यदि बच्चा ब्रीच पुजिशन में है तो उसका सिर पेल्विक की तरफ और पैर गर्भाशय की तरफ होते हैं। जो मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। ब्रीच पुजिशन में सामान्य डिलिवरी करना परेशानी भरा ह सकता है। डिलिवरी से पहले अल्ट्रासाउंड के जरिए बच्चे की पुजिशन का पता लगाया जाता है। यदि बच्चा ब्रीच पुजिशन में है तो मां और बच्चे की सुरक्षा को देखते हुए सिजेरियन डिलिवरी के माध्यम से बच्चे को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है।
सिजेरियन डिलिवरी के कारण: गर्भाशय में जुड़वा बच्चे होने पर
गर्भाशय में जुड़वा बच्चे होने की स्थिति में सामान्य डिलिवरी कराना मुश्किल होता है। कई बार एक बच्चा सामान्य तो दूसरा ब्रीच पुजिशन में होता है। सामान्य डिलिवरी की कोशिश में गर्भनाल फटने का खतरा रहता है। ऐसे में सिजेरियन डिलिवरी मां और बच्चे दोनों के जीवन की सुरक्षा करती है।
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सिजेरियन डिलिवरी के कारण: प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति में
प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति में भी सिजेरियन डिलिवरी बेहतर विकल्प होता है। इस स्थिति में मां और बच्चे दोनों की जान खतरे में हो सकती है। इस स्थिति में सामान्य डिलिवरी कराते वक्त बच्चे से पहले प्लेसेंटा बाहर आ जाता है। प्लेसेंटा और गर्भाशय के कई रक्त वाहिकाएं होती हैं। सामान्य डिलिवरी की कोशिश में यह रक्त वाहिकाएं फटने का डर रहता है। इसकी वजह महिला को भारी ब्लीडिंग हो सकती है। कई मामलों में यह ब्लीडिंग मां और बच्चे दोनों के लिए जानलेवा साबित होती है। इसलिए प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति में सिजेरियन डिलिवरी का सहारा लिया जाता है।
सिजेरियन डिलिवरी के जिस तरह कई फायदे हैं। ठीक उसी तरह इसके कई दुष्परिणाम भी हैं। इसलिए सर्जरी का ऑप्शन आसान नहीं होता है। जो महिलाएं दोबारा मां बनना चाहती हैं उन्हें आगे चलकर दिक्कत हो सकती है। यहीं नहीं सिजेरियन डिलिवरी में मिसकैरेज और प्लेसेंटा प्रीविया जैसे जोखिम का खतरा होता है। इसके अलावा एक अध्ययन में नॉर्मल डिलिवरी की तुलना में सिजेरियन डिलिवरी से बच्चा पैदा करने वाली महिलाओं पर लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभाव की जांच की गई। इस शोध में पाया गया कि सिजेरियन डिलिवरी से पैदा हुए बच्चों में सात साल की उम्र तक अस्खमा और पांच वर्ष की उम्र तक मोटापे का खतरा अधिक होता है। यहीं कारण है कि डॉक्टरों का सिजेरियन डिलिवरी को लेकर कहना है कि इसे जरूरत पड़ने पर ही करवाएं।