आमतौर पर देखा जाए तो हेपेटाइटिस-बी का प्रेग्नेंसी और बच्चे पर शायद ही प्रभाव पड़े, लेकिन कई मामलों में प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी होने की संभावना बढ़ भी जाती है। इसी वजह से प्रेग्नेंसी के दौरान मां और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का बेहद ख्याल रखने की आवश्यक्ता होती है।
अगर प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी है, तो निम्नलिखित खतरे हो सकते हैं।
- प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी होने से समय से पहले बच्चे का जन्म (premature baby) हो सकता है।
- प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी होने पर कम वजन के साथ बच्चा पैदा हो सकता है।
- प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस बी है तो डायबिटीज हो सकती है।
- प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी प्रेग्नेंसी के दौरान अत्यधिक रक्त स्त्राव का कारण बन सकता है।
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कई मामलों में हैपेटाइटिस-बी मां से पहुंच जाता है। इसके बारे में एक मिथक है कि सिजेरियन तकनीक से बच्चे को जन्म देने से उसे हेपेटाइटिस-बी नहीं हो सकता, जो कि बिलकुल गलत है। इसके कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
अगर आपको हैपेटाइटिस-बी है तो आपके बच्चे को हेपेटाइटिस-बी की वैक्सीन लगाना बेहद जरूरी है। इसके अलावा कुछ बच्चों को इम्यूनोग्लोबिन (immunoglobulin) नामक एंडीबॉडीज इंजेक्शन भी दिए जाते हैं।
नवजात बच्चे को एक महीने बाद दोबारा, 2 महीने बाद तीसरी और 1 साल की उम्र में चौथी बार वैक्सीन दी जाती है। एक साल की उम्र होने के बाद बच्चे का ब्लड टेस्ट कराया जाता है, जिसमें इस बात की पुष्टि की जाती है कि वायरस उसके शरीर से निकला या नहीं। वहीं पांच साल की उम्र में एक बूस्टर डोज भी दिया जाता है। अगर मां को हेपेटाइटिस-बी है और वह बच्चे को स्तनपान कराना चाहे, तो बच्चे को वैक्सीन लगाना बेहद आवश्यक है।
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क्या है प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी का इलाज?
अगर प्रेग्नेंसी की शुरुआत में हुआ बल्ड टेस्ट हेपेटाइटिस-बी होने की पुष्टि करता है तो आपका डॉक्टर कुछ और टेस्ट कर सकता है। एक दूसरे टेस्ट के माध्यम से खून में हेपेटाइटिस-बी के वायरस का स्तर मापा जाता है। इसे वायरल लोड भी कहते हैं। अगर वायरल लोड ज्यादा है तब tenofovir (Viread) नामक दवाई भी दी जाती है।
प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस का इलाज प्रेग्नेंसी के 27वें हफ्ते में शुरू किया जा सकता है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि गर्भवती महिला में हेपेटाइटिस-बी का वायरल लोड कितना है। ये ट्रीटमेंट फिर बच्चे को जन्म देने के बाद भी कुछ हफ्तो तक चलता है।
वहीं अगर आपका वायरल लोड कम है तो डॉक्टर आपको ट्रीटमेंट की सलाह प्रेग्नेंसी के दौरान नहीं देगा। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान हेपेटाइटिस-बी की कुछ दवाईयां खतरनाक हो सकती हैं। अगर आपको पहले से ही पता है कि आप हेपेटाइटिस-बी का शिकार हैं, तो आपको प्रेग्नेंट होने के पहले ही डॉक्टरी सलाह लेना जरूरी है।
अगर आपके हेपेटाइटिस-बी ट्रीटमेंट के दौरान आप प्रेग्नेंट हो जाएं तो डॉक्टर को इस बारे में बताएं, जिससे वो दवाईयों में परिवर्तन कर सकें और प्रेग्नेंसी में संभावित खतरा टल जाए।
क्या हैं हेपेटाइटिस-बी के लक्षण?
हेपेटाइटिस-बी को अंग्रेजी में साइलेंट किलर की संज्ञा दी गई है। यानी ये धीरे- धीरे आपकी जान ले सकता है और आपको पता भी नहीं चलेगा। कई मामलों में तो इसके लक्षण सामने आने में काफी देर हो जाती है और ये बीमारी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। नीचे हम हेपेटाइटिस-बी के कुछ शुरुआती लक्षणों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए। प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस होने पर भी यही शुरुआती लक्षण दिखाई देंगे जो इस प्रकार हैं :
- जोड़ों में दर्द होना भी हेपेटाइटिस-बी के शुरुआती लक्षणों में से एक है।
- चमड़ी में चिट्टे पड़ना भी हेपेटाइटिस-बी के शुरुआती लक्षणों में से एक है।
- कमजोरी और घबराहट होना भी हेपेटाइटिस-बी के शुरुआती लक्षणों में से एक है।
- पीलिया भी हेपेटाइटिस-बी के शुरुआती लक्षणों में से एक हो सकता है।
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प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस- बी के घरेलू उपचार क्या हैं?
प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी होने पर आंवला हो सकता है मददगार
आंवले में एंटी वायरल गुण पाया जाता है। हेपेटाइटिस बी से निपटने के लिए आप आंवले के रस में शहद मिलाकर दिन में कई बार इसका सेवन करें। इसके अलावा आंवले के रस को पानी में मिलाकर पिएं या आंवला पाउडर में गुड़ मिलाकर एक महीने तक दिन में दो बार खाएं। प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस होने पर भी इस उपाय को अपनाया जा सकता है, लेकिन डॉक्टर से पूछने के बाद ही इसे खाएं।
प्रेग्नेंसी में हेपेटाइटिस-बी से लड़ने में मदद कर सकता है लहसुन
लहसुन में मेटाबोलाइट्स और अमीनो एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो, हेपेटाइटिस बी के वायरस को तेजी से खत्म करने में मदद करता है। कच्चे लहसुन की कलियां चबाने से लिवर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
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चुकंदर का जूस लिवर की बीमारियों में है फायदेमंद
चुकंदर में पर्याप्त मात्रा में आयरन, पोटैशियम, फॉलिक एसिड, मैग्नीशियम, कैल्शियम और कॉपर के अलावा विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है। ये सभी मिनरल्स लिवर में डैमेज सेल्स को दोबारा जोड़कर सूजन और दर्द से राहत दिलाते हैं। दो गिलास चुकंदर का जूस रोजाना पीने से पीलिया में जल्दी आराम मिलता है।
ऑलिव लीफ है बहुत काम की
ऑलिव लीफ में फाइटोकेमिकल नाम का एक कंपाउंड पाया जाता है जिसे ओलेरोपिन कहते हैं, जिसमें एंटी वायरल और एंटी फंगल गुण अधिकता में मौजूद होते हैं। एक कप पानी में एक चम्मच सूखे ऑलिव लीफ को दस मिनट तक उबालें और फिर इसे छानकर दिन में तीन बार पिएं। ऑलिव लीफ की जगह बाजार में उपलब्ध ऑलिव लीफ के 500 एमजी कैप्सूल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सिर्फ डॉक्टरी सलाह से ही।
हेपेटाइटिस- बी से बचाव के लिए इन खतरों से बचें
हेपेटाइटिस बी इंफेक्टेड शख्स के खून, वीर्य या शरीर के अन्य लिक्विड्स के संपर्क में आने से फैलती है। हेपेटाइटिस बी इंफेक्शन के मुख्य कारण हैं :
- हेपेटाइटिस से बचाव के लिए जरूरी है असुरक्षित यौन संबंध करने से बचें और एचआईवी से संक्रमित किसी व्यक्ति से भी संबंध न बनाए।
- इंफेक्टेड निडल के प्रयोग से फैल सकता है हेपेटाइटिस बी का खतरा।
- समलैंगिग पुरूषों के यौन संबंध से भी बढ़ सकता है हेपेटाइटिस बी की खतरा।
- किसी एचआईवी से ग्रसित इंसान के साथ रहने से भी बढ़ता है हेपेटाइटिस का खतरा।
- हेपेटाइटिस से संक्रमित मां से पैदा हुए शिशु को भी होता है इसका खतरा।
- जिन जगहों हेपेटाइटिस का इंफेक्शन फैला हो, वहां यात्रा करने से इसका खतरा बढ़ जाता है।
अगर आपको अपनी समस्या को लेकर कोई सवाल हैं, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना ना भूलें।
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