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Hypopituitarism : हाइपोपिटिटारिज्म क्या है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Anu sharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 31/05/2020

Hypopituitarism : हाइपोपिटिटारिज्म क्या है?

परिचय

हाइपोपिटिटारिज्म क्या है?

हाइपोपिटिटारिज्म एक ऐसा विकार है, जिसमें पिट्यूटरी ग्रंथि कुछ या सभी हार्मोन्स का सामान्य मात्रा में उत्पादन नहीं कर पाती। पिट्यूटरी ग्रंथि कई हार्मोन या केमिकल का उत्पादन करती है जो शरीर में अन्य ग्रंथियों को नियंत्रित करते हैं। अगर यह ग्रंथियां इन हार्मोन्स का उत्पादन नहीं कर पाती हैं तो उसे हाइपोपिटिटारिज्म कहा जाता है। पिट्यूटरी को मास्टर ग्रंथि कहा जाता है। यह एक मटर के आकार की ग्रंथि है। हाइपोपिटिटारिज्म एक दुर्लभ स्थिति है जिसमे पिट्यूटरी ग्रंथि कुछ खास हार्मोन्स पर्याप्त रूप से नहीं बना पाती। इन हार्मोन्स की कमी से शरीर के सामान्य कार्य प्रभावित हो सकते हैं जैसे शरीर का विकास, रक्तचाप या प्रजनन आदि। अगर किसी को यह समस्या है तो उसके लिए पूरी उम्र इसकी दवाई लेना आवश्यक है। यह दवाईयां अनुपस्थित हार्मोन्स की कमी को पूरा करती हैं, जिससे इसके लक्षण नियंत्रण में रहते हैं।

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लक्षण

हाइपोपिटिटारिज्म के क्या लक्षण हैं?

हाइपोपिटिटारिज्म के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि रोगी के शरीर में कौन से हार्मोन की कमी है इसके लक्षण इस प्रकार हैं :

  • ACTH (Adrenocorticotropic hormone) की कमी से कोर्टिसोल की कमी : इस स्थिति में हाइपोपिटिटारिज्म के लक्षण हैं कमजोरी, थकान, वजन कम होना, पेट दर्द, रक्तचाप का कम होना और सीरम सोडियम लेवल का कम होना। संक्रमण या सर्जरी में होने वाले गंभीर तनाव के दौरान, कोर्टिसोल की कमी से कोमा और मृत्यु भी हो सकती है।
  • TSH (Thyroid-stimulating hormone) कमी से थायराइड हॉर्मोन की कमी: इसके लक्षण हैं थकान, कमजोरी, वजन कम होना, ठंड लगना, कब्ज, याददाश्त कमजोर होना और ध्यान लगाने में समस्या होना। इस स्थिति में त्वचा रूखी हो सकती है और रंग पीला पड़ सकता है। इसके साथ ही इसके अन्य लक्षण हैं एनीमिया, कोलेस्ट्रॉल लेवल का बढ़ना और लिवर में समस्या।

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  • महिलाओं में LH (Luteinizing hormone) और FSH (follicle-stimulating hormone)  की कमी : LH और FSH की कमी से मासिक धर्म में समस्या, बांझपन, योनि का सूखापन, ऑस्टियोपोरोसिस और अन्य यौन समस्याएं हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप हड्डी के फ्रैक्चर की संभावना बढ़ सकती है।

    पुरुषों में LH और FSH की कमी : LH और FSH की कमी से कामेच्छा में कमी, कम शुक्राणु बनना , इनफर्टिलिटी आदि यौन समस्याएं हो सकती हैं। यह भी पुरुषों में इस समस्या के कुछ लक्षण हैं।

  • GH की कमी: बच्चों में, GH की कमी से बच्चों के विकास न होना और बच्चों के शरीर में बसा की मात्रा का बढ़ना आदि समस्याएं हो सकती हैं। GH की कमी से शरीर में ऊर्जा की कमी हो सकती है।
  • PRL(Prolactin) की कमी : PRL की कमी होने पर प्रसव के बाद माताएं अपने शिशु को स्तनपान कराने में सक्षम नहीं होती।
  • एंटी डाइयुरेटिक हॉर्मोन की कमी: इस हार्मोन्स की कमी के कारण डायबिटीज इन्सिपिडस (DI) हो सकती है। DI मधुमेह मेलेटस के समान नहीं है, जिसे टाइप 1 या टाइप 2 मधुमेह या चीनी मधुमेह के रूप में भी जाना जाता है। DI के लक्षण हैं रात में अधिक प्यास लगना और लगातार पेशाब आना। यदि DI अचानक होता है, तो यह इस बात का संकेत है कि आपको ट्यूमर या सूजन है।
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    कारण

    हाइपोपिटिटारिज्म के क्या कारण हैं?

    हाइपोपिटिटारिज्म के कई कारण है। कई मामलों में, हाइपोपिटिटारिज्म का कारण पिट्यूटरी ग्रंथि में होने वाला ट्यूमर होता है। जैसे ही पिट्यूटरी ट्यूमर आकार में बढ़ता है, तो इससे पिट्यूटरी टिश्यू दबते हैं और उन्हें नुकसान होता है। ट्यूमर ऑप्टिक नसों को भी संकुचित कर सकता है, जिससे देखने में परेशानी हो सकती है। हालांकि, कुछ अन्य बीमारियां और स्थितयां भी पिट्यूटरी ग्रंथियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं जिससे हाइपोपिटिटारिज्म जैसी समस्या हो सकती है, जैसे:

    • सिर में चोट
    • दिमाग की सर्जरी
    • सिर या गर्दन में रेडिएशन उपचार
    • दिमाग या पिट्यूटरी ग्रंथि (स्ट्रोक) में रक्त प्रवाह में कमी या मस्तिष्क या पिट्यूटरी ग्रंथि में रक्तस्राव
    • कुछ दवाईयां भी इसका कारण बन सकती हैं जैसे नशीले पदार्थ, हाई डोज कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स या कुछ कैंसर ड्रग्स जिन्हें चेकपॉइंट अवरोधक कहा जाता है
    • असामान्य इम्यून सिस्टम के कारण पिट्यूटरी ग्रंथि में सूजन
    • मस्तिष्क के संक्रमण, जैसे मेनिन्जाइटिस, या संक्रमण जो मस्तिष्क में फैल सकते हैं
    • अंतःस्यंदन (Infiltrative) बीमारियां, जो शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करती हैं, जिसमें सारकॉइडोसिस शामिल हैं।
    • बच्चे के जन्म के दौरान रक्त का अधिक निकलना, जिनसे पिट्यूटरी ग्रंथि के सामने के हिस्से को नुकसान पहुंचा सकती है।

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    जोखिम

    हाइपोपिटिटारिज्म के जाेखिम क्या है?

    हाइपोपिटिटारिज्म की समस्या इन स्थितियों में जोखिम भरी हो सकती है:

    • पिट्यूटरी ट्यूमर
    • पिट्यूटरी एपोप्लेक्सी
    • खून का अधिक निकलना, जैसे कि शीहान सिंड्रोम या प्रसवोत्तर हाइपोपिटिटारिज्म
    • पिट्यूटरी सर्जरी, जैसे कि हाइपोफिज़ेक्टोमी
    • क्रेनियल रेडिएशन
    • आनुवंशिक दोष
    • हाइपोथैलेमिक बीमारी
    • इम्युनोसुप्रेशन, जैसे एचआईवी
    • इंफ्लेमेटरी प्रोसेसेज जैसे कि हाइपोफाइटिस
    • हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के साथ नॉन-कंप्लायंस
    • इंफिल्ट्रेटिव डिसऑर्डर्स जैसे सारकॉइडोसिस और हिस्टीयसीटोसिस
    • ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी जिन से खोपड़ी में फ्रैक्चर हो सकता है
    • इस्केमिक स्ट्रोक

    उपचार

    हाइपोपिटिटारिज्म का उपचार क्या है?

    अगर डॉक्टर आपमें पिट्यूटरी हार्मोन की समस्या के लक्षण देखते हैं, तो वो आपके शरीर में हार्मोन के स्तर और इसके कारण को जानने के लिए कुछ टेस्ट करने के लिए कह सकते हैं। जैसे:

    • ब्लड टेस्टस: इन टेस्ट से खून का नमूना ले कर हार्मोन्स की जांच की जाती है। परीक्षण निर्धारित कर सकते हैं कि क्या ये निम्न स्तर पिट्यूटरी हार्मोन उत्पादन से जुड़े हैं।
    • दिमाग का CT-स्कैन
    • पिट्यूटरी MRI
    • ACTH (Adrenocorticotropic hormone ) 
    • कोर्टिसोल
    • एस्ट्राडियोल (एस्ट्रोजन)
    • फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (FSH)
    • ल्यूटीनाइज़िन्ग (Luteinizing) हॉर्मोन (LH)
    • खून और पेशाब के लिए ओस्मोलालिटी टेस्ट
    • टेस्टोस्टेरोन लेवल
    • थाइरोइड-स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (TSH)
    • थाइरोइड हॉर्मोन (T4)
    • पिट्यूटरी की बायोप्सी

    अगर हाइपोपिटिटारिज्म का कारण ट्यूमर है तो आपको इस ट्यूमर को दूर करने के लिए सर्जरी की जरूरत हो सकती है ताकि ट्यूमर को निकाला जा सकते। इसके साथ ही रेडिएशन थेरेपी की भी जरूरत पड़ सकती है।

    दवाईयां

    हार्मोन जो पिट्यूटरी ग्रंथि के नियंत्रण में नहीं हैं, उन की कमी पूरी करने के लिए आपको पूरी उम्र हार्मोन दवाओं की आवश्यकता होगी जो इस प्रकार हैं।

    • कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स (कोर्टिसोल)
    • ग्रोथ हॉर्मोन
    • सेक्स हॉर्मोन
    • थाइरोइड हॉर्मोन
    • डेस्मोप्रेसिन
    • पुरुषों और महिलाओं के बांझपन के इलाज के लिए दवाएं भी इसमें शामिल हैं।

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    घरेलू उपचार

    • पहले इस रोग के लक्षणों के बारे में जानें इसके बाद खुद में आये परिवर्तनों और लक्षणों को पहचानें। इसके बाद नियमित रूप से डॉक्टर से अपनी जांच कराएं।
    • जब भी आप उपचार के लिए जाएं तो अपने साथ किसी को ले कर जाएं। ताकि, डॉक्टर के बताये निर्देशों के बारे में आप और आपके साथ आया व्यक्ति अच्छे से जान और याद रख पाए। इससे आपको इन निर्देशों का पालन करने में आसानी होगी।

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