एशिया, अमेरिका, अफ्रीका और यूरोप के 60 से भी ज्यादा देशों पाया जाता है। किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित करने वाला यह बुखार मच्छरों से फैलने वाले रोग में से एक है। वेक्टर-जनित रोग वायरस के संक्रमण के कारण होता है। संक्रमित मच्छर के काटने से आमतौर पर 4 और 8 दिनों के बीच दिखाई देते हैं। बुखार, सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, जी मिचलाना, लाल चकत्ते, थकान, मांसपेशियों में दर्द जैसे कई चिकनगुनिया के लक्षण देखने को मिलते हैं।
और पढ़ें : डेंगू से बचाव के उपाय : इन 6 उपायों से बुखार होगा दूर और बढ़ेगा प्लेटलेट्स काउंट
येलो फीवर
पीला बुखार संक्रमित मच्छरों द्वारा प्रसारित एक तीव्र वायरल रक्तस्रावी बीमारी (हैमरैजिक रोग) है। पीड़ित कुछ रोगियों में पीलिया के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं। येलो फीवर के लक्षणों में बुखार, मतली, उल्टी, सिरदर्द, पीलिया, मांसपेशियों में दर्द और थकान शामिल हैं।
मलेरिया
मानसून और मलेरिया एक दूसरे के साथ बढ़ते हैं। जब बारिश होती है, तो पानी भरा रहता है जो कि मच्छरों के प्रजनन की प्रक्रिया में मदद करता है। ऐसे में भीड़-भाड़ वाले इलाकों में बारिश के वक्त मलेरिया होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो परजीवियों के कारण होती है जो संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से लोगों में पहुंच जाती है। 2018 में, दुनिया भर में मलेरिया के अनुमानित 228 मिलियन मामले थे। वहीं, 2018 में मलेरिया से होने वाली मौतों की अनुमानित संख्या चार लाख से ऊपर थी। बात की जाए विश्वभर की तो दुनिया भर में मलेरिया से होने वाली मौतों का प्रतिशत 67% है। मलेरिया के लक्षण आमतौर पर बुखार, थकान, उल्टी और सिरदर्द हैं।
और पढ़ें : मलेरिया से जुड़े मिथ पर कभी न करें विश्वास, जानें फैक्ट्स
बरसात में होने वाली बीमारियां : कोल्ड और फ्लू
मानसून के दौरान होने वाले तापमान में भारी उतार-चढ़ाव के चलते शरीर बैक्टीरिया और वायरल के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सर्दी और फ्लू होता है। यह वायरल संक्रमण का सबसे आम रूप है। इसलिए, शरीर की रक्षा के लिए, अत्यधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए और प्रतिरक्षा को मजबूत करना चाहिए। इससे शरीर जारी विषाक्त पदार्थों के खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन करके कीटाणुओं से लड़ सकता है और काफी हद तक दूसरी भी सीजनल बिमारियों (seasonal diseases) से बचा जा सकता है।
लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis)
मौसमी बीमारियों में लेप्टोस्पायरोसिस ऐसी ही एक डिजीज है जो मानसून के दौरान बढ़ जाती है। साल 2013 में भारत में इस रोग ने पैर पसारे थे। अब हर साल इस बीमारी के कारण लगभग पांच हजार से ज्यादा लोग इसके प्रभाव में आते हैं। लेप्टोस्पायरोसिस जानवरों के यूरिन-स्टूल से फैलने वाले लेप्टोस्पाइरा नामक बैक्टीरिया की वजह से होती है। इससे इंसान के साथ-साथ यूरिन के संपर्क में आने से पालतू जानवर और चूहे भी संक्रमित होते हैं। बारिश के मौसम इस इंफेक्शन के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। हाई फीवर (आमतौर पर 38 और 40 ° C (100.4-104 ° F) के बीच होता है), अचानक सिरदर्द, ठंड लगना, मतली और उल्टी, भूख में कमी, पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियों में दर्द, खांसी आदि इसके आम लक्षण हैं।
और पढ़ें : मानसून में खाना कैसा होना चाहिए, किन बातों का रखना चाहिए ध्यान?