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World Television Day : बच्चों में चिड़चिड़ापन होने का कारण कहीं TV तो नहीं

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Shruthi Shridhar


Kanchan Singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/06/2021

    World Television Day : बच्चों में चिड़चिड़ापन होने का कारण कहीं TV तो नहीं

    आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में पेरेंट्स बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। इसी का कारण है कि लोग बच्चों को टीवी या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से व्यस्त रखने की कोशिश करते हैं। वहीं बच्चों का ज्यादा टीवी देखना या किसी भी स्क्रीन पर ज्यादा टाइम देना उनके लिए नुकसानदायक साबित होता है और बच्चों में चिड़चिड़ापन (Irritability in children) की समस्या शुरू हो सकती है। उदाहरण के लिए हर सुबह जब हीनल ऑफिस जाने के लिए तैयार होती हैं, तो अपने पांच साल के बेटे चिन्मय के लिए टीवी पर कार्टून लगा देती हैं। शुरुआत में उसे यह आइडिया अच्छा लगा, जब वह बेटे की किसी अच्छी आदत या अपना काम पूरा करने जैसे, जल्दी तैयार होने या बिना नखरा दिखाए खाने के लिए और इसी तरह के व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए ईनाम स्वरूप उसे टीवी या अन्य इलेक्ट्र्र्रॉनिक उपकरण (Electronic device) का इस्तेमाल करने देती थी।

    हीनल का कहना है, “चिन्मय को समय पर स्कूल जाने के लिए तैयार करना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि टीवी बंद करते ही बच्चों में चिड़चिड़ापन (Irritability in children) समझ आने लगता था।” टीवी से दूर रहने के लिए हीनल ने उसे चेतावनी भी दी, लेकिन सब बेकार साबित हुआ। बेटे का स्क्रीन से ध्यान हटाने के लिए हीनल सब कोशिश कर हार गई हैं। उसने बेटे से बात करना बंद कर दिया। इसका चिन्मय पर बहुत बुरा असर पड़ा और उसका व्यवहार और बिगड़ने लगा। वैसे बच्चों में चिड़चिड़ापन साफ समझ आने लगा। वह मुश्किल से किसी से बात करता, उसकी चंचलता खत्म हो गई और चिड़चिड़ापन शुरू। ऐसी स्थिति (बच्चों में चिड़चिड़ापन) किसी भी बच्चों में देखी जा सकती है। वह हमेशा चिड़चिड़ा और खराब मूड में रहने लगा था। एक बार बाल रोग विशेषज्ञ के साथ मीटिंग के दौरान हीनल ने चिन्मय के बारे में सबकुछ बताया। कैसे उसका व्यवहार अचानक से बदल गया और उसे लगता है कि यह सब ज्यादा टीवी देखने की वजह से हुआ है। टेलीविजन के वजह से ही बच्चों में चिड़चिड़ापन शुरू हुआ। डॉक्टर ने चिन्मय की नियमित जीवनशैली (Unhealthy lifestyle) में कुछ बदलाव का सुझाव दिया और कुछ ही महीनों में उसके एटीट्यूड में बदलाव दिखने लगा। हालांकि, शुरुआत में थोड़ी कठिनाई हुई। हीनल ने कोशिश की और अपने प्यारे, फ्रेंडली और बातूनी बेटे को वापस पा लिया।

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    हीनल अकेली नहीं है, जो बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम (Screen time) की वजह से उनके व्यवहार में हो रहे बदलावों से परेशान है। स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से बच्चे अपनी भावनाओं पर ठीक से काबू नहीं रख पातें और वह चिड़चिड़े हो जाते हैं, बहस करने लगते हैं और वह शांत नहीं रह पाते। हालांकि, बच्चों को नया कुछ सिखाने और उनकी प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स डेवलप (Problem solving skill development) करने में स्क्रीन मदद करता है। लेकिन, इसका ज्यादा इस्तेमाल पेरेंट्स के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाता है और बच्चों में चिड़चिड़ापन की समस्या शुरू हो सकती है।

    टीवी स्क्रीन और व्यवहार के बीच संबंध

    टीवी स्क्रीन पर रोमांचक चीजें देखने की वजह से बच्चों में डोपामाइन हॉर्मोन (Dopamine hormone) रिलीज होता है। यह एक अच्छा महसूस कराने वाला न्यूरोट्रांस्मीटर है, जिसकी वजह से बच्चे स्क्रीन देखने के दौरान खुश रहते हैं। जब बच्चों को टीवी या मोबाइल देखने से मना किया जाता है, तो डोपामाइन का रिलीज रुक जाता है और कुछ बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं। स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने का मतलब है कि आपका बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से दूसरी एक्टिविटीज जैसे खेलना, डांस करना, ड्रॉइंग आदि नहीं कर रहा है। इस वजह से सामाजिक और व्यवहार संबंधी समस्याएं आती हैं।

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    पेरेंट्स (Parents) को क्या करना चाहिए?

    WHO की गाइडलाइन्स में कहा गया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों का स्क्रीन टाइम शून्य होना चाहिए और दो से चार साल तक के बच्चों को स्क्रीन पर एक घंटे से कम समय बिताना चाहिए। हालांकि, विभिन्न कारणों और मोबाइल की जरूरत की वजह से हमेशा इसका पालन नहीं किया जा सकता, लेकिन पेरेंट होने के नाते आप बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के लिए सीमा निर्धारित कर सकते हैं और बच्चों में चिड़चिड़ापन से बचा सकते हैं।

    बच्चों के लिए तय करें स्क्रीन फ्री टाइम

    बच्चे से इस बारे में चर्चा करें कि वह कब टीवी ओर मोबाइल देखेगा और कब इससे दूर रहेगा। घर में कुछ जगहें ऐसी निर्धिरत करें जहां मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, जैसे खाने के समय और किचन में।

    टीवी देखेने का समय निर्धारित करें

    बच्चे के लिए टीवी ऑन करने से पहले टाइमर सेट करें। वह कितनी देर टीवी या मोबाइल देखेगा यह आप तय करें। समय तय करें और उस पर अडिग रहें। टीवी और मोबाइल पर चाइल्ड मोड ऑन कर दें और उसे अपनी मर्जी की चीजें देखने दें, लेकिन समय आप तय करें।

    कर्फ्यू टाइम

    सोने के एक घंटे पहले और सुबह उठने के बाद एक घंटे तक बच्चे को टीवी और मोबाइल नहीं देखने देना है इस बात का भी ध्यान रखें। यह तरीका बच्चों में चिड़चिड़ापन होने से बचा सकता है।

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    दूसरी एक्टिविटीज पर ध्यान दें

    बच्चों में चिड़चिड़ापन होने पर इससे बचाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। बच्चा बोर हो रहा है इसलिए उसे टीवी या मोबाइल न दें। बच्चा बोर हो रहा है या उसके पास करने को कुछ नहीं है, तो उसे किसी हॉबी में शामिल करें जो भी उसे पसंद हो, जैसे- ड्रॉइंग, कलरिंग, खेलना, स्विमिंग आदि। अपने बच्चे को हमउम्र बच्चों के साथ खेलने और दोस्त बनाने के लिए प्रेरित करें। इससे उनकी सोशल स्किल्स (Social skills) विकसित होगी। ऐसा करने से बच्चों में चिड़चिड़ापन की समस्या नहीं होगी और वह खुश रहने के साथ-साथ उसका शारीरिक विकास भी बेहतर होगा।

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     टीवी से ध्यान हटाने के लिए

    यदि आपने बच्चे के साथ बहस की है या आपके पास समय की कमी है, तो उसे शांत करने के लिए टीवी या  मोबाइल न दें। बच्चों को अपनी भावनाओं को समझना और उसे संभालना सीखने की जरूरत है। यह सिर्फ पेरेंट्स ही सीखा सकते हैं। बच्चों को संभालने के लिए उनसे बातचीत बहुत जरूरी है। बच्चे से बात करें और यह जानने की कोशिश करें कि वह कैसे शांत होंगे और किस चीज से उन्हें अच्छा महसूस होता है। टीवी और मोबाइल को बच्चे की भावनाओं को छुपाने और ढंकने के लिए इस्तेमाल न करें। इस बच्चों में चिड़चिड़ापन (Irritability in children) से भी बचायेगा।

    एक बार सीमाएं निर्धारित कर देने के बाद बच्चों को पता होता है कि उनका रूटीन तय हो गया है। वह डेली रूटीन के लिए तैयार रहते हैं और ज्यादा टीवी या मोबाइल देखने की डिमांड भी नहीं करते। अध्ययन बताते हैं कि स्क्रीन टाइम कम करके बच्चों को बाहर खेलने के लिए बढ़ावा देने से उनका मानसिक स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अगर आपभी अपने बच्चों में चिड़चिड़ापन (Irritability in children) जैसे स्वभाव को समझते हैं तो हेल्थ एक्सपर्ट से सलाह लेना चाहिए। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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