साल 2020 हम सभी के लिए काफी तनाव भरा रहा और अभी भी स्थिति वैसी ही बनी हुई है। जिस तरह से कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसी के साथ लोगों का तनाव भी बढ़ रहा है। इस कारण कुछ लोगों को कोरोना फोबिया भी हो गया है। कोरोना के अलावा और भी कई कारणों से आजकल लोगों में एंग्जाइटी डिसऑर्डर बढ़ा है। लोगों की अच्छी हेल्थ के लिए उनका अच्छा मानसिक स्वास्थ्य होना बहुत जरूरी है। दुनिया भर में मानसिक विकार को लेकर जागरूकता फैलाई जाने के लिए हर वर्ष 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मनाया जाता है। इस साल मानसिक विकारों में कोरोना के कारण भारी मात्रा में बढ़ोतरी देखी गई है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (डब्लू एच ओ) द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया इस वर्ष मानसिक विकार के आंकड़े दोगुना तक बड़ गए हैं। जिसकी वजह कोरोना महामारी है।
कोरोना महामारी के कारण सभी प्रकार की चिकित्सीय सेवाओं में भी रुकावटें आई हैं जिसमें मानसिक विकार सबसे ऊपर है। डब्लूएचओ के इस सर्वे में विश्व के कुल 130 देशों का डेटा शामिल है। जिसमें यह सामने आया की 93 प्रतिशत देशों में मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है। कोरोना महामारी के चलते मेंटल हेल्थ सर्विस में कमी आने के कारण आपातकालीन स्थितियों के आंकड़ों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।
5 अक्टूबर 2020 को डब्लूएचओ के बड़े इवेंट के बाद एक सर्वे पब्लिश किया गया । इस सर्वे में यह भी बताया गया की 93 प्रतिशत देशों में 89 प्रतिशत देश मानसिक विकार को गंभीरता से ले रहे हैं, जबकि इनमें से केवल 17 फीसदी देशों के पासे सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए फंड्स हैं।
यानि विश्व के आधे से ज्यादा देशों के पास मेंटल हेल्थ सर्विस प्रोवाइड करवाने के लिए फंड्स मौजूद नहीं हैं। इसका सीधा प्रभाव लोगो के स्वास्थ्य और उनकी जीवन प्रत्याशा दर पर पड़ेगा।
कोरोना महामारी से न केवल मानसिक विकार से ग्रस्त लोगों के मामलें बढ़े हैं बल्कि जिन लोगों को पहले से मानसिक रोग था उनमें गंभीरता भी अधिक पाई गई। जून 2020 से लेकर अगस्त 2020 तक मांपे गए इन आंकड़ों के अनुसार शराब व ड्रग्स के सेवन और एंग्जायटी, डिप्रेशन और स्ट्रेस का स्तर सभी देशों में बढ़ता हुआ नजर आया है।
कोविड-19 स्वयं न्यूरोलॉजिकल और मेंटल हेल्थ संबंधित जटिलताओं को बढ़ावा देता है। जिसमें डेलीरियम (प्रलाप), व्याकुलता और स्ट्रोक शामिल हैं।
जो लोगों पहले से ही न्यूरोलॉजिकल मेंटल हेल्थ से ग्रस्त हैं या ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं उनमें कोरोना वायरस होने का खतरा अधिक रहता है। इन वर्ग के लोगों में कोरोना के सबसे गंभीर मामलें देखे गए हैं जिनमें मृत्यु होने की आशंका भी ज्यादा रहती है।
डब्लूएचओ के डायरेक्टर-जनरल डॉक्टर टेडरोस एधनोम गैब्राईसिस (Dr Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने कहा “अच्छा मानसिक स्वास्थ्य संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है।’ इसके आगे उन्होंने बताया की “कोरोना वायरस ने मेंटल हेल्थ सेवाओं पर तब रोक लगाई है जब उनकी सबसे ज्यादा आवश्यकता है। विश्व भर के सभी लीडर्स को आगे बढ़ते हुए मेंटल हेल्थ अधिक गंभीरता से लेना चाहिए और उसकी सभी सेवाओं को लोगो तक पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए।’
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मेंटल हेल्थ डे पर सामने आए डब्लूएचओ के चौका देने वाले आंकड़े
सर्वे जून 2020 से लेकर अगस्त 2020 तक कुल 130 देशों में किया गया है। इस सर्वे में यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि कोरोना वायरस के कारण मेंटल व न्यूरोलॉजिकल हेल्थ और नशीले पदार्थ के इस्तेमाल पर कितना प्रभाव पड़ा है। इसके साथ ही मेंटल हेल्थ से जुडी सेवाओं में किस हद तक रुकावटें आई हैं और विभिन्न देशों ने किस प्रकार उनसे लड़ने की कोशिश की है।
सभी देशों में विभिन्न प्रकार से मेंटल हेलथ सर्विस प्रभावित हुई हैं जिनमें निम्न शामिल हैं –
- लगभग 60 प्रतिशत देशों में मेंटल हेल्थ सुविधाओं को मुहैया करवाने में रुकावटें आई हैं जिनमें 72 प्रतिशत बच्चे, 70 प्रतिशत बुजुर्ग और महिलाओं शामिल हैं जिन्हें स्थिति के पूर्व और बाद में सर्विस प्रदान नहीं करवाई जा सकी या उनमें देरी आई है।
- मनोवैज्ञानिक सेवाओं जैसे साइकोथेरेपी और काउन्सलिंग में 67 प्रतिशत रुकावट देखी गई तो वहीं गंभीर रूप से प्रभावित परिस्थितियों में मदद पहुंचाने में 65 फीसदी गिरावट आई।
- आपातकालीन परिस्थितियों के 35 प्रतिशत मामलों में रुकावट आई जिनमें मुख्य रूप से मिर्गी, अत्यधिक नशीले पदार्थ और डेलीरियम से ग्रस्त लोग शामिल थे।
- 30 प्रतिशत तक मेंटल हेल्थ, न्यूरोलॉजिकल और सब्सटांस यूज डिसऑर्डर में दवाओं की कमी के मामलें सामने आए हैं।
- करीबन स्कूल और कार्य स्थल पर एक तिहाई मामले ऐसे रिपोर्ट किए गए जिनमें मेंटल हेल्थ सेवाएं नहीं पहुंचाई जा सकी।
जहां एक तरफ कई देशों ने मरीजों तक जानकारी और दवाएं पहुंचाने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया वहीं दूसरी ओर इनके आंकड़ों में भारी असमानताएं पाई गई।
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उच्च आय वाले 80 फीसदी देशों में टेलीमेडिसिन (आधुनिकता की मदद से दवाओं जानकारी को मरीज तक पहुंचाना) और टेलीथेरेपी का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया। इससे मेंटल हेल्थ सेवाओं को पूरी तरह से तो नहीं लेकिन काफी हद तक जारी रखा गया। इसके साथ ही कम आय वाले देशों में इन सुविधाओं का इस्तेमाल केवल आधे दर पर ही किया गया।
डब्लूएचओ ने सभी देशों के लिए मेंटल हेल्थ संबंधित सेवाओं को मुहैया करवाने के लिए दिशा-निर्देश दिए हैं। जिनकी मदद से ज्यादा से ज्यादा लोगों को चिकित्सीय मदद पहुंचाई जा सके। इसके साथ ही डब्लूएचओ ने देशों को सलाह दी की वह सेवाओं मॉनिटर करने में नए बदलाव लाते रहें ताकि सभी लोगों की बिना किसी रुकावट के मदद की जा सके।
जहां एक तरफ इस सर्वे 89 प्रतिशत देशों ने बताया की कोविड 19 से लड़ने के लिए उन्होंने मेंटल हेल्थ और साइकोलॉजिकल सपोर्ट को कोविड-19 रिस्पांस प्लान में शामिल किया है वहीं केवल 17 प्रतिशत देशो के पास इन्हें पूरा करने के लिए फंडिंग मौजूद है।
यही कारण है कि लोगो तक समय रहते सुविधाएं और मदद नहीं पहुंचाई जा पा रही हैं। ऐसे में लोगो को यह जानना बेहद जरूर है कि वह किसी मेंटल हेल्थ संबंधित आपातकालीन स्थिति में खुद को कैसे तैयार रखें। इस साल मेंटल हेल्थ डे के दौरन हम आपको कुछ ऐसी ही टिप्स के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप खुद को व अपने साथियों को समय रहते मदद मुहैया करवा सकेंगे।
तो चलिए सबसे पहले जानते हैं कि आखिर मानसिक विकार क्या होता है और कौन लोग इसकी चपेट में आने के अधीन हैं।
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मेंटल हेल्थ डे 2020 : मेंटल हेल्थ क्या है?
मेंटल हेल्थ हमारी भावनात्मक और साइकोलॉजिकल स्वास्थ्य को दर्शाती है। एक स्वस्थ मानसिकता आपको खुश रखने व शारीरिक रूप से बेहतर बनाए रखने में मदद करती है। यह आपको जीवन में होने वाले अच्छे-बुरे सभी प्रभावों को समझने में मदद करती है।
आपका मानसिक स्वास्थ्य कई कारकों से प्रभावित हो सकता है खासतौर से इस महामारी के दौरान सभी इसके खतरे में अधिक लीन हैं। जिन लोगों में मानसिक विकार होने की आशंका जेनेटिक है उन्हें इस महामारी के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
ऐसी कई उपाय व तरिके हैं जिनकी मदद से आप अपनी मानसिकता को स्वास्थ्य बनाए रख सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं –
- सकारात्मक मनोदृष्टि रखें
- पर्याप्त रूप से व्यायाम करें
- दूसरे लोगों की मदद करें
- पर्याप्त रूप से नींद लें
- अच्छे डायट का सेवन करें
- मेंटल हेल्थ संबंधी मदद लेते समय हिचकिचाए न और डॉक्टर से सही पर परामर्श करें
- जिन लोगों के साथ आपको समय बिताना अच्छा लगता हो उनसे बातें करने की कोशिश करें
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मेंटल हेल्थ डे 2020 : मनोविकार क्या है?
मनोविकार एक बेहद बड़ी श्रेणी है जिसे कई अन्य रोग में विभाजित किया गए है, जैसे कि अवसाद, मिर्गी, स्ट्रोक, स्ट्रेस और आदि। इस प्रकार की समस्याएं आपके दिनचर्या को प्रभावित कर सकती हैं। मनोविकार कई कारकों से प्रभावित हो सकता है जैसे की –
- बायोलॉजी
- जींस (माता-पिता से मिले गुण-अवगुण)
- वातावरण
- जीवनशैली
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मेंटल हेल्थ डे 2020 पर सामने आए आंकड़ें
जहां एक तरफ डॉक्टर और वैज्ञानिक मेंटल डिसऑर्डर के नए इलाज की तलाश में लगे हुए हैं वहीं इस साल कोरोना महामारी के चलते सभी सुविधाओं पर रोक लग चुकी है। इसके चलते इस वर्ष पुरे भारत में मानसिक विकार के आंकड़ों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
इस साल भारत में मनोविकार के मामलें 20 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं। इसके पीछे की वजह कोरोना महामारी को ठहराया जा रहा है क्योंकि इसके कारण कई लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। बेरोजगारी, घर में बंद रहना, डोमेस्टिक वायलेंस, यौन उत्पीड़न, कर्ज और यहां तक की अत्यधिक नशीले पदार्थों का सेवन करने से मनोविकार के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।
यह मामलें भले ही ज्यादातर मध्यवर्ग के लोगों से जुड़े हों लेकिन कहीं न कहीं इससे गरीब भी प्रभावित हुए हैं जिनके कारण उनमें भी आत्महत्या के आंकड़े बढ़ते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा लॉकडाउन के खुलने पर रेप के मामलों में भी बढ़ोत्तरी देखी गई।
भारत में पहले से ही 1 करोड़ 50 लाख मनोविकार के मामलें दर्ज हैं। यह सभी मरीज कोरोना की चपेट में आने के अधिक लीन हैं क्योंकि कोविड-19 न्यूरोलॉजिकल और मेंटल पेशेंट पर अत्यधिक प्रभाव डालता है। इसके अलावा डॉक्टर, कोरोना से ठीक हुए लोग, मेडिकल कर्मचारी, विकलांग, महिलाएं और बुजुर्गों को भी इससे अधिक खतरा है। यदि समय रहते सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
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मेंटल हेल्थ डिसॉर्डर
मानसिक विकार में कई ऐसे रोग मौजूद होते हैं जिनका इलाज कर पाना बेहद मुश्किल या लगभग नामुमकिन होता है। इनमें सबसे सामान्य विकार होते हैं –
बायपोलर डिऑर्डर
बायपोलर डिसॉर्डर एक क्रोनिक मेंटल बीमारी होती है जो कि हर वर्ष बढ़ती ही जा रही है। इसके ज्यादातर मामलें अधिक उम्र के लोगों में देखे जाते हैं। बायपोलर डिसऑर्डर के कारण लोगों के मन में बदलाव, अवसाद, लो एनर्जी और गंभीर रूप से सोचने की क्षमता पर प्रभाव पड़ना।
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अवसाद
कोरोना वायरस के चलते लोगों में बेरोजगारी, नशीले पदार्थ का सेवन, डोमेस्टिक वायलेंस, रेप केस और पैनिक अटैक के मामलें बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में अवसाद का शिकार होने बेहद सामान्य होता जा रहा है। देश भर में कोरोना वायरस के दौरन लगे लॉकडाउन की वजह से करीब 25 प्रतिशत अधिक मामलें सामने आए हैं। इसके अलावा कई ऐसे भी मामलें हैं जिन्हें लॉकडाउन में दर्ज नहीं किया जा सका है।
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चिंता
चिंता एक ऐसी समस्या है जिससे हर व्यक्ति दिन में एक न एक बार तो जरूर गुजरता है। इसके अलावा चिंता का एक उच्च स्तर भी होता है जिसे जनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर कहा जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति अधिक चिंतित हो जाता है जिसके कारण पैनिक या एंग्जायटी अटैक पड़ने की आशंका रहती है।
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स्ट्रेस
लोगो को आज के समय में कई चीजों का स्ट्रेस है फिर चाहे वह जॉब होने या न होने का हो या घरेलू महिलाओं को घर चलाने का। हर कोई तनाव से ग्रस्त रहने लगा है। तनाव के सबसे अधिक मामले इस वर्ष लॉकडाउन के दौरान देखे गए हैं जिनमें अधिक स्तर आधुनिक शहरों का है।
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मेंटल हेल्थ डे पर जानते हैं की सरकार क्या कर रही है?
मेंटल हेल्थ केयर की बात की जाए तो भारत में इसके हाल हद से ज्यादा बुरे हैं। आंकड़ों की माने तो पुरे वर्ष में भारत सरकार मनोविकार के एक व्यक्ति पर केवल 33 पैसे खर्च करती है। भारत में लगभग 9 करोड़ से भी अधिक लोग ग्रस्त हैं यानि देश की कुल 7.5 फीसदी आबादी मेंटल डिऑर्डर से ग्रस्त है।
इतनी अधिक आबादी के ग्रस्त होने के बावजूद भी मेंटल हेल्थ को हमारे देश में गंभीरता से नहीं लिया जाता है। मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फॅमिली वेलफेयर द्वारा किए गए एक सर्वे में यह पाया गया की कुल 15 करोड़ भारतियों को मेंटल हेल्थ केयर की आवश्यकता है जबकि इसे मुहैया 3 करोड़ से भी कम लोगों को करवाया जा पाता है।
2019 में ब्रिटिश चैरिटी, मेंटल हेल्थ रिसर्च यूके द्वारा एक अध्ययन किया गया जिसमें उन्होंने पाया की भारत के कॉर्पोरेट सेक्टर में काम कर रहे लोगों की 42 फीसदी आबादी अवसाद या चिंता के विकार से ग्रसित है।
इसके अलावा जहां हर साल देशभर में 15 से 40 वर्षीय लोगों में से 35 फीसदी अवसाद से ग्रस्त होते हैं वहीं ये आंकड़े बढ़ कर 45 फीसदी तक आ चुके हैं। इसके अलावा बच्चों और वयस्कों में मृत्य का मुख्य कारण आत्महत्या पाया गया है।
कोरोना वायरस के चलते पुरे देश में कुल 20 करोड़ मेंटल डिसऑर्डर मेंटल डिसऑर्डर के मामलें सामने आ सकते हैं। इन सभी को संभालने लायक हमारी सरकार के पास कोई प्लान नहीं है।
आंकड़ों की माने तो भारत हर वर्ष अपने हेल्थ बजट से मेंटल हेल्थ पर मात्र 0.005 प्रतिशत खर्च करता है। यानि अगर अनुमान लगाया जाए तो हर मरीज पर मात्र 33 पैसा। भारत जीडीपी में विश्व में पांचवे स्थान पर आता है जबकि मेंटल हेल्थ केयर में बजट के अनुसार हम कम आय वाले देश से भी कम खर्च करते हैं।
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मेंटल हेल्थ डे पर कैसे फैलाएं जागरूकता?
अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने के लिए अपने दोस्तों परिवार जनों और सह कर्मियों के साथ जानकारी बांटे उन्हें बताए कि किस तरह कोरोना वायरस के चलते देश भर की हालत कितनी गंभीर हो चुकी है।
यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो पहले से ही मेंटल डिसऑर्डर से ग्रस्त है तो उसकी मदद करें। क्योंकि इस साल उन लोगों के लिए यह समय सबसे अधिक मुश्किल है। आप चाहें तो लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए यहां दी गई जानकारी इस आर्टिकल की लिंक को भी अधिक से अधिक शेयर कर सकते हैं।
कोरोना वायरस और मेंटल हेल्थ डे की इस गंभीर परिस्थिति को हम सभी को मिलकर खत्म करना होगा। अन्यथा इसके कारण अवसाद, स्ट्रेस, ट्रामा, आत्महत्या और अन्य मेंटल डिसऑर्डर के मामलें बढ़ते ही चले जाएंगे।
हम आशा करते हैं कि आपको यहां दी गई जानकारी महत्वपूर्ण और जागरूक करने योग्य लगी हो। अगर आप मेंटल डिसऑर्डर के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो इस यहां क्लिक करें – मेंटल हेल्थ