डेली अस्पताल तक ड्राइव करना मेरे पति के लिए मुश्किल हो रहा था, चूंकि मैं डिलीवरी से उबर रही थी, इसिलए ड्राइविंग का दवाब नहीं ले सकती थी। मेरे पति रात को ठीक से सो नहीं पाते थे, क्योंकि वह बच्चों और मेरी देखभाल में लगे होते थे। ऐसे में हमारे दोस्त एक-एक करके रोज़ाना हमें अस्पताल तक छोड़ते थे। गाड़ी की पिछली सीट पर बैठकर हम कुछ देर आराम कर लेते थे और दोस्तों से बाद करके थोड़ा बेहतर महसूस होता था।
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NICU में शिशु टिप्स 3. केयर पैकेज भेजना
अस्पताल में रात-दिन गुज़ारना बहुत थका देने वाला था। इस दौरान हमारे दोस्तों ने हमारे लिए केयर पैकेज भेजे जिसमें ज़रूरत का सब सामान था। इसमें स्नैक्स, पानी की बोतल, फेस वाइप्स, कंबल, किताबें, मैगज़ीन, तकिया, फोन के लिए ट्रैवल चार्जर और आई मास्क था। कुछ दोस्तों ने कुछ जर्नल, पेन और कलरिंग बुक भी लाकर दिए ताकि उस तनावपूर्ण माहौल में हम थोड़ा रिलैक्स हो सके। मैं और मेरे पति जर्नल में अपने बच्चों को लेकर लिखते थे और उनकी डेली प्रोग्रेस भी ताकि हम देख सके कि हम दोनों कितने बहादुर हैं और हमारे बच्चे कितने मज़बूत हैं।
NICU में शिशु टिप्स 4. एक पूरे गांव होने का एहसास
जब मैं और मेरे पति अस्पताल में थे तो हम बाहरी दुनिया के बारे में पूरी तरह भूल चुके थे। हमारे दोस्तों ने पति के ऑफिस का काम भी मैनेज कर लिया। ऑफिस के कलीग ने कभी भी पति को किसी काम की चिंता नहीं होने दी, अपनी क्षमता से बढ़कर सबने हमारी मदद की। मेरे पति के माता-पिता मेरे माता-पिता से ज़्यादा उम्र के हैं और उन्हें भी देखभाल की ज़रूरत पड़ती है, हमारे दोस्तों ने उनकी भी मदद की। निश्चित रूप से बच्चे और परिवार को संभालने में दोस्तों की वजह से पूरे एक गांव की तरह मदद मिली। हम दोनों सिर्फ बच्चे की देखभाल करते रहे, बाकी सब दोस्तों ने संभाला।
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NICU में शिशु टिप्स 5. घर पर मदद की
हमारा घर पूरा बिखरा हुआ था। हमने 2 महीने से घर की तरफ देखा तक नहीं था और जब तक मेरे बच्चे वापस नहीं आ जाते तब तक मेरा साफ सफाई का मन नहीं था। मेरे दोस्तों ने घर की सफाई, लॉन्ड्री और किचन की सफाई में मदद की। बच्चों के जल्दी जन्म की वजह से हमारी नर्सरी भी अधूरी रह गई थी, जिसे परिवार वाले और दोस्तों ने मिलकर पूरा किया और उसे बच्चों के स्वागत के लिए तैयार किया।
NICU में शिशु टिप्स 6. बच्चों के आने का जश्न
बच्चे के जन्म के समय से ही हम अस्पताल में थे, इसलिए कोई हमारे लिए गिफ्ट लेकर नहीं आया। मगर हमारे नज़दीकी दोस्त और परिवार वालों ने सोचा कि हमें इस खुशी का जशन मनाना चाहिए। बच्चों के आने की खुशी को सेलिब्रेट करने के लिए उन्होंने बच्चों के लिए सॉफ्ट टॉयज़, किताबें और कुछ कपड़े लेकर आए थे।
NICU में शिशु टिप्स 7. भावनात्मक सहयोग
NICU के पूरे दौर में हमारे कुछ खास दोस्त रोज़ाना हमसे मिलने आते थे। इस पूरे अनुभव ने हमें बहुत अकेला और उदास कर दिया था, यह जानने के बाद भी हमारे बच्चे मज़बूत हैं और हालात से लड़कर ठीक हो जाएंगे, हम चिंतिंत हो जाते थे। हमारा मूड ठीक रखने के लिए हमारे दोस्त जोक्स और कुछ अच्छे अनुभव शेयर करते थे।
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NICU में शिशु टिप्स 8. हमेशा साथ रहे
मैंने कई नए पैरेंट्स को अस्पताल में बिल्कुल अकेला देखा जिनका बच्चा NICU में था। कुछ के दोस्त और रिश्तेदार आते, मगर थोड़ी देर बाद चले जाते थे और वो पैरेंट्स अपनी लड़ाई अकेले ही लड़ते थे। मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ, मेरे दोस्त और परिवार शुरू से अंत तक मेरे साथ रहे। उन्होंने कभी अस्पताल आना बंद नहीं किया और न ही सहयोग करना छोड़ा। घर वापस आने के बाद भी वह लगातार हमारे संपर्क में रहे और रोज़मर्रा के काम में मदद की
NICU में शिशु टिप्स 9. बिल भरने में मदद
NICU सुविधा का बिल हमेशा ही बहुत ज्यादा होता है और जब जुड़वा बच्चों की बात हो तो यह और बढ़ जाता है। हमारे परिवार और दोस्तों ने हॉस्पिटल के बिल से लेकर, फोन और अन्य मेडिकल बिल भरने में मदद की।
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NICU में शिशु टिप्स 10. कभी मजबूर नहीं किया
कई दोस्त और परिवार के सदस्य हमें सपोर्ट करने और मदद के लिए अस्पताल आते थे। वह घंटों हमारे साथ बैठकर चाय/कॉफी पीते थे, मगर कभी उन्होंने बच्चों से मिलने की इच्छा जाहिर नहीं की, हालांकि बच्चों को लेकर वह बहुत उत्साहित थे, लेकिन उन्हें पता था कि प्रीमेच्योर बच्चों को आराम की ज़रूरत है और उन्हें NICU में डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए। कई बार दोस्तों के आने पर मैं भी उनसे नहीं मिल पाती थी, क्योंकि मुझे बच्चों को दूध पिलाना होता था, मगर वो लोग कभी शिकायत नहीं करते थे।
इस तरह मेरे दोस्त और परिवार ने हमारे सबसे मुश्किल दौर में जब NICU में शिशु था तो मेरी और मेरे पति की मदद की। मुझे यकीन है कि शायद आपके भी परिवार और दोस्त को मुश्किल समय में आपकी मदद की ज़रूर होगी, तो जाइए और उनकी मदद करिए ठीक उसी तरह जिस तरह मेरे परिवार और दोस्तों ने मेरी की।
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