यदि शिशु को सावधानी के साथ व सही से फॉर्मूला मिल्क न दिया तो उसे डायरिया हो सकता है। वहीं अलग-अलग ब्रैंड का फॉर्मूला मिल्क का सेवन करने से भी शिशु की प्रतिक्रियाएं अलग हो सकती हैं। फॉर्मूला मिल्क का ब्रैंड बदलने को लेकर भी डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
यदि आपके शिशु का दांत निकल रहा है तो उस स्थिति में भी बच्चे का मल सामान्य से पतला हो सकता है, इस कारण डायरिया नहीं होता। यदि शिशु को डायरिया हो जाए तो इसका दांतों के निकलने से कोई लेना देना नहीं है। यह इंफेक्शन के कारण हो सकता है।
शिशु के बड़े होने पर डायरिया होने के कारण गंभीर कब्जियत के लक्षण दिखते हैं। जहां स्वस्थ्य रहने पर मल आसानी से निकल जाता है, वहीं हार्ड मल रहने पर आसानी से नहीं निकलता। जब भी आपको लगे कि आपका शिशु असहज, अस्वस्थ, मायूस दिख रहा है तो डॉक्टरी सलाह लें। खासतौर पर शुरुआत के छह महीनों में बच्चे के स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यदि आपका शिशु पानी की तरह मल करता है तो, आप मल ले जाकर या उसकी फोटो खींच डॉक्टर को दिखा सकते हैं, क्योंकि शिशु में डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है।
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कब्ज
कई बच्चे जब मल त्याग करते हैं तो मल गाढ़ा लाल होने के साथ सख्त होता है। लेकिन यह सामान्य है। जाने बच्चे का मल का कौन-सा प्रकार कब्जियत की ओर इशारा करता है
- जब आपका शिशु मल त्यागने में मशक्कत करें
- जब आपके शिशु का मल छोटा व ड्राय हो, वहीं जब मल ज्यादा होने के साथ हार्ड हो
- आपका शिशु चिड़चिड़ा महसूस करें, वहीं मल त्यागने के दौरान रोए
- शिशु का पेट छूने पर सख्त लगे
- बच्चे के मल में खून आए, यह एनस के अंदर छोटे क्रैक होने की ओर इशारा करते हैं। इन्हें एनल फिशर (anal fissures) कहा जाता है। ऐसा हार्ड मल त्यागने के कारण होता है
फॉर्मूला दूध पिलाने की तुलना में मां का दूध पिलाने के दौरान शिशु को कब्जियत की समस्या नहीं होती है। ब्रेस्ट मिल्क में काफी मात्रा में न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, इस कारण बच्चे का मल सॉफ्ट रहता है। फॉर्मूला मिल्क में सामान्य से अधिक पाउडर मिलाया जाए तो उसके कारण कब्जियत की समस्या हो सकती है। हमेशा फॉर्मूला मिल्क बनाने के पूर्व दिए दिशा निर्देशों को सही से पालन करना चाहिए।
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इन कारणों से हो सकती है कब्जियत की समस्या
- बुखार
- डिहाइड्रेशन
- शिशु के पीने की मात्रा में बदलाव
- शिशु की डाइट में बदलाव
- दवा का सेवन करने के कारण
शिशु के मल में खून दिखने पर तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। यदि शिशु अनाज खाने लगा है तो उसे खाने में फ्लूइड इनटेक करने की सलाह दी जाती है, वहीं फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने को कहा जाता है।
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बच्चे का हरा मल
यदि आप शिशु को दूध पिला रही हैं, तो कभी कभार यदि हरे रंग का मल आता है तो घबराने की जरूरत नहीं होती है। हरे मल के आने का मतलब यह हुआ कि आपके शिशु को ज्यादा लो कैलोरी मिल्क मिल रही है। शिशु को दोनों स्तनों से दूध पिलाकर इस समस्या को कम कर सकतीं हैं। यह भी घरेलू उपचार में से एक है। यदि आपका शिशु लगातार हरा मल त्याग कर रहा है तो ऐसा जल्दी-जल्दी दूध पीने के कारण कर सकता है। जब खाली पेट में दूध जाता है तो उस कारण पेट में एयर बबल्स बनते हैं, इसके कारण अपच की समस्या होती है।
इसके लिए शिशु को शांत कराकर व हल्का लिटाकर दूध पिलाएं। इससे शिशु सजह महसूस करेगा व धीरे-धीरे दूध पीने से उसे पोषक तत्व मिलेगा।
यदि आप शिशु को फॉर्मूला मिल्क पिला रही हैं तो उस स्थिति में आपके ब्रैंड के कारण शिशु का मल का रंग हरा हो सकता है। ऐसे में डॉक्टर से सुझाव लेकर दूसरे ब्रैंड का दूध शिशु को पिलाएं।
यदि 24 घंटे या उससे अधिक समय तक शिशु का मल हरा ही आ रहा है तो उस स्थिति में आप डॉक्टरी सलाह लें, ऐसा इन कारणों से हो सकता है,
- फूड सेंसिटिविटी के कारण
- दवा के साइड इफेक्ट के कारण
- शिशु के फिडिंग रूटीन में बदलाव के कारण
- स्टमक बग की वजह से
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बच्चे का पीला मल
बच्चे का पीला मल जॉन्डिस की ओर संकेत करते हैं। जॉन्डिस की पहचान शिशु के स्किन को देखकर और उनकी आंखों के रंग को देखकर जो सफेद से पीली पड़ जाती है, पहचान कर सकते हैं। आप अपने दिमाग में रखें कि नवजात को जॉन्डिस होने से उनका पेशाब पीला नहीं होता, वहीं मल येल्लो, मस्टर्ड व ब्राउन हो सकता है। पीला मल सामान्य नहीं है, जरूरी है कि जल्द से जल्द डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। शिशु के मल को देख आप समझ नहीं पा रहे हैं तो मल का फोटो लेकर डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर को बताएं कि आपके बच्चे का मल पीला आ रहा है, इसमें सफेद थक्के भी हैं। जॉन्डिस यदि दो सप्ताह से अधिक समय के लिए रह जाता है तो उसके कारण लिवर की समस्या भी हो सकती है। इसलिए इसे कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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बच्चे के मल में खून आए
यदि आपका शिशु कब्जियत की बीमारी से ग्रसित है तो उसके मल में खून आ सकता है। ऐसा एनल फिशर के कारण हो सकता है, जो शरीर में खराब बावेल मुवमेंट के कारण होता है। कई बार इंटेस्टाइन में इंफेक्शन और एलर्जी के कारण भी ऐसा हो सकता है। शरीर में इस प्रकार के लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। कई बार शिशु का मल काला दिख सकता है। यानि कि यह पच गया है। कई बार ऐसा दूध पीने के दौरान मां के स्तन को क्रैक करने से उसके अंदर का खून भी शिशु पी जा जाता है। इस कारण उसका मल काला आता है। वहीं काला मल शिशु के इंटेस्टाइनल ट्रैक में समस्या होने के कारण हो सकता है।
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सही जानकारी है जरूरी, ताकि समय पर ले सकें डॉक्टरी सलाह
बच्चे का मल का रंग देखकर कई बार लोग खुद तरह-तरह की सलाह देने लगते हैं लेकिन यह गलत है। जरूरी है कि शिशु के मल को देख जब आप असजह महसूस करें तो डॉक्टरी सलाह लें। इतना ही नहीं यदि आपके शिशु को मल त्यागने में दिक्कत हो रही है तो डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टरों से दिखाने में देरी करने के कारण समस्या और गंभीर हो सकती है। शिशु को कब तक मां का दूध पिलाना है, कब फॉर्मूला मिल्क देना है, कब से अनाज देना है, आदि मामलों पर डॉक्टर से परामर्श ले सकते हैं। खुद से यह निर्णय लेना आपके शिशु की सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। बता दें कि शिशु के जन्म के बाद से एक साल तक हर दिन शिशु के मल का रंग बदलता है, तो ऐसे में घबराना नहीं है, बल्कि सही जानकारी रखनी चाहिए। ताकि जरूरत पड़ने पर डॉक्टरी सलाह ले लें।