ऑटिज्म की समस्या से निपटने के लिए दवाईयों और थेरेपी साथ दी जाती हैं। हालांकि, ये साफ है कि दवाईयां ऑटिज्म के लक्षण कम नहीं कर सकतीं बल्कि उन लक्षणों से उत्पन्न होने वाले खतरों को रोक सकती हैं। इस स्थिति के लिए मेडिकल साइंस ने पांच तरह के प्रभावी ड्रग चिन्हित किए हैं। ऑटिज्म की दवा देने से भी पेशेंट में पॉजिटिव इफेक्ट दिखता है। ऑटिज्म की समस्या को सही करने या फिर लक्षणों को कम करने के लिए डॉक्टर कुछ थेरिपी भी देते हैं, जो प्रभावी असर दिखाती है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको उन दवाओं के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं , जो ऑटिज्म के पेशेंट्स के लिए यूज की जाती हैं। पढ़िए आर्टिकल और जानिए ऑटिज्म से जुड़ी दवाओं के बारें में।
ऑटिज्म की दवा: सेरोटॉनिन रियुपटेक इन्हिबिटर्स (serotonin reuptake inhibitors (SSRIs))
सेरोटॉनिन रियुपटेक इन्हिबिटर्स ड्रग्स का इस्तेमाल बच्चों में ऑटिज्म की समस्या से उतपन्न हुए डिप्रेशन की समस्या, चिड़चिड़ापन, जिद्दी या आक्रामक व्यवहार को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सेराट्रालिन (seratraline), सिटालोप्राम (citalopram) और फ्लूऑक्सेटाइन (fluoxetine) दवाईयां इस ड्रग्स की श्रेणी में आती हैं।
हालांकि, इस तरह के ड्रग्स के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं। जैसे नींद न आने की गंभीर समस्या (insomnia), बेवजह वजन बढ़ना, किसी चीज के खिलाफ बेवजह जुनूनी हो जाना आदि। वहीं अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) को ऐसी एंटी डिप्रसेंट दवाईयां और सुसाइड के बीच संबंध को लेकर बेहद चिंता है। एफडीए ये बिल्कुल नहीं कहता कि बच्चों को इस तरह की एंट्री डिप्रेसेंट दवाईयां न दी जाएं हालांकि, जिन्हें ये दी जाएं उन्हें खास निगरानी में रखा जाना चाहिए। ऐसे बच्चों में आत्महत्या की इच्छा जाग सकती है, जिसके संकेतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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ऑटिज्म की दवा: ट्रायसाइक्लिक्स (Tricyclis)
इस तरह के एंटी डिप्रेसेंट बच्चों में अवासद और जुनूनी व्यवहार को कम करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। ट्रायसाइक्लिक्स के सेरोटॉनिन से ज्यादा साइड इफेक्ट हैं लेकिन यह उससे ज्यादा प्रभावी भी है। ट्रायसाइक्लिक्स की वजह से कब्ज, मुंह सूखना, धुंधला दिखाई देना और चक्कर आने जैसे साइड इफेक्ट नजर आने लगते हैं। protriptyline (Vivactil), nortriptyline (Pamelor), amitriptyline, amoxapine, imipramine (Tofranil), desipramine (Norpramin), doxepin, trimipramine (Surmontil) आदि दवाईयां ट्रायसाइक्लिक्स ड्रग्स की श्रेणी में आती हैं।
ऑटिज्म की दवा: एंटीसाइकाॅटिक दवाईयां (Antipsychotic medicines)
ऑटिज्म प्रभावित बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानियों से निपटने के लिए एंटीसाइकॉटिक दवाईयां दी जाती हैं। ऑटिज्म की दवाईयां दिमागी केमिकल्स में बदलाव कर राहत प्रदान करती हैं। इस तरह की दवाईयां बच्चे के आक्रामक और चुनौतीपूर्ण या खतरनाक रवैये को ठीक करने के लिए दी जाती हैं (उदाहरण के तौर पर आपका बच्चा खुदा को चोट पहुंचाने या जान से मारने की कोशिश करने लगे) इस श्रेणी में haloperidol, risperidone, and thioridazine, clonidine (Kapvay), guanfacine (Intuniv); lithium (Lithobid), anticonvulsants, carbamazepine और valproic acid शामिल हैं।
हर दवाई की तरह इन दवाईयों के भी साइड इफेक्ट हैं। जैसे दौरे पड़ना, बेवजह वजन बढ़ना, हमेशा सोते रहना आदि। इस तरह की दवाईयों की आवश्यक्ता तब पड़ती है जब डॉक्टर द्वारा दी जाने वाली व्यवहार संबंधी थेरेपी काम नहीं करती। इस तरह की दवाईयों के लिए भी अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने चिंता जाहिर की है। एफडीए का मानना है कि सुसाइड के बारे में सोचना और ऐसी दवाईयों के बीच संबंध है। ऐसे में जिन बच्चों के ये दवाई दी जाएं उनकी खास निगरानी जरूरी है।
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ऑटिज्म की दवा: सोने के लिए दवाईयां
ऑटिज्म ग्रस्त बच्चे में सोने की समस्या आम लोगों से कई गुना ज्यादा होती है। ऐसे बच्चे कई दिनों नहीं सो पाते या बार-बार रात को उठ जाते हैं। वे हमेशा थके और परेशान नजर आते हैं। ऐसे में उन्हें मेलाटॉनिन नामक दवाई दी जाती है, जो उन्हें सोने में मदद करती है।
ऑटिज्म की दवा:एडीएचडी Attention deficit hyperactive disorder (ADHD)
इस तरह की दवाईयां भी बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानी आने पर दी जाती हैं। कई बार बच्चे किसी भी चीज की ओर ध्यान नहीं देते या बेवजह किसी चीज को लेकर विचलित हो जाते हैं। ऐसे में methylphenidate नामक दवाई दी जाती हैं।
नोट- ऑटिज्म की समस्या को कम करने के लिए दी जाने वाली उपरोक्त सभी दवाईयां व्यवहार संबंधी परेशानियों को कम कर सकती हैं, लेकिन इससे ऑटिज्म के लक्षण ठीक नहीं होते। ऑटिज्म की दवा के अपने साइड इफेक्ट और खतरे हैं ऐसे में हर एक चीज डॉक्टर को जरूर बताएं।ऑटिज्म की दवा के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से पूछें।
ऑटिज्म की समस्या क्या है? (Autism)
ऑटिज्म की समस्या एक प्रकार का मनोविज्ञानिक विकार है जिससे हमे जीवन के अलग-अलग पहलुओ पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसे विकासात्मक इसलिए कहा गया है क्योकिं यह जन्म से ही बच्चे को होती है और जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है वैसे-वैसे इसके लक्षण उभर कर सामने आना शुरू हो जाते हैं।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को बातचीत करने में परेशानी होती है। उन्हें यह समझने में परेशानी होती है कि दूसरे लोग क्या सोचते और महसूस करते हैं। इससे उनके लिए खुद को शब्दों के जरिये, चेहरे के भाव और स्पर्श के माध्यम से व्यक्त करने मे बहुत कठिनाई हो जाती है। आपको जानकार हैरानी होगी कि ऑटिज्म लड़कियों की तुलना में लड़कों में चार गुना ज्यादा देखा जाता है।
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ऑटिज्म के लक्षण क्या हैं? (Autism Symptoms)
ऑटिज्म के लक्षण आमतौर पर जीवन के पहले तीन वर्षों के दौरान दिखाई देते हैं। कुछ बच्चो मे जन्म से ही लक्षण दिखाई देते हैं तो कुछ बच्चो मे मे 18 से 36 महीने मे लक्षण दिखाई देना शुरू होते हैं। ऑटिज्म की समस्या से ग्रसित लोग अपने विचार साझा करने और अपनी बात समझा पाने में बहुत परेशानी होती है। इन तरह के लोगों में दिखाई देने वाले लक्षण-
- जब कोई बुलाये तो कोई प्रतिकिया न देना या फिर बहुत देर बाद कुछ प्रतिकिया देना,
- बातचीत जारी रखने में परेशानी होना,
- बोलना कुछ और चेहरे के हाव-भाव से कुछ और लगना,
- चिडचिड़ापन या जल्दी गुस्सा दिखाना,
- बोलते समय आवाज निकालना जैसे गाने की आवाज या फिर बहुत जल्दी वाक्यों को खत्म कर देना,
- बहुत ही कम और एक ही व्यवहार को बार बार करना,
- एक ही प्रकार के व्यवहार को दोहराना जैसे एक ही शब्द या वाक्यों को बार बार दोहराना,
- कुछ चीजों में बहुत ज्यादा रूचि रखना जैसे नंबर या फैक्ट्स,
- चीजों को एक जगह से दूसरी जगह खिसकाते रहना।
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ऑटिज्म (Autism) की समस्या से राहत के लिए अपनाई जाती हैं थेरिपी
ऑटिज्म की समस्या से राहत पाने के लिए बिहेवियरल मैनेजमेंट पर जोर दिया जाता है। यानी पेशेंट का कुछ थेरेपी की सहायता से करने की कोशिश की जाती है। चुंकि ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति या बच्चे का व्यवहार अन्य लोगों की तरह नहीं होता है, इसलिए कुछ थेरिपी की मदद से उनके व्यवहार को सुधारने का प्रयास किया जाता है। थेरिपी विभिन्न प्रकार की होती हैं और इसे बचपन से ही शुरू कर दिया जाता है। जानिए थेरिपी के दौरान क्या खास होता है।
- सबसे पहले बच्चे को थेरेपी देने के लिए अर्ली बियेवियरल इंटरवेंशन शुरू किया जाता है ताकि बच्चे को पता चले कि अपने आसपास के लोगों से कैसे बात करनी है या फिर किसी बात का कैसा रिएक्शन देना है।
- ऑटिज्म पेशेंट के लिए सकारात्मक व्यवहार करना भी बहुत जरूरी है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे जल्द चिड़चिड़ा जाते हैं या फिर गुस्सा करने लगते हैं। ऐसे में प्रयास किया जाता है कि उसे पॉजिटिव बिहेवियर के बारे में जानकारी दी जाए। ट्रेनिंग के दौरान बच्चों के साथ ही अन्य पेशेंट को बात करने या फिर सही व्यवहार संबंधि बातों के बारे में जानकारी दी जाती है।
- ऑटिज्म से पीड़ित कुछ रोगी फिजिकली फिट नहीं होते हैं, ऐसे में उन्हें थेरिपी का सहारा लेना पड़ सकता है।
- समय के साथ ही ऑटिज्म के इलाज में भी परिवर्तन आया है। एक ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति या बच्चे को क्या दवा देनी है या फिर किस थेरेपी की जरूरत है, इस बारे में डॉक्टर ही बेहतर बता सकता है। बेहतर होगा कि इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क करें।
इन सभी मुख्य लक्षणों के अलावा कुछ मामलों में अलग अलग परेशानियां हो सकती हैं। जैसे नींद की समस्या, चिडचिड़ापन, किसी चीज को बार बार छूते रहना, खुद को नुकसान पहुंचाते रहना आदि।अगर आपको किसी समस्या को लेकर कोई सवाल हैं, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना न भूलें। आशा है कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा और आपको ऑटिज्म की दवा से संबंधि जानकारी मिली होगी। आप हमारी वेबसाइट ऑटिज्म से संबंधि अन्य आर्टिकल भी पढ़ सकते हैं। आप हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर स्वास्थ्य संबंधि अन्य खबरों से भी अपडेट रह सकते हैं।
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