पार्किंसन डिजीज के होने के सही कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है। माना जाता है कि यह बीमारी तब होती है जब दिमाग में नर्व सेल्स या न्यूरोन्स खत्म/मर जाते हैं, इसके कारण ब्रेन मूवमेंट पर कंट्रोल नहीं कर पाता और मरीज में इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं। न्यूरॉन्स के काम न करने व नष्ट हो जाने के कारण ही दिमाग में डोपामाइन की कम मात्रा उत्पन्न होती है, जिसके कारण ही मूवमेंट से संबंधित परेशानी आती है। वहीं दिमाग में नोरएफिनेफिरीन जैसे तत्व होते हैं जो हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करते हैं। पार्किंसन डिजीज इसको भी प्रभावित कर सकता है। इस कारण मरीज को थकान, अनियमित ब्लड प्रेशर या फिर एकाएक ब्लड प्रेशर का कम हो जाना (खासतौर पर तब जब व्यक्ति लंबे समय तक बैठा रहे या नीचे लेटा रहे) के साथ वहीं डायजेस्टिव ट्रैक से खाने का सही से न उतरना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
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पार्किंसन डिजीज का इलाज
पार्किंसन रोग के होने के कारण शुरुआती अवस्था में लक्षणों की पहचान नहीं हो पाती है। क्योंकि पीड़ित व्यक्ति धीरे-धीरे बोलता है या फिर धीरे-धीरे लिखता है वहीं सामान्य लोगों की तुलना में हाथ-पांव का मूवमेंट सही से नहीं कर पाता है। वहीं कई बार परिवार के अन्य सदस्य यह देखते हैं कि मरीज सही से प्रतिक्रिया नहीं कर पाता, लेकिन लोग फिर यह सोचने लगते हैं कि कहीं उम्र ज्यादा होने के कारण वो ऐसा तो नहीं कर रहे। सोचकर बिना इलाज कराए ही छोड़ देते हैं। जबकि जरूरी है कि मरीज में इस प्रकार के लक्षण दिखे तो डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए। बता दें कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए किसी प्रकार का ब्लड टेस्ट, न्यूरोलाजिकल इग्जामिनेशन कर पता नहीं लगाया जा सकता है।
एक बार पार्किंसन रोग का पता लग जाने के बाद डोपामाइन के लेवल को बढ़ाने के लिए और मरीज के लक्षणों को देखकर दवा दी जाती है। पीड़ित व्यक्ति चुस्त-दुरुस्त रहे और उसके मसल्स की स्ट्रेंथ अच्छी रहे इसके लिए साइकोथेरेपी के द्वारा भी इलाज किया जाता है। वहीं लंबे समय तक बीमारी रही तो इसका इलाज संभव नहीं है। खासतौर से तब जब बीमारी पकड़ में न आए।
इसका इलाज दवा के अलावा बीमारी का इलाज करने के लिए साइकोथेरिपी, एक्यूपंक्चर और योगा की सलाह दी जाती है। क्योंकि इसके द्वारा शरीर के ब्लॉक नसों को खोलने की कोशिश की जाती है। ऐसा कर शरीर में ब्लड फ्लो बेहतर हो सकता है। वहीं सेल्स व ग्रोथ फैक्टर बेस्ड थैरपी के साथ डायट व लाइफस्टाइल में बदलाव कर काफी हद तक बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है।
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पार्किंसन रोग के कारण अज्ञात हैं, लेकिन निम्न कारक इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं:
जीन (genes): शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन की पहचान की है जो इस रोग का कारण बन सकता है। पर्यावरण ट्रिगर (Environmental triggers): कुछ टॉक्सिन्स या पर्यावरणीय कारकों के संपर्क में आने से पार्किंसंस रोग का खतरा बढ़ सकता है।