हीनल का कहना है, “चिन्मय को समय पर स्कूल जाने के लिए तैयार करना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि टीवी बंद करते ही बच्चों में चिड़चिड़ापन (Irritability in children) समझ आने लगता था।” टीवी से दूर रहने के लिए हीनल ने उसे चेतावनी भी दी, लेकिन सब बेकार साबित हुआ। बेटे का स्क्रीन से ध्यान हटाने के लिए हीनल सब कोशिश कर हार गई हैं। उसने बेटे से बात करना बंद कर दिया। इसका चिन्मय पर बहुत बुरा असर पड़ा और उसका व्यवहार और बिगड़ने लगा। वैसे बच्चों में चिड़चिड़ापन साफ समझ आने लगा। वह मुश्किल से किसी से बात करता, उसकी चंचलता खत्म हो गई और चिड़चिड़ापन शुरू। ऐसी स्थिति (बच्चों में चिड़चिड़ापन) किसी भी बच्चों में देखी जा सकती है। वह हमेशा चिड़चिड़ा और खराब मूड में रहने लगा था। एक बार बाल रोग विशेषज्ञ के साथ मीटिंग के दौरान हीनल ने चिन्मय के बारे में सबकुछ बताया। कैसे उसका व्यवहार अचानक से बदल गया और उसे लगता है कि यह सब ज्यादा टीवी देखने की वजह से हुआ है। टेलीविजन के वजह से ही बच्चों में चिड़चिड़ापन शुरू हुआ। डॉक्टर ने चिन्मय की नियमित जीवनशैली (Unhealthy lifestyle) में कुछ बदलाव का सुझाव दिया और कुछ ही महीनों में उसके एटीट्यूड में बदलाव दिखने लगा। हालांकि, शुरुआत में थोड़ी कठिनाई हुई। हीनल ने कोशिश की और अपने प्यारे, फ्रेंडली और बातूनी बेटे को वापस पा लिया।
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हीनल अकेली नहीं है, जो बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम (Screen time) की वजह से उनके व्यवहार में हो रहे बदलावों से परेशान है। स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से बच्चे अपनी भावनाओं पर ठीक से काबू नहीं रख पातें और वह चिड़चिड़े हो जाते हैं, बहस करने लगते हैं और वह शांत नहीं रह पाते। हालांकि, बच्चों को नया कुछ सिखाने और उनकी प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स डेवलप (Problem solving skill development) करने में स्क्रीन मदद करता है। लेकिन, इसका ज्यादा इस्तेमाल पेरेंट्स के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाता है और बच्चों में चिड़चिड़ापन की समस्या शुरू हो सकती है।