आम बोलचाल की भाषा में इसे गर्भनाल पुजिशन भी कहा जाता है। इस स्थिति में गर्भनाल की अधिक लंबाई होने की वजह से वह शिशु के सिर से पहले वजायना में आ जाती है। इस दौरान यह कंधे या सिर से सट सकती है। ऐसा होने पर इस पर दबाव पड़ता है, जिससे अंबिलिकल कॉर्ड का प्रोलैप्स होने का खतरा रहता है। दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर स्थित सपरा क्लीनिक की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर एसके सपरा ने कहा, ‘गर्भ में शिशु के ज्यादा सक्रिय रहने से वह बार-बार अपनी पुजिशन बदलता है। इससे कई बार अंबिलिकल कॉर्ड का खतरा पैदा हो सकता है। इस स्थिति को अंबिलिकल कॉर्ड पुजिशन के नाम से जाना जाता है। इसमें शिशु के सिर से पहले अंबिलिकल कॉर्ड वजायना से बाहर आ जाती है।’
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ऑक्सिपुट ट्रांसवर्स (Occiput transverse) पुजिशन
इस पुजिशन में शिशु का सिर वजायना की तरफ तो होता है लेकिन, उसकी चिन (chin) चेस्ट से ना चिपकर ऊपर की तरफ उठी रहती है। कई बार इसकी जांच करने पर पता चलता है कि शिशु के कंधे या बाजु वजायना में आ सकते हैं। इस स्थिति में शिशु के सिर से पहले वजायना में गर्भनाल आ जाती है। डिलिवरी कराते वक्त इसके फटने का खतरा रहता है। इस स्थिति में डॉक्टर तत्काल सिजेरियन डिलिवरी कर सकते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में उचित सपोर्ट के साथ हांथों से ही शिशु की पोजिशन को ठीक कर दिया जाता है।
बच्चे की बर्थ पुजिशन: ऑक्सिपुट पोस्टीरियर (Occiput posterior) पुजिशन
शिशु के ऑक्सिपुट पोस्टीरियर पुजिशन में शिशु का सिर वजायना की तरफ होता है लेकिन, उसका मुंह पेट के सामने की तरफ होता है। डिलिवरी की पहली स्टेज में ज्यादातर बच्चे इस पुजिशन में होते हैं। डिलिवरी के वक्त वह अपने आप अपनी पुजिशन बदल लेते हैं। इस पुजिशन को ‘फेस अप’ पुजिशन के नाम से जाना जाता है। शिशु के इस पुजिशन में रहने से डिलिवरी का समय लंबा खिंच सकता है। कई मामलों में यह पेरीनियम को क्षति भी पहुंचाता है।
बच्चे की बर्थ पुजिशन: ऑक्सिपुट एंटीरियर पुजिशन
इस पुजिशन में शिशु का सिर तो नीचे की तरफ रहता है लेकिन, उसकी दिशा बर्थ कैनाल की तरफ नहीं रहती है। इस पुजिशन में शिशु की चिन ऊपर की तरफ उठ जाती है। शिशु के सिर की दिशा बर्थ कैनाल की तरफ ना होने से उसे वजायना से बाहर आने में दिक्कत होती है। इस पुजिशन के दौरान शिशु का चेहरा पेल्विक की तरफ होता है।
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एक्सटर्नल सिफैलिक वर्जन (External cephalic version)
डॉक्टर के अनुसार यदि उसे 37 हफ्तों के बाद यदि शिशु की पुजिशन ठीक नहीं होती है तो उसे एक्सटर्नल सिफैलिक वर्जन दिया जाता है। इस तकनीक में बिना किसी ऑपरेशन के शिशु को बाहर से ही उसकी उसकी पोजिशन ठीक की जाती है। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर इसमें अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करता है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान शिशु की दिल की धड़कन पर पैनी निगाह बनाए रखी जाती है।
एक जमाने में जब वैज्ञानिक तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी तब यह तकनीक ज्यादा चलन में हुआ करती थी। उस वक्त की मिडवाइफ भी इस तकनीक को अपनाया करती थीं लेकिन, वर्तमान समय में इसकी कमी है, जिसके चलते पुजिशन ठीक ना होने पर सिजेरियन डिलिवरी की जाती है।