आजकल दुनिया में इतने प्रकार की बीमारियां बढ़ गई है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अलग-अलग नाम और लक्षणों के साथ होने वाले इन बीमारियों में से कुछ के बारे में लोगों को पता भी नहीं चल पाता है कि, आखिर उन्हें हुआ क्या है। ऐसी ही एक बीमारी का नाम है जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease), ये महिलाओं में होने वाली एक दुर्लभ किस्म की बीमारी है। इस बीमारी में अक्सर महिलाओं को प्रेग्नेंट होने या फिर गर्भावस्था का भ्रम हो जाता है। जरा सोचिये जिस चीज को आप प्रेग्नेंसी का लक्षण समझते हों वो अगर एक किस्म की बीमारी निकले तो, एक क्षण में आपकी दुनिया बदल नहीं जाएगी। बहुत से लोगों को इस बीमारी के बारे में मालूम भी नहीं होगा। इस आर्टिकल के जरिए हम आपको जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) से जुड़ी हर आवश्यक तथ्य के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
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जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) क्या है ?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) महिलाओं में होने वाली एक असामान्य बीमारी है। ये बीमारी में महिलाओं की ओवरी में ट्रोफोबैस्ट कोशिकाएं बढ़ने लगती है, जिसे GTD कहते हैं। अगर किसी महिला को ये बीमारी होती है तो, शुरूआती दिनों में वो इसे प्रेग्नेंसी का लक्षण मान सकती हैं। ज्यादातर लोग इस बीमारी में कंफ्यूज हो जाते हैं कि, आखिर वो प्रेग्नेंट हैं या नहीं। इस बीमारी में और भी कई प्रकार के रिस्क महिला को हो सकते हैं। जैसे कि, चोरिकार्सिनोमा ये एक प्रकार का कैंसर है जो इस अवस्था में महिला के शरीर में पनप सकता है। इसके अलावा एपिथेलियोइड ट्रोफोब्लास्टिक और प्लेसेंटल साइट ट्रोफोब्लास्टिक ट्यूमर जैसी समस्या भी हो सकती है। इस बीमारी में हाइपरथायरॉइड होने का खतरा भी बढ़ सकता है।
जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज के कारण (Gestational trophoblastic disease Causes)
सबसे पहले बात करें ट्रोफोब्लास्टिक के कारण कि, तो इसका मुख्य कारण महिलाओं में मोलर प्रेग्नेंसी हो सकता है। इस प्रेग्नेंसी में गर्भाशय में अंडा उत्पन्न तो होता है लेकिन, पोषक तत्वों की कमी और अन्य कारणों से उसका विकास नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में वो ओवरी में ही एक ट्यूमर का रूप ले लेता है, यही ट्यूमर बढ़कर ट्रोफोब्लास्टिक का कारण बन सकता है। ये स्थिति तब उत्पन्न होती है जब महिला के गर्भाशय में स्पर्म का निषेचन ठीक तरह से नहीं हो पाता है। हालांकि ये स्थिति काफी असामान्य होती है लेकिन इस बीमारी में महिलाओं को एक साथ बहुत-सी स्वास्थ्य समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है।
जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) की स्टेज
स्टेज फस्ट : लो रिस्क जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक ट्यूमर
जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक ट्यूमर फस्ट स्टेज में लो रिस्क में होता है। डॉक्टर जांच के बाद कीमो का सहारा ले सकता है। साथ ही सर्जरी की सहायता भी ली जा सकती है। सर्जरी की सहायता लेने से कीमो का जरूरत न के बराबर हो सकती है। कीमो तभी दिया जाएगा जब कैंसर का कोई लक्षण दिखाई दे। ये ब्लड में एचसीजी के लेवल पर निर्भर करता है।
स्टेज सेकेंड और थर्ड :जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक ट्यूमर
इस स्टेज में ट्यूमर जेनेटल स्ट्रक्चर में फैल सकता है। इस स्टेज में भी सर्जरी की सहायता ली जा सकती है।
स्टेज फोर : जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक ट्यूमर
इस स्टेज में इंटेंसिव ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। इस स्टेज में कीमो के साथ ही सर्जरी की हेल्प भी ली जा सकती है। आप डॉक्टर से ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (GTD) की स्टेजेस के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज के लक्षण (Gestational trophoblastic disease Symptoms)
- योनि से खून का स्त्राव होना। इसे कुछ महिलाएं पीरियड समझने की गलती भी कर बैठती हैं। जबकि ये पीरियड से काफी अलग होता है।
- यूट्रस का असामान्य रूप से बढ़ जाना, प्रेग्नेंसी के दौरान यूट्रस बढ़ता जरूर है लेकिन वो स्थिति सामान्य होती है।
- पेल्विस में किसी विशेष प्रकार का दर्द और दवाब का महसूस होना।
- मरीज को गंभीर मतली और उल्टी की समस्या हो सकती है।
- सिरदर्द के साथ हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत होना।
- प्रेग्नेंसी की भांति ही हाथ और पांव का सूज जाना।
- हार्ट बीट का तेज और अनियमित होना।
- थकान, सांस लेने में तकलीफ और चक्कर आने की समस्या भी हो सकती है।
- हाइपरथायरॉइड की समस्या होना भी इस बीमारी का एक लक्षण हो सकता है।
- नींद ना आने की समस्या।
- सामान्य से ज्यादा पसीना आना।
- हाथ-पावं में कंपन होना।
- वजन में लगातार गिरावट आना।
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जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज का निदान कैसे किया जाता है (Gestational trophoblastic disease diagnosis )?
शारीरिक जांच और मेडिकल हिस्ट्री
इस बीमारी के बारे में मुख्य रूप से डॉक्टर शारीरिक जांच के द्वारा मरीज में जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) का पता लगाते हैं। इस दौरान महिला के शरीर में इस बीमारी के संकेतों की जांच के साथ ही, शरीर में किसी प्रकार की गांठ या असामान्य स्थिति के बारे में जानकारी ली जाती है। इसके अलावा यदि मरीज की कोई मेडिकल हिस्ट्री रही है तो उसकी जांच भी इस प्रोसेस में की जाती है।
प्लेविक की जांच
इस जांच में मुख्यरूप से डॉक्टर महिला की योनि, गर्भाशय ग्रीवा (Cervix ), गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब, अंडाशय और मलाशय की जांच करते हैं। इस बीमारी के लक्षण नजर आने पर डॉक्टर, योनि में एक स्पेकुलम डालकर योनि और गर्भाशय ग्रीवा का परिक्षण करते हैं। डॉक्टर योनि में लुब्रिकेटेड उंगलियां डालकर गर्भाशय और अंडाशय के आकार और उसकी स्थिति का परिक्षण करते हैं। गर्भाशय में किसी प्रकार की गांठ का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर मलाशय में भी लुब्रिकेशन प्रोसेस के जरिए इसका परिक्षण करते हैं।
पेल्विस का अल्ट्रासाउंड (Ultrasound of pelvis)
जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) के बारे में पता लगाने के लिए डॉक्टर पेल्विस की अल्ट्रासाउंड का भी सहारा लेते हैं। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राम के दोनों का सहारा लिया जाता है। अल्ट्रासाउंड पेल्विस में कोशिकाओं को उभारने का काम करता है और सोनोग्राम द्वारा उन कोशिकाओं की तस्वीर ली जाती है। इस प्रोसेस में कभी कभी एक अल्ट्रासाउंड ट्रान्सडूसर को सोनोग्राम के लिए योनि में इंसर्ट किया जाता है।
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जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) का इलाज इन बातों पर निर्भर करता है
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिकडिजीज का इलाज संभव है, हालांकि इस बीमारी का उपचार विशेष रूप से निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करता है।
- जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) का इलाज मुख्य रूप से इस बात पर भी निर्भर करता है कि, आखिर ये बीमारी किस प्रकार की है।
- ट्यूमर गर्भाशय, लिम्प नोड्स और शरीर के दूसरे हिस्से में कितना फैला है, इस बात पर भी बीमारी का इलाज निर्भर करता है।
- जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) का इलाज इस बात पर भी निर्भर करता है कि, ट्यूमर किस हिस्से में है और उसकी संख्या कितनी है।
- गर्भाधान के कितने समय बाद ट्यूमर का पता चला इस बात पर भी इलाज निर्भर करता है।
- जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (GTD) का इलाज इस बात पर भी मुख्य रूप से निर्भर करता है कि, ये समस्या मोलर प्रेग्नेंसी, मिसकैरिज (Miscarriage) या फिर नॉर्मल प्रेग्नेंसी में किसके द्वारा हुई है।
- ट्यूमर का साइज कितना बड़ा है, ये बात भी एक सफल इलाज के लिए काफी मायने रखती है।
जीटीडी की बीमारी के क्योर रेट कितना होता है ?
इस बीमारी का उपचार इन सभी बातों पर तो निर्भर करता ही इसके साथ ही महिला शारीरिक रूप से कितनी सबल है इस चीज पर भी डिपेंड करता है। जीटीडी की समस्या में करीब 100 प्रतिशत मामलों में ट्रीटमेंट के जरिए बचाव किया जा सकता है। प्लेसेंटल-साइट ट्रोफोब्लास्टिक ट्यूमर का हाई क्योर रेट होता है। अगर ये समस्या गर्भाशय के बाहर फैलती है तो समस्या बढ़ सकती है। उच्च जोखिम वाले जीटीडी के लिए ट्रीटमेंट की दर 80% से 90% होती है। ऐसे में डॉक्टर कीमोथेरेपी, विकिरण यानी रेडिएशन या फिर सर्जरी की जरूरत होती है।
आपको इस आर्टिकल में जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) से संबंधित जानकारी पसंद आई होगी और आपको जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (Gestational trophoblastic disease) से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अगर आपको प्रेग्नेंसी के लक्षण नजर आने के साथ ही ब्लीडिंग भी हो रही हो तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं। जांच के बाद ही पता चलता है कि महिला प्रेग्नेंट है या फिर उसे जीटीडी की बीमारी है।
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