कोवैक्सीन भारत में तैयार की गई है। भारत बायोटेक इंटरनेशनल लीमिटेड कंपनी ने आईसीएमआर (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पूणे के साथ मिलकर इस वैक्सीन को तैयार किया है। इस वैक्सीन को बनाने के लिए इनएक्टिव वायरल स्ट्रेन (Whole-Virion Inactivated Vero Cell ) का इस्तेमाल किया गया है। जब डेड वायरस शरीर में जाते हैं, तो ये शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। हमारे शरीर में जब भी कोई वायरस पहुंचता है, तो शरीर उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है। ऐसा नहीं है कि कोवैक्सीन में पहली बार निक्रिष्य वायरस का इस्तेमाल किया जा रहा है। दशकों से वैक्सीन बनाने के लिए इस ट्रेडीशनल टेक्नीक का इस्तेमाल किया जा चुका है। पोलियो, रेबीज,सीजनल इन्फ्लुएंजा, जापानी इंसेफेलाइटिस आदि बीमारियों के लिए इनएक्टिव वैक्सीन तैयार की जा चुकी हैं। यानी ये वैक्सीन पूर्ण रूप से सुरक्षित होने के साथ ही शरीर को वायरस से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करती है। जानिए कोवैक्सीन से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें, जो आपको जरूर जाननी चाहिए।
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- कोवैक्सीन में इम्यून-पोटेंशिएटर्स (immune-potentiators) का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे वैक्सीन एडजुवेंट्स ( vaccine adjuvants) के रूप में भी जानते हैं। ये वैक्सीन की इम्यूनोजेनेसिटी (immunogenicity) बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- कोवैक्सीन को (DCGI) यानी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drugs Controller General of India) की ओर से फेज 1 और फेज 2 ह्युमन क्लीनिकल ट्रायल एप्रूव है।
- कोवैक्सीन (Covaxine) के दो डोज 28 दिनों में दिए जाते हैं।
- कोवैक्सीन के दूसरे डोज में 6 से 8 सप्ताह का अंतर भी हो सकता है।
- कोवैक्सीन को लेकर कई ट्रायल्स किए जा चुके हैं। ये वैक्सीन 78% प्रभावी है और क्लीनिकल ट्रायल्स में ये बात सामने आई है कि ये वैक्सीन मृत्युदर को 100 प्रतिशत तक कम कर सकती है।
- कोवैक्सीन को राज्य सरकारों को 600 रुपय में बेचा जाएगा जबकि निजी अस्पतालों और अन्य फैसिलिटी में ये वैक्सीन 1200 रुपय में उपलब्ध है।