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इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (Irritable bowel syndrome) क्या है?
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) आंतों से जुड़ी बीमारी है, रीटेबल बोवेल सिंड्रोम (आईबीएस) एक आम विकार है, जो बड़ी आंत को प्रभावित करता है। इसके लक्षणों में पेट में ऐंठन, पेट में दर्द, पेट में सूजन, गैस की समस्या, दस्त और कब्ज शामिल हैं। आईबीएस एक पुरानी स्थिति है, जिसे आपको लंबे समय तक प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है। यानि इसका समय पर इलाज जरूरी है, जो कि लंबे समय तक चल सकता है। आईबीएस वाले बहुत कम लोगों में गंभीर लक्षण और लक्षण होते हैं। कुछ लोग आहार, जीवन शैली और तनाव को प्रबंधित करके अपने लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। अधिक गंभीर लक्षणों का इलाज दवा और परामर्श से किया जा सकता है। आईबीएस आंत ऊतक में परिवर्तन का कारण नहीं बनता है या कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा नहीं बढ़ाता है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम तीन तरह की होती है:
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आईबीएस डी में मुख्य रूप से डायरिया (Diarrhea) की शिकायत होती है, जबकि आईबीएस सी में कब्ज (Constipation) के लक्षण होते हैं। आईबीएस एम में दोनों के लक्षण होते हैं। आम तौर पर मरीज को पेट के दर्द की शिकायत होती है। ये बीमारी अनुवांशिक नहीं है। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS) से ग्रसित बहुत कम लोगों में गंभीर लक्षण होते हैं। कुछ लोग आहार, जीवनशैली और तनाव को मैनेज करके इसके लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। अधिक गंभीर लक्षणों का इलाज दवा और परामर्श के साथ किया जा सकता है।
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इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के लक्षण (Irritable bowel syndrome)
आईबीएस के लक्षण और लक्षण अलग-अलग होते हैं लेकिन आमतौर पर लंबे समय तक मौजूद रहते हैं। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के लक्षणों में शामिल हैं:
- पेट दर्द (Abdominal Pain)
- पेट में ऐंठन (Cramping)
- अत्यधिक गैस बनना (Excess gas)
- आंतों का ठीक से काम न करना (Intestinal dysfunction)
- दस्त की समस्या
- तनाव (Stress)
- कब्ज की समस्या (Constipation)
- नींद की कमी (Lack of sleep)
- खून की कमी (Anemic)
- शरीर में पानी की कमी (Lack of body water)
- अपच की समस्या (Indigestion)
- जी मिचलाना (Nausea)
- पेट का ठीक से साफ न होना (Partially clean stomach)
- बार-बार मल त्याग की इच्छा होना (Having frequent bowel movement)
इन लक्षणों को नजरअंदाज ना करें, क्योंकि शुरुआती परेशानियों को सहना आसान है। लेकिन जब परेशानी जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगती है, तो इलाज में वक्त लगता है और तकलीफ भी ज्यादा होती है। इसलिए डॉक्टर से कंसल्टेशन जरूरी होता है।