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क्या कहती हैं रिसर्च?
लॉस एंजेल्स की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ने एक रिसर्च किया, जिसमें आइसोलेशन के कारण होने वाले ट्रॉमा का जिक्र किया गया। रिसर्च में ये बात सामने आई है कि 25 प्रतिशत बच्चों को आइसोलेट और क्वारंटाइन रहने से उन्हें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर हो गया।
मार्च 2020 में ओरेगॉन यूनिवर्सिटी में हुए एक सर्वे में ये बात सामने आई कि 68 प्रतिशत पेरेंट्स ने बच्चों में स्ट्रेस लेवल को बढ़ते हुए देखा है। वही, 33 प्रतिशत बच्चों में चिड़चिड़ापन और बुरा व्यवहार देखने को मिला। दूसरी तरफ अप्रैल 2020 में याले सर्वे में 5000 ऑनलाइन क्लासेस देने वाले टीचर्स से पूछा गया तो उन्होंने बच्चों में पांच तरह के बदलाव महसूस किए। टीचर्स का कहना है कि उन्होंने बच्चों में चिंता, डर, तनाव, घबराहट और दुख से ग्रसित महसूस किया।
यूनिसेफ (द यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रन्स फंड) के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 1.5 अरब बच्चे और वयस्क लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोरोना काल का असर पड़ रहा है। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने करीब 188 देशों के लोगों को प्रभावित कर रहा है। यूनिसेफ के अनुसार अगर ग्लोबल स्टूडेंट्स की बात की जाए तो करीब 90 प्रतिशत बच्चों पर स्कूल बंद होने के कारण निगेटिव इफेक्ट्स पड़ रहा है। कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रभावित हो रही है जिसके कारण बच्चों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और मानसिक तनाव पैदा हो रहा है।
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कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से कैसे बाहर निकालें?
नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्कूल साइकोलॉजी के मुताबिक कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ का इलाज तीन चरणों में होना चाहिए।
- पहला चरण : बच्चों को मानसिक समस्या से बचाना
- दूसरा चरण : अगर बच्चा किसी तरह से मानसिक समस्या का शिकार हो गया है तो उसे तुरंत ट्रीटमेंट की जरूरत होगी।
- तीसरा चरण : इस चरण में बच्चे को साइकोथेरिपी की जरूरत होती है।
इन चरणों के लिए पेरेंट्स और टीचर्स को बच्चे की मानसिक स्थिति को पहले समझना पड़ता है। इसके बाद उन्हें हैंडल करने का प्रयास डॉक्टर की मदद से करना चाहिए।
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कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए पहले चरण में बच्चे के बदलते व्यवहार को पलटना होता है। हावर्ड सेंटर के अनुसार बच्चे को अच्छे काम में उलझा कर रखें, उसमें सामाजिक भावना पैदा करें और सच्चाई बताएं। बच्चे को बताएं कि कोरोना काल में उसे कैसे ठीक से रहना है। कोरोना बीमारी क्या हैं, उसका इलाज क्या है और रोकथाम क्या है। बच्चे को ऐसी सरल भाषा में बताएं कि वो बिल्कुल भी पैनिक ना हो।
इसके बाद भी अगर कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम हो जाती है तो दूसरे चरण में बच्चे को लेकर किसी मनोचिकित्सक के यहां जाना चाहिए और बच्चे के बदले हुए व्यवहार के बारे में बताना चाहिए। इसके बाद तीसरे चरण में बच्चे की साइकोथेरिपी कराएं। जिससे उसे पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से बाहर निकाला जा सकता है।
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इन तरीकों से आप कोरोना में बच्चे की मेंटल हेल्थ का पूरा ध्यान रख सकते हैं। इसके अलावा अधिक परेशानी होने पर अपने डॉक्टर से जरूर मिलें। हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई मेडिकल जानकारी, इलाज आदि मुहैया नहीं कराता है।