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बच्चे के विकास के लिए जरूरी है अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Shruthi Shridhar


Nikhil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/06/2021

    बच्चे के विकास के लिए जरूरी है अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन

    बच्चे के लिए अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early Childhood Education) सोशल डेवलपमेंट (Social Development) के लिए बहुत ही खास समय होता है। एक रिसर्च के मुताबिक, विकासशील देशों में पांच साल से कम उम्र के बच्चे उतना सब नहीं सीख पाते हैं, जो उन्हें सीखना चाहिए। अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन का मतलब है बच्चे को प्री-स्कूल के पहले विकास संबंधी शिक्षा देना। वहीं, भारत सरकार द्वारा इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस (ICDS) है, जिसका उद्देश्य स्कूल शुरू होने से पहले वाली शिक्षा देना है। इसे आम भाषा में आंगनबाड़ी केंद्र भी कहा जाता है। 

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) क्या है?

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन में बच्चे व्यवहारिक चीजों का अनुभव करना और सीखना शुरू करते हैं। इस तकनीक को “स्कैफोल्डिंग” कहा जाता है। इसमें बच्चे एक्शन से या उनके साथ हो रहे व्यवहार से सीखते हैं। जैसे बच्चे थाली देख कर जान पाते हैं कि गोल आकार कैसा होता है। आम का फल देख कर सीख पाते हैं कि वह आम है। इसी शिक्षा पद्धति को अर्ली चाइल्ड एज्युकेशन (Early childhood education) कहते हैं।

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    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) क्यों है जरूरी?

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन - Early Childhood Education

    शिशु के विकास में उसकी परवरिश और गतिविधियों से बहुत असर पड़ता है। बच्चे खेल-खेल में ही सबसे अधिक सीखते हैं और उनके लिए खेलना सबसे सही एक्टिविटी है। जब बच्चे किसी खेल में व्यस्त होते हैं, तब वे उसमें रचनात्मकता के साथ कई चीजें सीखते हैं। इसीलिए प्री-स्कूल या अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन की शुरुआत हुई थी। 

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) के बच्चों पर प्रभाव

    अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडिएट्रिक्स के अनुसार, प्रीस्कूल या अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) के बच्चों के लिए कई सारे फायदे हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडिएट्रिक्स के स्पोक्सपर्सन पी. गैली विलियम्स जो कि खुद भी एक बच्चों की डॉक्टर हैं कहती हैं कि प्री स्कूल (Preschool) में बच्चा दूसरे बच्चों के साथ मिलना-जुलना सीखता है। इसके अलावा बच्चा शेयरिंग भी सीखता है। विलियम्स के मुताबिक यह सबसे ज्यादा जरूरी है। वे कहती हैं प्रीस्कूल के फायदें बच्चों की कम उम्र में ही नहीं बल्कि लंबे समय के लिए दिखते हैं। प्रीस्कूल के प्रभाव बच्चे के स्कूल के साथ-साथ कॉलेज एजुकेशन में भी दिखते हैं। वे कहती हैं कि हम जानते हैं कि बच्चे खेल के माध्यम से अपने शुरुआती सालों में चीजें सीखते हैं, खेलों का हिस्सा होते हुए यहां बच्चे शब्दावली सीखते हैं और अन्य बच्चों से भी बहुत कुछ सीखते हैं। अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) के जरिए बच्चे खुद पर काबू पाने से लेकर चीजों के बेसिक सीखते हैं। इसके अलावा बच्चे किताबों से पहली बार यहीं मुलाकात करते हैं। यहां सीखी हुई चीजों का बच्चे अपनी पूरे एकेडमिक करियर में इस्तेमाल करते हैं।

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    कई शोधों में सामने आया है कि गरीबी में पल रहे बच्चों के लिए अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन या प्री स्कूल काफी कारगर साबित हो सकते है। ऐसा माना जाता है कि प्री स्कूल न जाने पर ये बच्चे स्कूल में कई तरह की चुनौतियां का सामना करते हैं। गरीबी या किसी भेदभाव के कारण बच्चों को एजुकेशनल करियर पर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में प्रीस्कूल में जाने से बच्चे के व्यवहार (Child’s behaviour) में फर्क में पड़ता है और साथ ही वे इन भेदभाव पर ध्यान न देकर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए तैयार होता है। एमी नैश किल्ले बच्चों के स्वभाव पर रिसर्च कर रही हैं वे कहती हैं कि अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन बच्चों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। खासकर के उन बच्चों के लिए जिनके साथ आर्थिक समस्या है। ऐसे बच्चों को स्कूल जाने से पहले यहां तैयारी का मौका मिल जाता है।

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    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन के फायदे (Early childhood education) 

    बच्चे का मानसिक विकास (Child’s mental development)

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन में जिस तरह का करिक्युलम फॉलो किया जाता है, यह बच्चों को खेल में सीखाने के लिए होता है। प्री-स्कूल के पाठ्यक्रम में नाटक, भाषा, विज्ञान, गणित, सामाजिक शिक्षा, संगीत (Music) कला आदि शामिल होते हैं। जिससे बच्चे का मानसिक विकास होता है। 

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    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) बच्चों को जिम्मेदार बनाने में अहम

    प्री-स्कूल में टीचर्स बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए जरूरी हैं। टीचर्स बच्चों के व्यवहार को लेकर एक नई स्ट्रेटजी तैयार करते हैं। उसी के अनुसार बच्चे के व्यवहार को ढालते हैं। साथ ही उन्हें बड़ों का आदर सम्मान करना सिखाते हैं।

    बच्चों में बढ़ता है कॉन्फिडेंस

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन बच्चों में कॉन्फिडेंस बढ़ाने में मददगार साबित होता है। शिक्षक धैर्य के साथ बच्चों को कुछ नया सिखाने की कोशिश करते हैं। शिक्षक बच्चे के उन व्यवहार पर अधिक ध्यान देते हैं जो सही हैं। ऐसा करने से बच्चा अपने से अंदर आत्मविश्वास महसूस करता है।

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    शुरुआती बचपन की शिक्षा : इन जगहों से पा सकते हैं एजुकेशन

    बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के साथ अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन देने के लिए कई संस्थाएं हैं। जहां बच्चों को यह शिक्षा दी जा सकती है। इसके लिए आप चाहें, तो इन विकल्पों को अपना सकते हैं।

    • पब्लिक स्कूल
    • प्राइवेट स्कूल
    • स्पेशल एजुकेशन
    • किंडरगार्डेन सेंटर
    • डेकेयर
    • इन होम नैनी

    इन तमाम जगहों पर जाकर आपका बच्चा कई नई चीजें सीखेगा। क्लासरूम में जाकर वहां के वातावरण को देखेगा, जहां उसे शिक्षण, स्टूडेंट्स इत्यादि मिलेंगे। नए दोस्त बनेंगे तो काफी कुछ नया सीखने को मिलेगा। इस शिक्षा को हासिल कर शिशु कम उम्र में ही काफी कुछ जान सकेगा।

    दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहा अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन (Early childhood education) का चलन

    अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन या प्रीस्कूल का चलन दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है। यहां बच्चों को स्कूल जाने से पहले तैयार किया जाता है। यह बच्चों के लिए स्कूल जाने के लिए ब्रिज का काम करता है, जिससे होकर वे स्कूल आसानी से पहुंचते हैं। प्रीस्कूल का एक अच्छा उदाहरण है अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में स्थित टर्नर प्री स्कूल। इस  प्रीस्कूल के पांच साल की उम्र के बच्चे काफी एक्टिव हैं। इतना ही नहीं बच्चे केवल प्रीस्कूल में ही घर में भी एक्टिव और स्कूल आने के लिए उत्सुक रहते हैं। इसके अलावा ये बच्चे काफी अनुशासित भी है इसकी वजह है प्रीस्कूल में कराई जाने वाली एक्टिविटीज। इन एक्टिविटीज के कारण बच्चों के मानसिक विकास तेजी से हो रहा है और साथ ही उनके स्वभाव में भी बदलाव दिख रहा है। इसके अलावा दुनिया के दुसरी जगहों फ्रांस और डेनमार्क में भी अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन पर हाल के कुछ सालों में फोकस बढ़ा है। वहीं डेनिश चाइल्ड केयर सेंटर्स में देखा जाता है कि किताबों से पढ़ाई कराने की बजाय खेलकूद व अन्य एक्टिविटीज पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा शंघाई में छह साल की उम्र में बच्चों की जब तक पढ़ाई शुरू नहीं होती, प्री-स्कूल में वह पढ़ते नहीं है। लेकिन प्री-स्कूल के बाद वह स्कूल शिक्षा में तेजी से सीखते हैं।

    डिस्क्लेमर

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