मिनी स्ट्रोक से भले ही स्थायी क्षति नहीं होती, फिर भी इसका इलाज जरूरी है। चूकि इसके लक्षण स्ट्रोक की तरह ही होते हैं, इसलिए मिनी स्ट्रोक और स्ट्रोक के अंतर को समझन के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूरी है। मिनी स्ट्रोक आने वाले समय में स्ट्रोक के खतरे का संकेत हो सकता है। इसलिए मिनी स्ट्रोक के लक्षण दिखने पर डॉक्टर के पास जाएं, क्योंकि सीटी स्कैन याह MRI स्कैन की मदद से वही मिनी स्ट्रोक और स्ट्रोक के लक्षण में अतर कर पाएगा।
मिनी स्ट्रोक या स्ट्रोक के कारणों का मूल्यांकन करने के लिए डॉक्टर अल्ट्रासाउंड की सलाह दे सकता है ताकि रक्त वाहिका में किसी तरह की रुकावट का पता चल सकते। हृद्य में किसी तरह का ब्लड क्लॉट तो नहीं है इसकी जांच के लिए इकोकार्डियोग्राम भी किया जाता है। डॉक्टर ECG और छाती का एक्स-रे भी कर सकता है।
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उपचार
मिनी स्ट्रोक का उपचार क्या हैं?
मिटी स्ट्रोक या ट्रांसिएंट इस्कीमिक अटैक का उपचार इसके कारणों पर निर्भर करता है। डॉक्टर ब्लड क्लॉट की संभावना को कम करने के लिए दवा दे सकता है या सर्जरी की सलाह दे सकता है।
दवाएं- दवा भी मिनी स्ट्रोक के कारण, मस्तिष्क का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है और उसकी गंभीरता पर निर्भर करती है।
एंटी प्लेटलेट दवा- यह दवा रक्त में प्लेटलेट्स को आपस में चिपकर ब्लड क्लॉट बनाने से रोकती है। इन दवाओं में शामिल है- एस्पिरिन और डिपाइरिडामोल, क्लोपीडोगरेल।
एंटीकोगुलैंट्स- यहा दवा कई अन्य दवाओं के साथ प्रतिक्रिया कर सकती है। इसलिए आप यदि किसी भी तरह की दवा या सप्लीमेंट्स ले रहे हैं तो उसके बारे में डॉक्टर को बताएं। वारफेरिन (कौमडिन) और हेपरिन एंटीकोगुलैंट्स दवाओं में शामिल हैं।
हाइपरटेंशन की दवा- ब्लड प्रेशर के लिए कई तरह की दवाएं उपलब्ध है। हालांकि यदि कोई व्यक्ति ओवरवेट है तो एक्सराइज, पर्याप्त नींद और बैलेंस डायट के जरिए वजन घटाकर अपना ब्लड प्रेशर कंट्रोल कर सकता है।
कोलेस्ट्रॉल की दवा- ब्लड प्रेशर की तरह ही कोई व्यक्ति एक्सराइज, पर्याप्त नींद और बैलेंस हेल्दी डायट अपनाकर कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। हालांकि कई बार इसके लिए दवा लेना जरूरी हो जाता है।
सर्जरी- कैरोटिड एंडेर्टेक्टोमी नामक एक ऑपरेशन के जरिए क्षतिग्रस्त कैरोटिड आर्टरी की लाइनिंग और आर्टरी में होने वाली किसी ब्लॉकेज को हटाया जाता है। जिन लोगों की आर्टरी पूरी तरह से ब्लॉक है उन्हें सर्जरी की सलाह नहीं दी जाती है, यहां तक की आंशिक ब्लॉकेज की स्थिति में भी ऑपरेशन नहीं किया जाता है क्योंकि इस दौरान स्ट्रोक का खतरा रहता है।
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