backup og meta

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: क्यों भारत में महिला आत्महत्या की दर है ज्यादा? क्या हो सकती है इसकी रोकथाम?

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: क्यों भारत में महिला आत्महत्या की दर है ज्यादा? क्या हो सकती है इसकी रोकथाम?

‘आत्महत्या’, तनाव और जिंदगी की परेशानियों से थक जाने पर व्यक्ति को बस यही एक रास्ता आसान लगता है। मशहूर दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के केस ने कोरोना अपडेट की खबर को भी पीछे छोड़ दिया है। सच तो यह है कि कोरोना संकट काल में आम जनता कई समस्याओं से घिर गई है।

कोरोना में लगे लॉकडाउन की वजह से घर पर बंद हो जाने के कारण लोगों को तनाव, एंग्जायटी और डिप्रेशन में चले गए जिससे आत्महत्या के केस काफी बढ़ गए।

पूरे विश्व में वाणिज्यिक बाजार में गिरावट का असर काम के हर क्षेत्र पर पड़ा है जिसकी वजह से अधिकतर लोगों की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है और इसके कारण आत्महत्या का ख्याल लोगों के दिलों में घर करने लगा है।

वैसे तो यह स्थिति कोरोना संकट काल के कारण पैदा हुई है लेकिन हम आज ‘भारत में महिला आत्महत्या’ के विषय पर बात करने वाले हैं, जो सदियों से चला आ रहा है।

आजकल इस विषय खूब बात की जा रही है, मंचों पर तर्क-वितर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं और स्कूलों या कॉलेजों में डिबेट का विषय बनाया जा रहा है लेकिन क्या सचमुच इस विषय को लेकर कोई काम हो रहा है? सवाल पुराना है लेकिन ज्वलंत है।

प्राचीन युग की सती प्रथा, विधवा विवाह, बाल विवाह समस्याओं से जूझती महिलाओं या लड़कियों की परिस्थिति आज के विकासशील युग में बदली तो जरूर है, पर कितनी बदली है, यह सवाल अब भी है।

और पढ़ें-अगर किसी के मन में आए आत्महत्या के विचार, तो उसकी ऐसे करें मदद

हालातों को देखने का नजरिया बदला

कोई भी महिला कितनी भी पढ़ी-लिखी हो या अपने पैरों पर खड़ी हो, उसका शोषण कहीं न कहीं होता ही है। पहले के जमाने में अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाकर वह घर के अंदर रह कर संसार को संभालती थीं। आप कहेंगे अब तो ऐसा नहीं होता। आज महिलाएं पढ़-लिख कर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, नौकरी कर रही हैं, लेकिन घर में वह तब भी किसी की बेटी, बहु, पत्नी, मां की भूमिका अदा कर रही होती हैं।

घर और समाज उनसे सारे दायित्व का निर्वाह करने की मांग करता है। महिलाओं को घर और बाहर दोनों का दायित्व संभालना पड़ता है। दायित्व के क्षेत्र में एक गलती भी कोई रिश्ता सहन नहीं कर पाता है।

अक्सर दायित्व की इस चक्की में पीसते हुए उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि उनको आत्महत्या करना बेहतर विकल्प नजर आने लगता है। उन्हें महसूस होता है कि उनके जीवन का कोई महत्व या उद्देश्य नहीं है। हमारा समाज समय के साथ सुधरा नहीं है, बस उसकी परिभाषाएं और हालातों को देखने का नजरिया बदल गया है। 

“विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ के अवसर पर विश्व की ओर नजर डालें, तो आपको देखने को मिलेगा कि यह मानसिक स्वास्थ्य समस्या सार्वजनिक है। अध्ययन के आंकड़ों के अनुसार पाया गया है कि एशिया में आत्महत्याओं का केस 60% बढ़ा है।

कहने का मतलब यह है कि एशिया में हर साल लगभग 60 मिलियन लोग आत्महत्या करते हैं लेकिन सबसे अचरज की बात यह है कि सामाजिक तनाव के कारण महिलाओं में आत्महत्या से मृत्यु की दर सबसे ज्यादा है। 

लैंसेट पब्लिक हेल्थ के ऑक्टोबर 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, 2016 में विश्व में महिला आत्महत्या के 36% मामले मिले हैं। इनमें भारत सबसे आगे हैं और भारत में 15 से 29 साल की महिलाओं में आत्महत्या के कारण मृत्यु के मामले मिले हैं।

और पढ़ें-Suicidal Tendency : सुसाइड टेंडेंसी (आत्महत्या) क्या है?

आखिर क्यों भारत में महिलाएं आत्महत्या को जीवन से बेहतर विकल्प मानती हैं? 

अगर इस विषय पर बात की जाए, तो समाज के बहुत सारे कारण सामने खुलकर आएंगें। भारतीय समाज में महिला अभी भी भोग की वस्तु ही बनी हुई है। लड़की कुंवारी हो या शादीशुदा, वह आदिकाल से पुरूषों के लिए यौन सुख का साधन बन जाती हैं।

प्राचीन काल से आज के युग में इसके दर में कोई कमी नहीं आई है। भारत के संविधान में कितनी ही धाराएं बन जाएं, फिर भी नारी सुरक्षित नहीं है। आए दिन रेप के केस सुर्खियों में नजर आ ही जाते हैं। इसके कारण महिलाएं हमेशा लांछित होती रहती हैं और बाद में सामाजिक लांछन से बचने के लिए आत्महत्या को चुन लेती हैं।

उसके बाद आता है विवाह के बाद का जीवन। लोग कहते हैं कि बेटी शादी के बाद पराई हो जाती है और यह प्रथा आज भी लोगों के मन बसी हुई है। 21वीं सदी के विकासशील समाज में कदम रखने के बावजूद बेटी अभी भी पराया धन है।

वह भले ही शादी के बाद पति के घर किसी भी हाल में रहे, उसे वहीं रहना पड़ता है। समाज सब देखता है और झूठा रोना रोता है, लेकिन साथ देने कोई नहीं आता।

अक्सर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के चलते बसा बसाया घर बरबाद हो जाता है लेकिन यहां भी समाज का नजरिया नहीं बदला है। इसके लिए भी पत्नी को ही कसूरवार ठहराया जाता है और घर में ऐसे हालात बना दिए जाते हैं कि वह घर छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं।

लेकिन तब भी उसकी जिंदगी की परेशानियां खत्म नहीं होती हैं। घरवालों से लेकर समाज सब उसके सामने ऐसे हालात तैयार कर देते हैं कि उसे आत्महत्या बेहतर विकल्प लगने लगता है। 

और पढ़ें- ऐसी 10 बीमारियां जिनके शिकार अधिकतर इंडियन यूथ हो रहे हैं

[mc4wp_form id=’183492″]

अब आपके दिमाग में चल रहा होगा कि यदि महिला आत्महत्या करने का विचार कर रही है, तो उसके लक्षण क्या होते हैं? यहां हम आपको महिलाओं में आत्महत्या के लक्षणों के बारे में बता रहे हैं –

  • वह बार-बार आत्महत्या करने का विचार प्रकट करती हैं।
  • नींद की गोली लेकर आत्महत्या करने की कोशिश करती हैं।
  • हमेशा अकेले चुपचाप रहने लगती है।
  • किसी से अपने दिल की बात शेयर नहीं करती है।
  • घुटनभरी जिंदगी जीने लगती है।
  • उसके जीने का तरीका बिल्कुल बदल जाता है।
  • हमेशा जीवन से नकारात्मक सोच या नजरिया रखता है।
  • हर बात पर अलविदा कहने लगती हैं या फिर से न मिलने की बात करती है।

और पढ़ें- खुद से बात करना नॉर्मल है या डिसऑर्डर

जब भारत में महिला आत्महत्या करने की बात दिल में लाने लगती है तो इस तरह के आम लक्षण दिखने लगते हैं। अगर उस वक्त कोई उसे भावनात्मक और मानसिक रूप से सहारा देता है, तो वह उस परिस्थिति से बाहर आ सकती हैं।

लेकिन मुश्किल की बात यह है कि हमारे अपनों के पास ही समय नहीं है। कहने का मतलब यह है कि भारत में महिला आत्महत्या को रोका जा सकता है लेकिन उसके लिए आपको अपनों का साथ देंना होगा।

अपनी बहन, अपनी बेटी, अपनी बीवी, अपनी मां को थोड़ा-सा समय दें , उनके हाथों को थामकर उनसे दो पल बात करें, तो इस आत्महत्या को रोका जा सकता है। आत्महत्या को रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाने से किसी को मौत के मुंह से बचाया जा सकता है, जैसे कि

अगर आपका कोई अपना इस हालात से गुजर रहा है तो –

  • उसका साथ दें।
  • दिन में कम से कम आधा घंटा ही सही, उनसे बात करें और समय दें।
  • उनकी परेशानियों को बांटें।
  • उन्हें भावनात्मक रूप से सहारा दें।
  • दूर हैं तो क्या हुआ फोन पर बात करें या मैसेज से कनेक्ट करें।
  • अगर तब भी स्थिति संभल नहीं रही है तो मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।

हो सकता है कि आपका एक कदम एक जिंदगी को आत्महत्या से खुशहाली की तरफ ले जाए। तो देर किस बात की, कदम बढ़ाइए और किसी की डूबती हुई जिंदगी को सहारा दें।

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Indian suicide data: What do they mean?/https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6902359/Accessed on 2 September 2020

 

Suicide in women/ https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4539867/ Accessed on 2 September 2020.

 

Indian women a third of world’s female suicides/ https://www.hsph.harvard.edu/news/hsph-in-the-news/india-women-suicide/ Accessed on 2 September 2020.

 

Suicide By Women Is A Major Public Health Concern In India/ https://www.npr.org/sections/goatsandsoda/2018/09/25/651095638/suicide-by-women-is-a-major-public-health-concern-in-india/ Accessed on 2 September 2020.

 

Suicide Prevention/ https://www.psychiatry.org/patients-families/suicide-prevention/Accessed on 2 September 2020.

 

Suicide and suicidal thoughts/ https://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/suicide/symptoms-causes/syc-20378048/ Accessed on 2 September 2020.

Current Version

24/11/2020

Mousumi dutta द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Shivam Rohatgi


संबंधित पोस्ट

डिप्रेशन ही नहीं ये भी बन सकते हैं आत्महत्या के कारण, ऐसे बचाएं किसी को आत्महत्या करने से

युवाओं में आत्महत्या के बढ़ते स्तर का कारण क्या है?


के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

डॉ. प्रणाली पाटील

फार्मेसी · Hello Swasthya


Mousumi dutta द्वारा लिखित · अपडेटेड 24/11/2020

ad iconadvertisement

Was this article helpful?

ad iconadvertisement
ad iconadvertisement