प्रेग्नेंसी वीक 36 में गर्भस्थ शिशु का विकास
प्रेग्नेंसी वीक 36 में आपके शिशु का विकास कैसा है? (Pregnancy Week 36 in hindi)
प्रेग्नेंसी वीक 36 या गर्भावस्था के 36वें सप्ताह के दौरान आपके शिशु की लंबाई 47 सेंटीमीटर और वजन 2.7 किलोग्राम के आसपास हो जाता है। जिस जिंदगी को आपने कुछ दिनों पहले अल्ट्रासाउंड में एक बॉल की तरह देखा था, इस हफ्ते वो आपके जिंदगी का सबसे अहम किरदार बन चुका होता है। उसके गालों पर फैट जमने लगता है। अब बच्चा बिल्कुल वैसा हो चुका है जैसा कि आप अक्सर सोचती होंगी। भले ही मां प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे को देख नहीं पाती है लेकिन उसके मन में बच्चे की छवि बन जाती है।
आपके शिशु की खोपड़ी की हड्डियां एक-दूसरे के ऊपर से आसानी से फिसल सकती हैं और ओवरलैप कर सकती हैं। इस प्रक्रिया को मोल्डिंग कहते हैं, जो कि शिशु को बर्थ कैनाल से गुजरने में मदद करती हैं। अगर डिलीवरी के समय आपके शिशु का सिर नोकीला होता है या आकार थोड़ा सा अव्यवस्थित होता है, तो घबराने की कोई बात नहीं है। क्योंकि, जन्म के कुछ घंटे या दिन बाद आपके शिशु का सिर दोबारा सामान्य गोल अवस्था में लौट आएगा।
प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान आपके गर्भ में बहुत कम खाली जगह बचती है, जिससे शिशु को हलचल करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती। हालांकि, इसके बाद भी आपको कई बार शिशु के घूमने, स्ट्रेच या हरकत महसूस हो सकती है। शिशु की त्वचा को सुरक्षा प्रदान करने वाली वर्निक्स की परत मोटी हो जाती है। प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान आपके शिशु के शरीर पर और फैट चढ़ता है और उसका वजन छह से साढ़े छह पाउंड के करीब हो जाता है।
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प्रेग्नेंसी वीक 36 में शारीरिक और दैनिक जीवन में परिवर्तन
प्रेग्नेंसी वीक 36 या गर्भावस्था के 36वें सप्ताह के दौरान मेरे शरीर में क्या-क्या बदलाव आते हैं? (Pregnancy Week 36 Body changes in hindi)
प्रेग्नेंसी वीक 36 में आपके शिशु का बड़ा आकार होने की वजह से आपको नॉर्मल मील खाने में भी दिक्कत हो सकती है। इस दौरान आपको छोटी-छोटी मील का सेवन करना चाहिए या दिन में तीन से ज्यादा बार थोड़ा-थोड़ा खाएं। इससे आपको सीने में जलन नहीं होगी और शिशु जब आपके पेल्विस में नीचे की तरफ जाता है तो आपको सांस लेने में परेशानी नहीं होगी। अगर आप पहली बार मां बन रही हैं, तो पेल्विस में शिशु के नीचे की तरफ जाने की प्रक्रिया डिलीवरी से कुछ दिन पहले शुरू हो जाती है।
लेकिन, अगर आप पहले भी मां बन चुकी हैं, तो यह प्रक्रिया लेबर के समय शुरू होती है। शिशु के नीचे की तरफ आ जाने से आपको पेट के निचले हिस्से में भारीपन महसूस होता है, जिससे आपको चलने में असुविधा होती है। इस वजह से आपको प्रेग्नेंसी वीक 36 में ज्यादा बार पेशाब जाना पड़ सकता है। अगर, आपका शिशु ज्यादा नीचे आ गया है, तो आपको वजाइनल प्रेशर और असुविधा महसूस हो सकती है।
प्रेग्नेंसी वीक 36 में आपको फेक कॉन्ट्रैक्शन ज्यादा महसूस होने लगता है। आप डॉक्टर से फेक और असली लेबर कॉन्ट्रैक्शन के बारे में पूरी जानकारी ले सकती हैं, जिससे किसी भी गलतफहमी की स्थिति पैदा नहीं होगी। सामान्य तौर पर, अगर आपकी प्रेग्नेंसी में कोई जटिलता नहीं है और आपका फ्लूड टूटा नहीं है, तो आपको एक घंटे में हर पांच मिनट पर लगातार एक मिटने से भी ज्यादा होने वाले कॉन्ट्रैक्शन तक इंतजार करना चाहिए। इन लक्षणों के दिखने पर ही आप डॉक्टर के पास जाएं। अगर, आपको शिशु की हरकत में कमी, एम्नियोटिक फ्लूड के निकलने, वजाइनल ब्लीडिंग, गंभार और लगातार सिरदर्द की समस्या, लगातार पेट दर्द या नजर में बदलाव महसूस होता है, तो आपको तुरंत डिलीवरी के लिए चुने गए अस्पताल या नर्सिंग होम या डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
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प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान मुझे किन बातों के बारे में जानकारी होनी चाहिए?
प्रेग्नेंसी वीक 36 या गर्भावस्था के अंत में अधिकतर गर्भवती महिलाओं का वजन बढ़ना बंद हो जाता है। इस दौरान आपका वजन बढ़ने के बजाय घटना शुरू हो सकता है। हालांकि, इस दौरान आपको शिशु के लिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इससे उसके वजन पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
अगर आपका वजन उतना ही रहता है या घटने लगता है, तो इसका मतलब है कि आप डिलीवरी के लिए तैयार है। एम्नियोटिक फ्लूड के लीक होने की वजह से आपका वजन घटने लगता है।
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प्रेग्नेंसी वीक 36 में डॉक्टरी सलाह
प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान मुझे डॉक्टर को क्या-क्या बताना चाहिए?
प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान आपका डॉक्टर आपको लेबर के लक्षणों के बारे में पूरी जानकारी दे सकता है। जिससे आपको पता लग सके कि कब आपका एम्नियोटिक फ्लूड घटने लगा है और कब आपको डिलीवरी के लिए अस्पताल या बर्थ सेंटर जाने की जरूरत है। लेबर पेन या कॉन्ट्रैक्शन अनियमित भी हो सकते हैं। अगर, आपको समझ नहीं आ रहा है कि यह कॉन्ट्रैक्शन फेक है या असली, तो आप अपने डॉक्टर को फोन करके सलाह ले सकती हैं। वो फोन पर जरूरी जानकारी प्राप्त करके आपको सही सलाह दे पाएगा।
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प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान मुझे किन टेस्ट्स के बारे में जानकारी होनी चाहिए? (Pregnancy Week 36 Tests in hindi)
प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान भी आपके मेडिकल डायग्नोस्टिक टेस्ट पिछले हफ्तों वाले ही रहते हैं। इस दौरान डॉक्टर आपके शिशु के आकार का अंदाजा लगाकर डिलीवरी डेट का अनुमान लगा सकता है। प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान किए जाने वाले टेस्ट्स निम्नलिखित हैं।
- वजन की जांच (इस समय आपका वजन बढ़ना बंद हो सकता है या घटना शुरू हो सकता है)
- ब्लड प्रेशर की जांच (दूसरी तिमाही के मुकाबले इस समय उच्च हो सकता है)
- यूरिन में ग्लूकोज और प्रोटीन की जांच
- पैरों में वेरीकोज वेन और हाथों-पैरों पर सूजन की जांच
- शिशु की हृदय गति
- बाहर से यूट्रस के आकार की जांच
- यूट्रस के ऊपरी हिस्से की लंबाई की जांच, जिसे फंडस कहते हैं
- गर्भ में शिशु की पोजीशन की जांच, ताकि डिलीवरी के समय शिशु की स्थित का पता लग सके
इसके अलावा आप डॉक्टर के पास जाने से पहले अपने सभी सवालों और चिंता की एक सूची बना सकती हैं। जिससे, आपको अपने डॉक्टर से बातचीत करने में आसानी होगी और आपके मन में कोई शंका बाकी नहीं रह जाएगी।
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प्रेग्नेंसी वीक 36 में स्वास्थ्य और सुरक्षा
प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान मुझे अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़ी किन बातों के बारे में जानकारी होनी चाहिए?(Pregnancy Week 36 Safety in hindi)
एक्यूपंक्चर
गर्भावस्था के 36वें सप्ताह या प्रेग्नेंसी वीक 36 के दौरान एक्यूपंक्चर पूरी तरह से प्रभावी और सुरक्षित है। कई रिसर्च में सामने आया है कि स्ट्रेस, मॉर्निंग सिकनेस, हिप और लो बैक पेन, ब्रीच पोजीशन और हल्के से लेकर गंभीर डिप्रेशन से राहत पाने में एक्यूपंक्चर कारगर साबित होता है।
हालांकि, एक्यूपंक्चर प्रीनेटल मेडिकल केयर का विकल्प नहीं है। लेकिन, इसके बावजूद यह प्रेग्नेंसी में काफी लाभदायक होता है। इसके अलावा, एक्यूपंक्चर के बहुत कम साइड इफेक्ट्स हैं। जिसकी वजह से कई गर्भवती महिलाएं ड्रग थेरिपी के विकल्प के तौर पर इसका प्रयोग करती हैं।
अगर आपको एक्यूपंचर नहीं कराना है तो आप स्ट्रेस से बचने के लिए योगा कर सकती हैं। रोजाना सुबह उठकर आसान योगा का अभ्यास करेंगी तो आपको स्ट्रेस से राहत मिलेगी। आप चाहे तो ट्रेनर की हेल्प ले सकते हैं। प्रेग्नेंसी के 36वें सप्ताह को कठिन एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। अधिक वजन के कारण बैलेंस बिगड़ने की संभावना अधिक हो जाती है।
इंटरकोर्स
आपको प्रेग्नेंसी वीक 36 या तीसरी तिमाही के दौरान इंटरकोर्स नहीं करना चाहिए, यदि-
- आपके प्लासेंटा की स्थिति काफी नीचे है। क्योंकि, अगर आपके पार्टनर का पेनिस सर्विक्स को छूता है, तो उससे ब्लीडिंग का खतरा हो सकता है।
- आपको वजाइनल ब्लीडिंग हो सकती है।
- एम्नियोटिक फ्लूड ब्रेक हो सकता है और आपके शिशु को संक्रमण लगने का खतरा हो सकता है।
- आपको सर्वाइकल की कमोजरी हो सकती है।
प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स किया जा सकता है, यदि किसी भी तरह का कोई कॉम्प्लीकेशन न हो। अगर महिला को किसी तरह की समस्या महसूस हो रही है तो बेहतर होगा कि सेक्स न करें। प्रेग्नेंसी के तीसरे ट्राईमेस्टर के दौरान महिलाओं का पेट बड़ा हो जाता है। ऐसे में सेक्स के दौरान असुविधा भी महसूस हो सकती है। अगर प्रेग्नेंसी का पहला या दूसरा ट्राईमेस्टर चल रहा है तो सेक्स को एंजॉय किया जा सकता है। दूसरे ट्राईमेस्टर के दौरान हो सकता है कि सेक्स के दौरान बच्चे का मूवमेंट बढ़ जाए। लेकिन ऐसा होने पर आपको डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि बहुत ही नॉर्मल है। अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स के बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से परामर्श करें।
अगले आर्टिकल में हम प्रेग्नेंसी वीक 37 के बारे में बात करेंगे। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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