प्रेग्नेंसी के दौरान शिशु गर्भ में लगातार सक्रिय रहता है। कई बार महिलाओं को लगता है कि शिशु लात मार रहा है। शिशु के गर्भाशय में सक्रिय होने से उसकी पुजिशन में बदलाव होता रहता है। लेबर का वक्त नजदीक आने पर वह अपने आपको डिलिवरी की पुजिशन में ले आता है लेकिन, कई बार लेबर शुरू होने पर भी शिशु की पुजिशन में बदलाव नहीं होता है। आज हम इस आर्टिकल में शिशु की पुजिशन्स के बारे में बताएंगे।
शिशु की बर्थ पुजिशन
शिशु की बर्थ पुजिशन: ब्रीच पुजिशन
ब्रीच पुजिशन वह स्थिति है जब गर्भ में बच्चा अपनी स्थिति के उलट घूम जाता है। इस स्थिति में बच्चे का सिर पेल्विक की तरफ होता है और पैर गर्भाशय की मुंह की तरफ। वहीं, सामान्य पुजिशन में बच्चे का सिर गर्भाशय के मुंह की तरफ और पैर पेल्विक की तरफ होते हैं।
हालांकि, डिलिवरी से पहले ज्यादातर बच्चे गर्भ में अपने आप डिलिवरी के अनुकूल स्थिति में आ जाते हैं। दूसरी तरफ, ब्रीच पुजिशन मां और बच्चे दोनों के लिए कई समस्याएं खड़ी कर सकती है। हालांकि, ब्रीच पुजिशन को तीन वर्गों में बांटा जाता है। गर्भ में शिशु की अवस्था के मुताबिक इन पुजिशन्स को तय किया जाता है।
शिशु की बर्थ पुजिशन: कंप्लीट ब्रीच
कंप्लीट ब्रीच पुजिशन में शिशु के बटक प्वॉइंट्स बर्थ कैनाल की तरफ होते हैं। दोनों पैर घुटनों से मुड़े होते। पैरों की दिशा बटक प्वॉइंट के ऊपर की तरफ होती है। शिशु के कंप्लीट ब्रीच पोजिशन में होने से अंबिलिकल कॉर्ड का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति में कॉर्ड शिशु के सिर से पहले गर्भाशय ग्रीवा में जा सकती है। इससे शिशु के चोटिल होने की संभावना रहती है।
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शिशु की बर्थ पुजिशन: फ्रेंक ब्रीच पुजिशन
फ्रेंक ब्रीच पुजिशन में शिशु के बटक प्वॉइंट बर्थ कैनाल की तरफ रहते हैं। दोनों पैर ऊपर की तरफ सीधे होते हैं। शिशु के दोनों पैर उसके सिर को छू रहे होते हैं। इस स्थिति में वजायनल डिलिवरी कराना मुश्किल हो सकता है।
फुटलिंग ब्रीच पुजिशन
फुटलिंग ब्रीच पुजिशन में शिशु के बटक्स नीचे की तरफ होते हैं। उसका एक पैर बर्थ कैनाल की तरफ होता है और मुड़ा होता है। इससे अंबिलिकल कॉर्ड (गर्भनाल) के प्रोलैप्स होने का खतरा रहता है। अंबिलिकल कॉर्ड के प्रोलैप्स होने से शिशु तक ऑक्सिजन और ब्लड की सप्लाई रुक जाती है।
अंबिलिकल कॉर्ड पोजिशन
आम बोलचाल की भाषा में इसे गर्भनाल पुजिशन भी कहा जाता है। इस स्थिति में गर्भनाल की अधिक लंबाई होने की वजह से वह शिशु के सिर से पहले वजायना में आ जाती है। इस दौरान यह कंधे या सिर से सट सकती है। ऐसा होने पर इस पर दबाव पड़ता है, जिससे अंबिलिकल कॉर्ड का प्रोलैप्स होने का खतरा रहता है। दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर स्थित सपरा क्लीनिक की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर एसके सपरा ने कहा, ‘गर्भ में शिशु के ज्यादा सक्रिय रहने से वह बार-बार अपनी पुजिशन बदलता है। इससे कई बार अंबिलिकल कॉर्ड का खतरा पैदा हो सकता है। इस स्थिति को अंबिलिकल कॉर्ड पुजिशन के नाम से जाना जाता है। इसमें शिशु के सिर से पहले अंबिलिकल कॉर्ड वजायना से बाहर आ जाती है।’
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ऑक्सिपुट ट्रांसवर्स (Occiput transverse) पुजिशन
इस पुजिशन में शिशु का सिर वजायना की तरफ तो होता है लेकिन, उसकी चिन (chin) चेस्ट से ना चिपकर ऊपर की तरफ उठी रहती है। कई बार इसकी जांच करने पर पता चलता है कि शिशु के कंधे या बाजु वजायना में आ सकते हैं। इस स्थिति में शिशु के सिर से पहले वजायना में गर्भनाल आ जाती है। डिलिवरी कराते वक्त इसके फटने का खतरा रहता है। इस स्थिति में डॉक्टर तत्काल सिजेरियन डिलिवरी कर सकते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में उचित सपोर्ट के साथ हांथों से ही शिशु की पोजिशन को ठीक कर दिया जाता है।
बच्चे की बर्थ पुजिशन: ऑक्सिपुट पोस्टीरियर (Occiput posterior) पुजिशन
शिशु के ऑक्सिपुट पोस्टीरियर पुजिशन में शिशु का सिर वजायना की तरफ होता है लेकिन, उसका मुंह पेट के सामने की तरफ होता है। डिलिवरी की पहली स्टेज में ज्यादातर बच्चे इस पुजिशन में होते हैं। डिलिवरी के वक्त वह अपने आप अपनी पुजिशन बदल लेते हैं। इस पुजिशन को ‘फेस अप’ पुजिशन के नाम से जाना जाता है। शिशु के इस पुजिशन में रहने से डिलिवरी का समय लंबा खिंच सकता है। कई मामलों में यह पेरीनियम को क्षति भी पहुंचाता है।
बच्चे की बर्थ पुजिशन: ऑक्सिपुट एंटीरियर पुजिशन
इस पुजिशन में शिशु का सिर तो नीचे की तरफ रहता है लेकिन, उसकी दिशा बर्थ कैनाल की तरफ नहीं रहती है। इस पुजिशन में शिशु की चिन ऊपर की तरफ उठ जाती है। शिशु के सिर की दिशा बर्थ कैनाल की तरफ ना होने से उसे वजायना से बाहर आने में दिक्कत होती है। इस पुजिशन के दौरान शिशु का चेहरा पेल्विक की तरफ होता है।
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एक्सटर्नल सिफैलिक वर्जन (External cephalic version)
डॉक्टर के अनुसार यदि उसे 37 हफ्तों के बाद यदि शिशु की पुजिशन ठीक नहीं होती है तो उसे एक्सटर्नल सिफैलिक वर्जन दिया जाता है। इस तकनीक में बिना किसी ऑपरेशन के शिशु को बाहर से ही उसकी उसकी पोजिशन ठीक की जाती है। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर इसमें अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करता है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान शिशु की दिल की धड़कन पर पैनी निगाह बनाए रखी जाती है।
एक जमाने में जब वैज्ञानिक तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी तब यह तकनीक ज्यादा चलन में हुआ करती थी। उस वक्त की मिडवाइफ भी इस तकनीक को अपनाया करती थीं लेकिन, वर्तमान समय में इसकी कमी है, जिसके चलते पुजिशन ठीक ना होने पर सिजेरियन डिलिवरी की जाती है।
बच्चे की बर्थ पुजिशन: शिशु की पुजिशन ठीक करने के कुछ अन्य तरीके
- बैठकर पेल्विक को आगे की तरफ टिल्ट करें।
- एक्सरसाइज करें या बर्थ बॉल पर बैठकर कुछ समय गुजारें
- बैठते वक्त हमेशा ध्यान रखें की आपके हिप्स घुटनों से ऊंचे हों।
- यदि आप ऑफिस में अधिकतर समय कुर्सी पर बैठकर गुजारती हैं तो आपको बीच में उठकर थोड़ा चलना फिरना चाहिए।
- कार में बैठते वक्त नीचे की तरफ एक तकिया रखें। कमर के निचले हिस्से को आगे की तरफ टिल्ट करें।
- बैठते वक्त कुछ समय तक अपने हाथों को घुटनों पर रखें। ऐसा दिन में कई बार करें, जिससे शिशु को एंटीरियर पुजिशन में मूव करने में मदद मिलेगी।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से इस बारे में जानकारी जरूर प्राप्त करें।
नोट: इस प्रकार की टिप्स हमेशा कारगर साबित नहीं होती हैं। यदि लेबर के शुरू होने पर आपका शिशु पोस्टीरियर पुजिशन में तो इसके पीछे पेल्विक का आकार एक बड़ा कारण हो सकता है। उपरोक्त किसी भी तरीके को अजमाने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें। बेहतर होगा कि शिशु की बर्थ पुजिशन के बारे में कोई भी शंका होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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