साथ काम करके भोजन के मॉलिक्युल को ब्रेक करके शरीर का फंक्शन बेहतर तरीके से करने में सहायता करता है। उदाहरण के तौर पर, कार्बोहाइड्रेट को एनर्जी में बदलने, प्रोटीन को मसल्स बनाने और ठीक करने के लिए भी किया जाता है। 

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    एंजाइम को क्या-क्या प्रभावित करता है?

    आम तौर पर एंजाइम तब अच्छी तरह से काम करता है, जब शरीर का तापमान नॉर्मल होता है। कहने का मतलब यह है कि जब शरीर का तापमान किसी कारणवश बढ़ता है, या फीवर होता है तो एंजाइम की संरचना टूट जाती है। टेम्परेचर बढ़ने के कारण एंजाइम्स ठीक तरह से काम नहीं कर पाते हैं। यानि शरीर का तापमान नॉर्मल अवस्था में रखने पर ही एंजाइम काम कर पाता है। 

    अगर पैनक्रियाटाइटिस हेल्थ कंडिशन में पैंक्रियाज में सूजन हो जाती है, तो इसकी वजह से डाइजेस्टिव एंजाइम्स की संख्या और उसके प्रभाव पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा पेट या इंटेस्टाइन का पीएच लेवल भी एंजाइम की गतिविधी पर असर डालता है। इस बात को थोड़ा इस तरह से समझते हैं, पीएच लेवल लो होने का मतलब है, थोड़ा एसिडिक होना। हाई पीएच लेवल का मतलब होता है, एल्कलाइन। यानि एंजाइम ज्यादा एसिडिक और ज्यादा बेसिक वातावरण में काम नहीं कर पाता। 

    अब बात केमिकल की आती है। यह भी एंजाइम के काम में बाधा उत्पन्न करते हैं। यह एंजाइम के साथ मिलकर केमिकल रिएक्शन करते हैं। शायद आप सोच रहे होंगे कि रासायनिक प्रतिक्रिया की वजह क्या है। कई बार दवाओं के कारण यह घटना घटती है, एंटीबायोटिक्स इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। एंटीबायोटिक्स कुछ एंजाइमों के काम में बाधा उत्पन्न कर कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन को फैलने से रोकने में मदद करते हैं। 

    कई बार कुछ फूड्स एंजाइम्स को काम नहीं करने देते हैं। क्योंकि कुछ विशेष तरह के फूड्स में डाइजेस्टिव एंजाइम्स होते हैं, जो नैचुरल एंजाइम्स के साथ मिलकर काम करने में बाधा देते हैं। उदाहरण के तौर पर कुछ एंजाइम रिच फूड्स शरीर में मौजूद एंजाइम के साथ मिलकर एक्टिविटी को और भी बढ़ा देते हैं। इसके साथ ही आप क्या खाते-पीते हैं, इसके आधार पर आपका स्वस्थ रहना निर्भर करता है, क्योंकि यह एंजाइम कैसे उत्पादित हो रहा है, कैसे स्टोर हो रहा है और कैसे निकल रहा है, इन सब बातों पर निर्भर करता है। इसलिए रोजाना पौष्टिक आहार का सेवन करने से शरीर का एंजाइम लंबे समय तक आपकी सेवा और सुरक्षा करने में मदद करते हैं। 

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    हेल्थ कंडिशन्स 

    हेल्थ कंडिशन्स कुछ ऐसी परिस्थियां हैं, जब एंजाइम्स के फंक्शन में कमी आ जाती है। जिसके कारण वह ठीक तरह से काम नहीं कर पाते हैं। चलिए एक नजर उन कमियों पर भी डालते हैं-

    लैक्टोज इंटॉलरेंस (Lactose Intolerance)- स्मॉल इंटेस्टाइन में लैक्टेज का उत्पादन कम होने के कारण लैक्टोज इंटॉलरेंस होता है, जिसके कारण दूध या दूध से बनी चीजों को खाने पर पेट में दर्द, उल्टी, बदहजमी और गैस जैसी समस्याएं होती हैं। यह लैक्टोज इंटॉलरेंस भी कई तरह के होते हैं, जैसे-

    कंजेनिटल लैक्टेज डेफिसिएन्सी (Congenital lactase deficiency)- यह समस्या शिशुओं में पाई जाती है। जब एंजाइम ब्रेस्ट मिल्क को ब्रेक नहीं कर पाता, तब शिशुओं को दस्त आदि परेशानियों से जुझना पड़ता है।

    लैक्टेज नॉन परसिस्टेंट (Lactase non-persistence)- वयस्कों में लैक्टोज इंटॉलरेंस के प्रकारों में यह प्रकार बहुत आम है। यह एलसीटी जीन ( LCT gene) की एक्टिविटी में कमी आने के कारण होता है। एलसीटी जीन लैक्टेज एंजाइम बनाने का निर्देश देता है। डेयरी प्रोडक्ट सेवन के आधे घंटे से दो घंटे के अंदर इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। 

    सेकेंडरी लैक्टोज इंटॉलरेंस (Secondary Lactose Intolerance)- जब सीलिएक डिजीज या क्रोहन डिजीज जैसे रोग की वजह से स्मॉल इंटेस्टाइन को नुकसान पहुंचता है, तो लैक्टेज का उत्पादन कम होने लगता है। 

    एक्सोक्राइन पैंक्रियाटिक इंसफिशियंसी (Exocrine Pancreatic Insufficiency)-एक्सोक्राइन पैंक्रियाटिक इंसफिशियंसी के कारण एमाइलेज, प्रोटीजेस और लाइपेज एंजाइम की कमी हो जाती है, जिसके कारण फैट अच्छी तरह से डाइजेस्ट नहीं हो पाता है। 

    हंटर सिंड्रोम (Hunter Syndrome)- इस सिंड्रोम में शरीर में आईडूरोनेट-2 सल्फेट एंजाइम पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है। ये एंजाइम कॉम्प्लेक्स मॉलिक्युल को ब्रेक करते हैं, लेकिन इसके अभाव में मॉलिक्युल अत्यधिक मात्रा में शरीर में बनने लगते हैं। जिसके कारण शारीरिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।

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    कब एंजाइम सप्लीमेंट देने की सलाह देते हैं डॉक्टर? 

    जब पैंक्रियाज में पैंक्रियाटाइटिस, सिस्टिक फाइब्रोसिस या पैंक्रियाटिक कैंसर जैसे रोग होते हैं, तब वह जरूरी एंजाइमों का उत्पादन नहीं कर पाता है। जिसके कारण शरीर में एंजाइम की कमी हो जाती है। फलस्वरूप खाना हजम नहीं हो पाता और शरीर को जरूरी पोषक तत्व भी नहीं मिल पाते हैं। इस कंडिशन में डॉक्टर एंजाइम सप्लीमेंट देते हैं। एंजाइम सप्लीमेंट्स पिल्स, पाउडर, कैप्सूल के रूप में पाए जाते हैं। 

    इसके अलावा कुछ नैचुरल फूड्स भी हैं, जो नैचुरल सप्लीमेंट्स की तरह काम करते हैं, इनके नाम कुछ इस तरह से हैं-

    पपीता (नैचुरल प्रोटीजेस एंजाइम)– यह प्रोटीन को डाइजेस्ट करने में मदद करता है।

    आम (नैचुरल एमाइलेस एंजाइम)– यह कार्बोहाइड्रेट को सिंपल शुगर में ब्रेक करने में मदद करता है।

    केला (नैचुरल एमाइलेस एंजाइम)– यह भी कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट को ब्रेक करने में सहायता करता है।

    शहद ( नैचुरल एमाइलेस एंजाइम)– यह भी कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट को ब्रेक करता है।

    अदरक (नैचुरल एमाइलेस एंजाइम)– यह प्रोटीन को ब्रेक करके उल्टी आदि के लक्षणों से आराम दिलाता है। 

    अब तो आप समझ ही गए होंगे कि एंजाइम हमारे शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए कितना जरूरी है। इसके बिना शरीर को स्वस्थ रखना कितना मुश्किल हो सकता है। इसलिए एक ही बात अंत तक यही कहेंगे कि स्वस्थ खाएं और स्वस्थ रहें। 

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