फाइब्रॉएड का प्रेग्नेंसी के दूसरे और तीसरे ट्राइमेस्टर पर असर
भ्रूण के विकास के साथ आपका गर्भाशय फैलता है जिससे फाइब्रॉएड पर दवाब बनता है और प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह की परेशानी हो सकती हैं।
दर्द- यदि फाइब्रॉएड बड़े हैं तो गर्भावस्था के समय फाइब्रॉएड रक्त की आपूर्ति बढ़ा लेता है और लाल हो जाता है। यह प्रक्रिया रेड डिजनरेशन कहलाती है, जिसकी वजह से पेट में गंभीर दर्द होता है और कुछ मामलों में इससे मिसकैरिज भी हो जाता है। दर्द कम करने के लिए आप एसिटामिनोफेन (टाइलेनॉल) जैसी ओवर-द-काउंटर दवा ले सकते हैं, लेकिन गर्भावस्था के शुरुआती महीने और तीसरी तिमाही में आईबुप्रोफेन लेने से बचें, क्योंकि यह मिसकैरिज का कारण बन सकता है।
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प्लासेंटा का अचानक टूटना- फाइब्रॉएड से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के प्लासेंटा के डिलिवरी से पहले ही टूटने के खतरा रहता है। यानी प्लासेंटा डिलिवरी से पहले ही गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है। यह बहुत खतरनाक स्थिति होती है, क्योंकि इसके जरिए बच्चे को ऑक्सिजन की सप्लाई होती है, इसकी वजह से आपको बहुत अधिक ब्लीडिंग हो सकती है।
समय से पहले डिलिवरी- यदि आपको फाइब्रॉएड है तो बहुत अधिक संभावना है कि आपकी डिलिवरी 37 प्रेग्नेंसी के 37 हफ्ते के पहले ही हो जाए।
इतना ही नहीं कई अध्ययनों के मुताबिक, फाइब्रॉएड की वजह से सी सेक्शन की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि यह गर्भाशय के संकुचन में बाधा पहुंचाने के साथ ही बच्चे के जन्म के रास्ते को भी ब्लॉक करते हैं, इससे लेबर धीमा हो जाता है। सामान्य महिलाओं की तुलना में फाइब्रॉएड से पीड़ित महिलाओं के सी सेक्शन की संभावना 6 गुणा अधिक होती है।
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इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड का निदान
आमतौर पर इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड और अन्य फाइब्रॉएड का निदान नियमित पेल्विक टेस्ट या पेट की जांच के दौरान किया जाता है। इसके अलावा इन तरीकों से भी निदान किया जा सकता है।