दांत का रंग बदलने से युवा रहते हैं सचेत
दांत का रंग बदलने को लेकर युवा वर्ग काफी सचेत रहते हैं, क्योंकि यह भी खूबसूरती का अभिन्न अंग है। जानकारी के आभाव में ज्यादातर युवाओं का मानना है कि सफेद दांत होना ही स्वास्थ व शरीर के लिए सही है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्यादा सुंदर दिखने की चाह में युवा इतना ज्यादा ब्रश करते हैं जिससे हमारे दांतों का ऊपरी सतह इनैमल घिस जाता है। इस कारण भी मुंह की बीमारी हो सकती है। फिर दांत कमजोर होने के साथ सफेद दिखने लगता है। शुरुआत में युवाओं को लगता है कि वो सही कर रहे हैं, लेकिन कुछ साल बाद उनको लक्षण महसूस होते हैं।
सनसनाहट, कुछ भी ठंडा-गर्म खाद्य व पेय खाने पर सनसनाहट-झनझनाहट महसूस होती है। एक्सपर्ट बताते हैं कि पूरे विश्व में स्ट्रा यल्लो ही स्वस्थ दांतों की पहचान हैं। वहीं दांतों की देखभाल को लेकर सचेत रहे। नियमित ब्रश करें। जरूरी है कि दांतों का रंग किसी और रंग का होने की बजाय स्ट्रा यल्लो ही हो।
20 से 60 साल के लोगों में दिखता है दांतों का अलग-अलग रंग
एक्सपर्ट बताते हैं कि पुरुष हो या महिलाएं 20-60 साल के लोगों के दांत का रंग अलग अलग देखने को मिलता है। क्योंकि इस उम्र के लोग सबसे ज्यादा खैनी, पान, गुटका, तंबाकू, धूम्रपान का सेवन करते हैं। ऐसा करने वालों के दांतों में लालपन, कालापन, पीलापन, मसूड़ों का सूखना, दांतों का कमजोर होना, दांतों का पतला होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इस उम्र के लोगों का दांत का रंग काफी ज्यादा बदला हुआ मिलता है।
डा. सिकंदर बताते हैं कि इससे दांत का रंग न केवल बदलता है बल्कि दांतों की क्वालिटी भी खराब होती है। सहयोगी मसूड़े पर भी असर पड़ता है, वो कमजोर होते है।
धूम्रपान करने से जहां दांत हल्के काले होते हैं वहीं तालु (palate) काला हो जाता है, वहीं इससे फेफड़े (lungs) भी खराब होते हैं। जब कोई धूम्रपान करता है तो सिगरेट की गर्म सेक से मसूड़ा जलता है, मसूड़ा गर्म भांप से वास्तविक जगह से खिसकता है। वहीं दांत भी कमजोर होते हैं। कई बार दांत हिलकर गिर भी जाता है। वहीं धुआं फेफड़ों में जाने से वो भी कमजोर होते हैं। जरूरी है कि नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। वहीं लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि इसका सेवन करने से दांत का रंग बदलने से साथ सेहत को नुकसान पहुंचता है।
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डायबिटिज के मरीजों को दिल की बीमारी का खतरा
एक्सपर्ट बताते हैं कि डायबिटिज के मरीजों को दांतों की खास देखभाल करनी चाहिए। क्योंकि दांतों का बैक्टिरियल इंफेक्शन मुंह से शरीर में जाएगा तो इससे दिल की बीमारी का भी खतरा बढ़ेगा। क्योंकि यह इंफेक्शन लंग्स से खून में होते हुए दिल व शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। इससे कार्डिक अरेस्ट (cardiac arrest), इशिमिया (ischemia, lack of blood supply) जैसी समस्या हो सकती है। वहीं कार्डियोलॉजिस्ट भी दिल संबंधी ऑपरेशन के पूर्व सलाह देते हैं कि डेंटल क्लीयरेंस जरूर लें, यानी यदि दांतों में किसी प्रकार की बीमारी हो तो सबसे पहले उसके ट्रीटमेंट के बाद ही दिल संबंधी किसी बीमारी का ऑपरेशन होता है। वहीं कैंसर की बीमारी से पीड़ित मरीजों को रेडिएशन से पहले, किसी भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट के पहले भी डेंटल क्लीयरेंस जरूरी होता है ताकि मुंह का बैक्टीरिया या इंफेक्शन शरीर के अन्य भागों को प्रभावित ना करें।
60 साल के बाद दांतों का ब्राउन होना सामान्य
डॉक्टर बताते हैं कि 60 साल की उम्र के बाद दांत का रंग बदलता है, यह सामान्य से ब्राउन (भूरा) हो जाता है। इस उम्र तक इनैमल काफी घिस जाता है। वहीं डेंटीन (dentine) हल्का यल्लोइश हो जाता है। इस कारण दांत का रंग ब्राउनिश हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दांतों को घिसाई के कारण इनैमल पर भी असर पड़ता है, ऐसे में लोगों को कनकनाहट होती है जो इस उम्र के लोगों में सामान्य है। इस उम्र के लोगों को भी दांतों की साफ-सफाई ओरल हाइजीन (oral hygine) मेनटेन रखना चाहिए। वहीं कई लोगों के दांत टूट चुके होते हैं उन लोगों को टूथ पेस्ट से मसूड़ों को व जीभ को साफ रखना चाहिए ताकि उनके दांत का रंग पूरी तरह खराब न हो।
दांतों की देखभाल के लिए टिप्स