कहावत है कि दांतों का दर्द असहनीय होता है, यही वजह भी है यदि कोई दांतों की समस्या से पीड़ित हो तो जल्द से जल्द डॉक्टरी सलाह लेना पसंद करता है। यह जरूरी भी है। दांतों की सेटिंग या ट्रीटमेंट होने के पहले का डर और चिंता को डेंटल एंग्जायटी (Dental Anxiety) कहा जाता है। दांतों की समस्या होने के बावजूद भी डेंटिस्ट के पास नहीं जाने से एक तो इलाज में देरी होगी, वहीं दूसरा यह कि समस्या और गंभीर बनती जाएगी।
दांतों के ट्रीटमेंट को लेकर डेंटल एंग्जायटी कई कारणों से हो सकती है, जैसे डेंटिस्ट द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले नीडल्स, ड्रील या अन्य से हम परेशान हो सकते हैं। ऐसे में डेंटल एंग्जायटी के कारण हम इतने ज्यादा डर जाते हैं कि डेंटिस्ट के पास जाने से घबराने लगते हैं। एक्सपर्ट इसे डेंटल फोबिया भी कहते हैं।
इन कारणों से बढ़ सकता है डेंटल एंग्जायटी
कुछ मानसिक समस्याएं जैसे चिंता विकार (एंग्जायटी डिस्ऑर्डर), डिप्रेशन, किसी एक्सीडेंट के बाद होने वाली चिंता, सिजोफ्रेनिया या सिर और गर्दन से जुड़ा कोई हादसा व एक्सीडेंट होने के कारण संभावनाएं काफी बढ़ जाती है कि व्यक्ति को डेंटल एंग्जायटी की समस्या हो। यदि आप भी इन परिस्थितियों से गुजरें हैं तो जरूरी है कि डॉक्टरी सलाह ली जाए।
13 से 24 फीसदी लोग इस समस्या से पीड़ित
विश्व भर में डेंटल फोबिया या डेंटल एंग्जायटी की बीमारी से करीब 13 से लेकर 24 फीसदी लोग ग्रसित हैं। कुछ लोग इससे तंग जरूर हैं, लेकिन वो काम करने में असक्षम नहीं हैं। लेकिन कुछ लोग इतने ज्यादा गंभीर हैं कि वो डेंटिस्ट के पास जाते ही नहीं, वहीं
उनकी परेशानी और गंभीर हो जाती है। डेंटल एंग्जायटी के लक्षणों पर एक नजर
- चिंता को छिपाने के लिए बिना कारण हंसी और गुस्सा करना
- पसीना आना
- दिल की धड़कनों का बढ़ना व पल्पीटेशन की समस्या
- लो ब्लड प्रेशर या एकाएक बेहोश होना
- तनाव का दिखना, रोना या झल्लाहट
डेंटल एंग्जायटी से पीड़ित व्यक्ति इस प्रकार के लक्षणों को महसूस कर सकता है। वहीं कुछ मरीज तो डॉक्टर के साथ मीटिंग को भी मिस कर सकते हैं। ऐसे में जिसका इलाज आसानी से संभव हो सकता था, सिर्फ डॉक्टर के पास न जाने के कारण काफी जटिल हो जाता है।
डेंटल एंग्जायटी और उसके कारण
- भरोना न कर पाना
- खुद पर कंट्रोल न रहने का डर
- दांतों का इलाज कराने गए और उसके कारण दूसरी समस्या उत्पन्न हो जाने से
- चिकित्सीय दर्दनाक अनुभव या दुर्व्यव्हार के कारण
- सिर या गर्दन में पहले से चोट या एक्सीडेंट होने के कारण
- सामान्य चिंता, तनाव या एक्सीडेंट के बाद होने वाले स्ट्रेस डिस्ऑर्डर के कारण
- एग्रोफोबिया-agoraphobia (इसमें व्यक्ति को डर सताता है कि वो परिस्थितियों से बाहर नहीं निकल पाता), क्लास्ट्रोफोबिया -claustrophobia (बंद जगहों से डर) जैसी स्थिति के जुड़े होने के कारण तनाव या फिर ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर के कारण, जिसमें व्यक्ति को हमेशा सफाई को लेकर चिंता बनी रहती है, ऐसी परिस्थितियों के साथ दांतों का ख्याल ठीक से नहीं रख पाता, न ही इलाज करा पाता है।
डेंटल एंग्जायटी के कारण मुंह की समस्या होती है जटिल
बता दें कि दांतों से जुड़ी ज्यादातर बीमारी हमारे लाइफस्टाइल के कारण होती है, वहीं उसका इलाज संभव है। लेकिन तभी जब हम लक्षणों की पहचान कर जल्द से जल्द डॉक्टरी सलाह लें। वहीं
लाइफस्टाइल को यदि न सुधारा गया तो डायबिटीज, मोटापा, हार्ट डिजीज, स्ट्रोक सहित कैंसर जैसी बीमारी तक हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि दांतों की देखभाल रखी जाए।
समय रहते दर्द पर काबू पाना बेहद जरूरी
डेंटल एंग्जायटी की बीमारी काफी सामान्य है, यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। वैसे बच्चे जो डेंटिस्ट के पास गए और उनकी समस्या सुलझने के बावजूद और उलझ गई, वैसे बच्चों ने यदि समय रहते अपने डर पर काबू न पाया, उन्हें सपोर्ट न किया गया तो आने वाली डेंटल मीटिंग्स से उन्हें डर लगने लगता है। दांतों की देखभाल को लेकर उत्सुक व्यस्क जीवनभर चिंतित रहते हैं। ऐसे लोगों को डेंटल एंग्जायटी की समस्या हो सकती है।
डेंटल एंग्जायटी को इस प्रकार करना चाहिए मैनेज
मौजूदा समय में डेंटल एंग्जायटी को मैनेज करने के कई तरीके हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप अपने इस डर को डेंटिस्ट से जरूर साझा करें। ऐसे में डेंटिस्ट आपके साथ योजना तैयार कर ट्रीटमेंट कर सकता है, जिससे आपको डेंटल एंग्जायटी से निपटने में मदद मिल सकती है। इस बीमारी से उबरने के लिए कुछ टेक्निक को जानते हैं, जैसे :
- हिप्नोसिस
- डीप ब्रिदिंग, लंबी-गहरी सांस लेकर
- प्रोग्रेसिव मसल्स रिलेक्सेशन
- मेडिटेशन कर (ध्यान कर)
- ध्यान अलग कर, जैसे ट्रीटमेंट के दौरान म्यूजिक सुन या फिर टीवी को देख इलाज कराकर
बीमारी से पीड़ित लोगों को साइकोलॉजिस्ट मदद कर सकते हैं। इसका इलाज करने के लिए शॉर्ट टारगेट थैरेपी जैसे कंजीनाइटिव बिहेवियर्ल थैरेपी (cognitive behavioural therapy) के द्वारा सफल उपचार किया जा सकता है। बीमारी का इलाज करने के लिए रिलेटिव एनाग्लिसिया (हैप्पी गैस), एंग्जायटी रिलीविंग मेडिकेशन और जनरल एनेस्थीसिया देकर इलाज किया जाता है।
जरनल एनेस्थीसिया की मदद से उपचार
डेंटल एंग्जायटी का इलाज जनरल एनेस्थीसिया के क्रम में डेंटिस्ट और एनेस्थेसिस्ट अस्पताल में उपचार करते हैं। इसमें मरीज पूरी तरह सो जाता है। इस इलाज पद्धति में कुछ साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं, जैसे जी मचलाना, देर से होश आना शामिल है। कुछ लोगों के लिए जहां यह इलाज का बेहतर माध्यम है, वहीं कुछ लोगों में बेहतर परिणाम नहीं देखने को मिलते हैं। इलाज के बाद भी मरीज डेंटल एंग्जायटी से ग्रसित हो सकता है। इसके लिए ट्रीटमेंट के पहले और बाद में
डेंटिस्ट की सलाह की जरूरत पड़ सकती है। वहीं एनेस्थेसिस्ट की भी सलाह की जरूरत पड़ सकती है। जनरल एनेस्थेटिक के बाद मरीज को तुरंत घर जाने की सलाह नहीं दी जाती है। कुछ मरीजों को कई बार इसकी जरूरत पड़ सकती है। कुछ मामलों में जनरल एनेस्थेटिक के बाद डेंटल चेयर पर ही इलाज किया जाता है।
रिलेटिव एनाग्लिसिया (हैप्पी गैस)
रिलेटिव एनाग्लिसिया को हम हैप्पी गैस, लॉफिंग गैस या फिर नाइट्रस ऑक्साइड के नाम से जानते हैं,
डेंटल ट्रीटमेंट के दौरान मरीज को रिलेक्स रखने में यह मददगार साबित होते हैं। इसके द्वारा मरीज के चेहरे पर एक मास्क लगाया जाता है, वहीं उसे ऑक्सीजन के साथ नाइट्रस ऑक्साइड दिया जाता है, कुछ समय के बाद वो अपना असर दिखाना शुरू करता है। मरीज होश में होने के साथ रिलेक्स महसूस करता है। डेंटिस्ट की बातों को सुनने के साथ उससे बातचीत कर सकता है। लेकिन इलाज पूरा होने के बाद मरीज को कुछ याद नहीं रहता।
नाइट्रस ऑक्साइड के कारण जहां कुछ मरीज रिलेक्स महसूस करते हैं वहीं कुछ मरीज इलाज के लिए दूसरे ऑप्शन को आजमाना पसंद करते हैं।
कॉन्शियस सिडेशन (होश में बेहोश करने की प्रक्रिया)
कॉन्शियस सिडेशन (Conscious sedation) की प्रक्रिया में नस में दवा पहुंचाकर मरीज को बेहोश किया जाता है। यह डेंटल सिडेशनिस्ट या फिर एनेस्थेसिस्ट जैसे एक्सपर्ट ही करते हैं। इसे क्लीनिक के साथ अस्पतालों में भी किया जाता है।
इसके अंतगर्त मरीज रिलेक्स महसूस करता है वहीं कुछ मामलों में हल्की नींद में रहता है, लेकिन वो डॉक्टरों की बात को आसानी से समझ पाने की अवस्था में होता है। इसके भी कुछ साइड इफेक्ट होते हैं, जैसे इलाज के बाद मरीज को जी मचलाना या फिर नींद न आना जैसी शिकायतें हो सकती हैं। इलाज के बाद मरीज को खुद गाड़ी चलाकर घर जाने की सलाह नहीं दी जाती है। सभी डेंटिस्ट इस प्रकार के इलाज की सलाह नहीं देते हैं। क्योंकि पूर्व की कुछ बीमारी या फिर बेहोश करने के कारण दी जाने वाली दवाओं का दुष्प्रभाव पड़ सकता है। जरूरी है कि यह कराने के पहले एक्सपर्ट की राय लेनी चाहिए।
एंग्जायटी रिलीविंग मेडिकेशन
ओरल एंग्जायटी रिलीविंग (anxiolytic) मेडिकेशन जैसे टेमाजेपैम (temazepam) जैसी दवा
डेंटिस्ट लेने की सलाह देते हैं। ताकि मरीज रिलेक्स कर सके। ट्रीटमेंट के करीब एक घंटे पहले इस दवा को लेनी की सलाह दी जाती है। यह दवा डेंटिस्ट या फिर डॉक्टर की सलाह के बाद ही सेवन करना चाहिए। दवा लेने के बाद आपको किसी की जरूरत पड़ सकती है, इसलिए जरूरी है कि हमेशा साथ में कोई रहे। दवा का सेवन कर आप खुद गाड़ी नहीं चला सकते हैं।
इलाज करने के लिए बीमारी का पता लगाना है जरूरी
डेंटल एंग्जायटी का पता लगाना बेहद ही जरूरी है, ताकि मरीज के डर और तनाव को कम किया जा सके। इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज से एक खास प्रकार का इंटरव्यू लेते हैं। सवालों के जरिए जानने की कोशिश करते हैं कि किस समस्या से मरीज ग्रसित है। उसमें एंग्जायटी से जुड़े सवाल भी शामिल होते हैं।
इन तरीकों से डेंटल एंग्जायटी को कर सकते हैं दूर
कोई भी व्यक्ति यदि डेंटल एंग्जायटी की बीमारी से पीड़ित है तो उसे अपनी इस बीमारी को छिपाने की बजाय डॉक्टर से खुलकर बात करनी चाहिए। कतई नहीं घबराना चाहिए कि डॉक्टर क्या सोचेगा, क्या पूछेगा। इसके अलावा जब भी मन में डेंटिस्ट के पास न जाने का ख्याल आए तो उससे अपने दिमाग को अलग सोचना चाहिए। हेडफोन लगा गाना सुनना चाहिए या वो करना चाहिए जिसे करने पर आप बेहतर महसूस करते हो। अपने खुशनुमा लम्हों को याद करना बेहतर होता है। वहीं आप चाहें तो माइन्डफुलनेस टेक्निक की मदद भी ले सकते हैं। कुछ न समझ में आए तो सांसों को गिनना शुरू कीजिए, सांस लेते व छोड़ते वक्त गिनती कीजिए। ट्रीटमेंट के पहले, डेंटल चेयर पर बैठने के पूर्व ऐसा करने से राहत मिलेगी। इसके अलावा आप अपने बॉडी को रिलेक्स करने के लिए खुद ही स्कैन कर सकते हैं। इसके जरिए एक एक कर बॉडी को रिलेक्स करने की कोशिश करें। सिर से शुरुआत करते हुए पांव तक आए। ऐसा करने पर आप अच्छा महसूस करेंगे।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें।
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