मूल बातों को जानें
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स (Childhood epilepsy syndromes) क्या है?
बच्चों में मिर्गी के दौरो के हल्के लक्षण महसूस किए जा सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें दुनिया की कुल आबादी के करीब 3 प्रतिशत लोग एपिलेप्सी (epilepsy) की बीमारी से ग्रसित हैं। वहीं करीब 1 लाख बच्चों में से 50 बच्चों को एपिलेप्सी की समस्या से गुजरना पड़ता है। कुल एपिलेप्सी केस में से 25 % केस बच्चों से संबंधित हैं। बच्चों में होने वाली एपिलेप्सी की बीमारी को चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स (Childhood epilepsy syndromes) के बारे में कम ही लोगों को जानकारी होती है।
एपिलेप्सी (epilepsy)या मिर्गी की बीमारी को अक्सर अधिक उम्र के लोगों से जोड़ कर देखा जाता है। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि मिर्गी की बीमारी बच्चों में भी हो सकती है। एपिलेप्सी (epilepsy) एक प्रकार का क्रॉनिक डिसऑर्डर है। मिर्गी की समस्या जिन लोगों को होती है, उन्हें समय-समय पर दौरे पड़ते हैं। बच्चों में होने वाली एपिलेप्सी की बीमारी को चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स (Childhood epilepsy syndromes) के नाम से जाना जाता है।आपको ये जानकारी जरूर होनी चाहिए कि मिर्गी की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। बच्चों और बूढ़ों में एपिलेप्सी की समस्या अधिक पाई जाती है। लो ब्लड शुगर की कंडीशन (hypoglycaemia), हार्ट के काम करने के तरीके में बदलाव के कारण भी दौरे पड़ सकते हैं। वहीं कुछ बच्चों में हाई टेम्परेचर के दौरान फेब्राइल कंवल्शन (febrile convulsions) या जर्किंग मूवमेंट्स (jerking movements) होते हैं।
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लक्षण
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स के लक्षण क्या हैं? (Childhood epilepsy syndromes symptoms)
बच्चों में मिर्गी के लक्षण कम या अधिक दिखाई पड़ सकते हैं। ब्रेन का कौन-सा पार्ट इंजर्ड है, उसी के अनुसार बच्चों में लक्षण दिखते हैं। कई बार माता-पिता के लिए एपिलेप्सी के लक्षणों को पहचानना मुश्किल हो जाता है।
- शरीर में ऐंठन का एहसास होना
- मसल्स में एक तरह के झटके का एहसास
- सांस लेने में दिक्कत महसूस होना
- बोलने में दिक्कत होना
- मसल्स का कमजोर होना
- ध्यान की कमी
- समझने की शक्ति खोना
- किसी भी वस्तु को लगातार देखना
- शरीर के रंग में बदलाव होना
- रिस्पॉन्स न कर पाना
उपरोक्त दिए गए लक्षणों के अलावा भी बच्चों में मिर्गी होने पर अन्य लक्षण भी दिख सकते हैं। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए तो बेहतर होगा कि आप इस बारे में डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
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मुझे अपने डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?
अगर आपको बच्चें में उपरोक्त दिए गए लक्षणों में किसी का भी एहसास हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। ऐसा जरूरी नहीं है कि जांच के दौरान मिर्गी की समस्या ही सामने आए, लेकिन जांच कराने से बीमारी का पता लगाने में आसानी होगी।
जानिए चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स के कारण
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स के कारण क्या हैं? (Childhood epilepsy syndromes Causes)
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स के कई कारण हो सकते हैं। बच्चों को एपिलेप्सी की बीमारी ब्रेन में इंजरी या फिर किसी मेडिकल कंडीशन की वजह से हो सकती है। कई बार बच्चों में ऐपिलेप्सी का कारण भी पता नहीं चल पाता है। चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स या बच्चों में मिर्गी की समस्या के कई कारण हो सकते हैं। चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स जेनेटिक यानी अनुवांशिक कारणों से भी हो सकता है। जानिए, चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स के मुख्य कारण क्या हैं।
मिर्गी के मुख्य कारणों में शामिल है,
- ब्रेन इंजरी (Traumatic brain injury)
- जन्म दोष यानी बर्थ डिफेक्ट (Birth defects) के कारण
- जन्म के समय मेटाबॉलिक डिसऑर्डर (Metabolic disorders present at birth )
- ब्रेन ट्यूमर के कारण
- ब्रेन में एब्नॉर्मल ब्लड वेसल्स
- स्ट्रोक
- इंफेक्शन के कारण
- मस्तिष्क के आकार में बदलाव के कारण
- किसी कारण से ब्रेन टिशू का डिस्ट्रॉय होना
बच्चों में एपिलेप्सी की समस्या 5 साल से 20 साल के दौरान कभी भी शुरू हो सकती है। वैसे तो इस बीमारी के होने के चांसेज किसी भी उम्र में होते हैं, लेकिनजिन लोगों के परिवार में इस बीमारी का इतिहास होता है, उनमें अधिक संभावना बढ़ जाती है।
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चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स के प्रकार
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स कितने प्रकार के होते हैं? (Childhood epilepsy syndromes Types)
बिनाइंग्न रोलेंडिक एपिलेप्सी (Benign Rolandic epilepsy)
बिनाइंग्न रोलेंडिक एपिलेप्सी (Benign Rolandic epilepsy ) सिंड्रोम्स से करीब 15% बच्चे प्रभावित होते हैं। ये तीन साल से 10 साल की उम्र में बच्चों को प्रभावित कर सकती है। इस सिंड्रोम्स के कारण बच्चे के चेहरे या जीभ का हिस्सा मुड़ जाता है, साथ ही बोलने के दौरान दिक्कत भी महसूस होती है।
चाइल्डहुड एब्सेंस एपीलेप्सी (Childhood absence epilepsy)
चाइल्डहुड एब्सेंस एपीलेप्सी (Childhood absence epilepsy) चार साल से 10 साल की उम्र में बच्चों को हो सकता है। करीब 12 प्रतिशत बच्चे इससे ग्रसित होते हैं। चाइल्डहुड एब्सेंस एपीलेप्सी सिंड्रोम्स के कारण बच्चों को कुछ सेंकेंड के लिए दौरा पड़ता है जो आमतौर पर नोटिस नहीं हो पाता है। इस सिंड्रोम के कारण होंठ ऊपर-नीचे के तरफ हिलते हैं। साथ ही बच्चा चबाने के लिए मुंह चला सकता है।
जुवेनाइल मायोक्लोनिक मिर्गी (Juvenile myoclonic epilepsy)
बच्चों में येजुवेनाइल मायोक्लोनिक मिर्गी 12 साल से 18 साल की उम्र में दिखाई पड़ता है। ऐसे में बच्चों में तीन तरह के दौरे जैसे कि टॉनिक क्लोनिक दौरे, अबसेंस दौरे और मायोक्लोनिक दौरे दिखाई पड़ सकते हैं। इसके कारण नींद में कमी आना मुख्य लक्षण होता है। साथ ही हल्के दौरे का एहसास भी हो सकता है।
बच्चों में ऐंठन का एहसास (Infantile spasms)
जिन बच्चों को जन्मजात ब्रेन इंजरी की समस्या होती है, उन्हें इंफेंटाइल स्पेजम्स (Infantile spasms) सिंड्रोम्स की समस्या हो सकती है। ऐसे में या तो बच्चे को पूरे शरीर में या फिर हाथ और पैर में ऐंठन का एहसास हो सकता है।
लेनोक्स-गैस्टोट सिंड्रोम्स (Lennox-Gastaut syndrome )
इस सिंड्रोम्स के कारण बच्चे में विभिन्न प्रकार के दौरे देखने को मिलते हैं। तीन से पांच साल तक के बच्चों में ये सिंड्रोम्स पाया जाता है।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
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निदान और उपचार
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स का निदान कैसे किया जाता है? (Childhood epilepsy syndromes Diagnosis)
बच्चे में मिर्गी के इलाज के लिए डॉक्टर कई विकल्पों का सहारा ले सकते हैं। डॉक्टर मिर्गी की समस्या से निपटने वाली दवाओं को लेने की सलाह दे सकते हैं। साथ ही डायट में बदलाव, ब्रेन इंजरी को ठीक करने के लिए सर्जरी, नर्व इस्टीमुलेशन थेरिपी आदि का सहारा भी ले सकते हैं। बच्चे की शारीरिक स्थिति के अनुसार ही डॉक्टर ट्रीटमेंट करते हैं। आप इस बारे में डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकती हैं।
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम्स (Childhood epilepsy syndromes) से बचाव के लिए बच्चों की लाइफस्टाइल में चेंज के साथ ही अन्य बातों का ध्यान भी रखना पड़ेगा। बच्चों को पूरी नींद लेने के लिए कहें। सिर में चोट न लगे, इसके लिए बहुत सावधानी की जरूरत है।डॉक्टर जो भी दवा कहे, उसे समय पर बच्चे को खिलाएं। बच्चों को ऐसे किसी काम के लिए न कहें, जो वो न करना चाहता हो। आप डॉक्टर से जानकारी लेने के बाद बच्चे की डायट प्लान करें।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। आप डॉक्टर से जानकारी प्राप्त करने के बाद ही कोई कदम उठाएं। बिना जानकारी के बच्चों को मिर्गी का ट्रीटमेंट न दें। ये आपके बच्चे के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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