कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए दुनियाभर के शोधकर्ता लगे हुए हैं। हर देश चाहता है कि वह पहले वैक्सीन तैयार कर ले। वैसे को वैक्सीन बनाने को लेकर सैकड़ों प्रोजेक्ट चल रहे हैं लेकिन इनमें 86 प्रोजेक्ट ऐसे हैं जिन्हें दमदार माना जा रहा है। ये प्रोजेक्ट क्लीनिकल ट्रायल के प्रोसेस तक पहुंच गए हैं। इस बीच बेल्जियम के शोधकर्ताओं के दावे ने सबको हैरान कर दिया है। इनका दावा है कि अमेरिका में पाई जाने वाली ऊंट के खून से कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार की जा सकती हैं। वैक्सीन के लिए ऊंट की एक खास प्रजाति जिसका नाम लामा है, उसके खून का इस्तेमाल करने का दावा किया है।
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ऊंट के खून से कोरोना वायरस की वैक्सीन
ऊंट के खून से कोरोना वायरस की वैक्सीन को तैयार करने वाले शोध को ‘वीलाम्स इंस्टिट्यूट फॉर बायोटेक्नोलॉजी’ के शोधकर्ताओं ने किया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि ऊंट की प्रजाति (लामा) के खून से कोरोना वायरस के संक्रमण को बेअसर किया जा सकता है। आपको बता दें, कोरोना वायरस के परिवार के वायरस MERS और SARS में भी लामा के खून में मौजूद एंटीबॉडी प्रभावी साबित हुए थे।
आपको बता दें, सबसे पहले लामा के खून का इस्तेमाल एचआईवी के लिए किया गया था। इस स्टडी के अनुसार, ऊंट की प्रजाति (लामा) के एंटीबॉडीज इंसानों के एंटीबॉडीज की तुलना में काफी छोटे होते हैं। छोटे एंटीबॉडीज होने के कारण वायरोलॉजिस्ट खून में मौजूद छोटे अणुओं की मदद लेकर कोरोन वायरस के संक्रण के खिलाफ वैक्सीन बना सकते हैं। साइंस में इस प्रक्रिया को नैनोबॉडी टेक्नोलॉजी कहते हैं। 1980 में सबसे पहले इसका इस्तेमाल एड्स के इलाज के लिए किया गया था।
मेडिकल रिसर्च में पहले भी लामा की एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जा चुका है। कुछ साल पहले इनसेर्म (Inserm), सीएनआरएस (CNRS), सीईए (CEA), पियरे एंड मैरी क्यूरी और पेरिस डेकार्ट्स विश्वविद्यालयों (Pierre & Marie Curie and Paris Descartes Universities) और रोचे (Roche) के शोधकर्ताओं के अनुसार, मस्तिष्क के घावों का पता लगाने के लिए लामा एंटीबॉडी का उपयोग किया जा सकता है। इस अध्ययन में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने यह भी बताया था कि ये एंटीबॉडी अल्जाइमर रोग का निदान करने में मदद कर सकती हैं।
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कोरोना वायरस की वैक्सीन के लिए नेवले पर कर रहे हैं शोध
आज तक आपने चूहों पर शोध के बारे में सुना होगा। दक्षिण कोरिया में हुए एक अन्य शोध के अनुसार, कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में नेवले की एक प्रजाति को उपयोग में लाया जा सकता है। यह शोध जर्नल सेल होस्ट एंड माइक्रोब में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि नेवले की प्रजाति पर कोरोना वायरस के संक्रमण का असर बिल्कुल इसानों जैसा ही दिखाई देता है। इसलिए कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में नेवलों की काफी मदद ली जा सकती है।
कोरोना वायरस की इस वैक्सीन का बंदरों पर परीक्षण सफल रहा
चीन की राजधानी बीजिंग में दवा निर्माता कंपनी साइनोवैक बायोटेक का दावा है कि उसने 8 बंदरों को अपनी नई वैक्सीन की अलग-अलग डोज दी थी। तीन हफ्ते बाद उन्होंने बंदरों की वापस जांच की। जांच के लिए उन्होंने बंदरों के फेफड़ों में ट्यूब के जरिए वैक्सीन के रूप में कोरोना वायरस को डाला। लेकिन आठों बंदरों को कोरोना वायरस का संक्रामण नहीं हुआ। साइनोवैक बायोटेक के डायरेक्टर मेंग विनिंग ने बताया कि उन्होंने जिस बंदर को सबसे ज्यादा डोज दी थी उसके शरीर में कोरोना वायरस के किसी तरह के लक्षण नहीं पाए गए हैं। जबकि दूसरे बंदरों में हल्का सा असर दिखाई दिया था, जिसे उन्होंने कंट्रोल कर लिया। फिलहाल कंपनी ने 16 अप्रैल से इस वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर शुरू कर दिया है।
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कैसे फैला कोरोना वायरस?
कोरोना वायरस कैसे फैला इसे लेकर दुनियाभर में कई शोध हो रहे हैं। अब तक कई शोध में यह सामने आया है कि कहीं न कहीं इसकी उत्पत्ति चमगादड़ से हुई है। चीन में हुए एक शोध में यह बात सामने आई थी। अब अमेरिका यूनिवर्सिटी ऑफ सर्दन केलीफोर्निया की प्रोफेसर पाउली केनन ने बताया कि कोरोना वायरस और पिछले कई सालों में आए संक्रामक रोगों का संबंध वन्यजीवों से रहा है। केनन कहती हैं उन्हें संक्रमण की शुरुआत कैसे हुई इसके बारे में फिलहाल पर्याप्त जानकारी नहीं है लेकिन कोरोना वायरस घोड़े की नाल के आकार के चमगादड़ों से फैला है। कैनन ने शोध में पाया कि कोरोना वायरस चमगादड़ों के जरिए इंसन में पहुंचा और फिर ये दूसरे इंसान में होते हुए पूरी दुनिया में फैल गया।
इससे पहले भी कई शोध में यह बात सामने आई है। आपको बता दें, कोरोना वायरस की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई थी। वुहान में एक सबसे बड़ी मीट मार्केट है, जहां जिंदा वन्यजीव बेचे जाते थे। कैनन ने बताया कि इसी तरह के संक्रमण कुछ साल पहले भी मर्स (MERS) और सार्स (SARS) के दौरान हुए थे। इनकी भी वजह यही जानवर थे।
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कोरोना वायरस से पहले चमगादड़ों से इंसान तक पहुंचे थे ये संक्रमण
कई शोध के अनुसार मर्स (MERS) वायरस भी चमगादड़ों से ऊंटों में फैला था और ऊंटों से इंसान तक पहुंचा था। इसी तरह सार्स (SARS) चमगादड़ों से बिल्लियों में फैला और वहां से इंसानों में पहुंचा था। रिसर्च टीम के वैज्ञानिकों का भी कहना है कि इबोला वायरस भी चमगादड़ों से इंसानों में आया था। केनन बताती हैं कि उन्हें शोध के दौरान कोरोना वायरस के कई जेनेटिक कोड मिले हैं जो चमगादड़ों में पाए जाते हैं।
आग की तरह दुनिया में फैलेगा कोरोना वायरस
कैनन ने इस बात की भी आशंका जताई है कि भविष्य में कोरोना वायरस और भी ज्यादा इंसानों को संक्रमित कर सकता है। हालांकि ऐसा 100 वर्षों में एक बार ही होता है। लेकिन यह जब होगा तब जंगल में आग की तरह से पूरी दुनिया में फैल जाएगा।
हम आशा करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में ऊंट के खून से कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने को लेकर जानकारी दी गई है। यदि आप इससे जुड़ी अन्य कोई जानकारी पाना चाहते हैं तो आप अपना सवाल कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। हम अपने एक्सपर्ट्स द्वारा आपके सवालों का जवाब दिलाने की पूरी कोशिश करेंगे। आपको हमारा यह लेख कैसा लगा यह भी आप हमें कमेंट कर बता सकते हैं।
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