कुपोषण
गर्भवती महिला रोजाना जितनी कैलोरी खर्च करती है उसके मुकाबले यदि वह कम कैलोरी लेती है (प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से) तो इसे कुपोषण कहा जाएगा। कुपोषण की स्थिति में गर्भवती महिला और शिशु का वजन कम हो सकता है। साथ ही उसके बीमार होने की संभावना बड़ जाती है। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी में कुपोषण के शिकार ज्यादातर गरीब तबके के लोग होते हैं। जिन महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान सही देखभाल और खाना पीना नहीं मिलता उनके बच्चे को कुपोषण होने के चांसेस ज्यादा हैं।
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प्रेग्नेंसी में पोषक तत्वों की कमी
यह वह स्थिति है जब गर्भवती महिला पर्याप्त मात्रा में खाना तो खाती है लेकिन, प्रेग्नेंसी के दौरान जरूरी पोषक तत्वों को पर्याप्त मात्रा में नहीं लेती। जैसे कि कैल्शियम का सेवन, जिंक, आयरन, फोलिक एसिड आदि। उदाहरण के तौर पर गर्भवती महिलाओं में कैल्शियम की कमी शिशु की हड्डियों और दांतों के विकास को प्रभावित कर सकती है। रोजाना के भोजन में इसकी एक निश्चित मात्रा की बॉडी को जरूरत होती है। पोषक तत्वों को ठीक से ना लेने की वजह से प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी हो सकती है। इससे बच्चे को आगे चलकर परेशानी हो सकती है।
प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी होने का नुकसान
जर्नल ऑफ नर्सिंग केयर में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, कुपोषण नवजात शिशु के इम्यून सिस्टम के विकास को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इसको लेकर मिस्र के मेनुफिया गवरनोरेट के मेटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ केयर सेंटर में 150 गर्भवती महिलाओं पर शोध किया गया। इस शोध में पाया गया कि गर्भावस्था में कुपोषण और नवजात शिशु के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध था। उन्होंने पाया कि न्यूट्रिशनल काउंसिलिंग एंटीनेटल केयर का एक अभिन्न हिस्सा होनी चाहिए, जिससे गर्भ में भ्रूण और नवजात शिशु की समस्याओं को कम किया जा सके। प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी होने से बच्चा जहां कुपोषित होता है वहीं आगे चलकर उसे और बीमारियां होने का भी खतरा बढ़ जाता है क्योंकि इसकी वजह से बच्चे का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है।
प्रेग्नेंसी में पोषण की कमी से होने वाले खतरे
महिला जब गर्भधारण करती है उस वक्त बॉडी में पोषण की स्थिति प्रेग्नेंसी के दौरान उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इसका असर बच्चे पर भी पड़ता है। प्रेग्नेंसी से पहले उसके और बच्चे के लिए कितने पोषक तत्वों की जरूरत है इसका पता लगाया जाना चाहिए। अगर किसी महिला को गर्भधारण करने से पहले संपूर्ण पोषण ना मिल रहा हो, तो वह गर्भधारण के वक्त कुपोषित और अंडरवेट हो सकती है।
उसकी सेहत पर इसका असर पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान रह सकता है। गर्भधारण करते वक्त उसके स्वास्थ्य की स्थिति भ्रूण को भी प्रभावित करती है। यहां तक कि इसका असर दीर्घकालीन समय में शिशु पर भी पड़ता है।