एपिसीओटॉमी की प्रक्रिया महिलाओं के लिए आसानी के साथ-साथ परेशानी भी लेकर आती है। एपिसीओटॉमी के करीब दो से तीन हफ्ते महिलाओं के लिए दर्द भरे होते हैं। कुछ महिलाओं का घाव दो से तीन हफ्ते में ठीक हो जाता है, वहीं कुछ महिलाओं को डिलिवरी के बाद इंफेक्शन की समस्या से भी गुजरना पड़ सकता है। एपिसीओटॉमी की जटिलताएं मुख्य रूप से टिशू में खिंचाव, सेक्स के दौरान दर्द की समस्या, घाव के आसपास सूजन, इंफेक्शन की समस्या और स्थिति बिगड़ने पर दोबारा ऑपरेशन की संभावना भी हो सकती है। एपिसीओटॉमी की जटिलताएं से कैसे निजात पा सकते हैं और यह पूरी प्रक्रिया क्या है आइए जानते हैं।
एपिसीओटॉमी (Episiotomy) की प्रक्रिया
- अगर महिला को वजायनल डिलिवरी और एपिसीओटॉमी हुई है तो डॉक्टर बच्चे के जन्म के एक घंटे के अंदर ही घाव को स्टिच कर देगा। एपिसीओटॉमी के बाद थोड़ी ब्लीडिंग भी होती है, लेकिन स्टिचिंग के बाद ब्लीडिंग बंद हो जाती है। अगर स्टीचिंग के बाद भी ब्लीडिंग बंद नहीं होती है तो डॉक्टर दोबारा ड्रेसिंग कर सकता है।
- एपिसीओटॉमी के कारण महिला को दर्द का सामना करना पड़ता है। पेन और समस्या करीब दो से तीन हफ्ते तक रहती है।
- एपिसीओटॉमी के बाद रेगुलर पेनकिलर खाना बहुत जरूरी होता है। अगर दिक्कत हो रही है तो घाव की जगह बर्फ लगाई जा सकती है। बर्फ को एक कपड़े में बांधकर घाव में लगाने से राहत मिलती है। बर्फ को डायरेक्ट घाव पर नहीं लगाना चाहिए।
एपीसीओटॉमी (Episiotomy) की शुरुआत कब हुई?
1921 में पहली बार फीटल हेड को किसी भी प्रकार के ट्रॉमा से बचाने के लिए एपीसीओटॉमी की शुरुआत की गई थी। एपीसीओटॉमी की एक बार शुरुआत हो जाने के बाद इसका निरंतर प्रयोग किया जाने लगा। इसके साथ जुड़े लाभ ने इसे पॉपुलर बना दिया। यह प्रक्रिया नवजात के लिए भी फायदेमंद थी, जैसे एस्फिक्सिया( asphyxia), क्रेनियल ट्रॉमा, सेरेब्रल ब्लीडिंग, मानसिक मंदता (mental retardation), कंधे के डिस्टोसिया आदि बच्चे को प्रभावित नहीं करते हैं। आज के समय में एपीसीओटॉमी की फ्रीक्वेंसी बहुत बढ़ गई है।
और पढ़ें : प्रेग्नेंसी के दौरान क्यों होता है यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस? ऐसे समझें
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं
- घाव के आसपास स्कार टिशू डेवलप हो जाते हैं, जिसकी वजह से खिंचाव और दर्द महसूस हो सकता है। स्कार टिशू की वजह से सेक्स के दौरान भी दर्द महसूस हो सकता है। अगर सेक्स के समय दर्द महसूस होता है तो आपका डॉक्टर एक सर्जरी की राय दे सकता है। इस सर्जरी को फैन्टोंस प्रोसीजर (Fenton’s procedure) कहते हैं। प्रोसीजर के दौरान सर्जन टिशू को ट्रिम और क्लीन करके री स्टिच कर सकता है।
- घाव के आसपास का एरिया लाल हो जाने के साथ ही दर्द भी होता है। ऐसे में सूजन भी आ सकती है। अगर घाव के आसपास पस पड़ जाती है तो इंफेक्शन होने के चांसेस हो सकते हैं। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसे एपिसीओटॉमी की जटिलताएं कहा जा सकता है।
- अगर घाव ठीक से नहीं भरा है तो डॉक्टर से संपर्क करने की जरूरत पड़ सकती है। इसके लिए दोबारा ऑपरेशन किया जा सकता है। ये भी एपिसीओटॉमी की जटिलताएं हैं।
कुछ महिलाओं में एपिसीओटॉमी के बाद बड़ा टीयर हो जाता है जो बॉवेल मूमेंट को भी प्रभावित कर सकता है।
एपीसीओटॉमी की जरूरत क्यों पड़ती है?
- जब बच्चा समस्या में फंस जाए तो तुरंत एपीसीओटॉमी करनी पड़ती है।
- बच्चे का सिर अधिक बड़ा होने पर।
- जब फॉरसेप्स या वैक्यूम असिस्टेड डिलिवरी चाहिए हो।
- अगर बच्चा ब्रीच पुजिशन में हो और डिलिवरी के समय किसी भी तरह का कॉम्प्लिकेशन न हो।
- लेबर पेन के दौरान जब मां ठीक से पुश नहीं कर पा रही हो तब एपीसीओटॉमी की जरूरत पड़ती है।
और पढ़ें : सरोगेट मां की भावनाओं को ऐसे समझें, जुड़ सकती है बच्चे से फीलिंग
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं: हीलिंग प्रॉसेस के दौरान क्या कर सकते हैं?
- एपिसीओटॉमी के बाद महिलाओं में हीलिंग प्रॉसेस तेजी से होना चाहिए। हीलिंग प्रॉसेस को हेल्प करने के लिए कुछ उपाय अपनाएं जा सकते हैं।
- जब डिलिवरी के बाद कंफर्टेबल महसूस हो, पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज करनी चाहिए।
- पेरिनियम के आसपास हल्के गुनगुने पानी से सिंकाई करनी चाहिए। यूरिन पास करने के बाद भी गुनगुने पानी से सफाई जरूर कर लें। फिर आसपास के हिस्से को अच्छे से सुखा लें।
- हाई फाइबर वाले खाने का सेवन करना चाहिए ताकि कब्ज की समस्या न हो। कब्ज की समस्या होने पर स्टूल करते समय अधिक दर्द होगा।
- अगर आप चाहे तो वैली कुशन का उपयोग कर सकते हैं। ऐसा करने से स्टिचेज में कम भार पड़ेगा।
- अपनी सैनेटरी टॉवल को चार घंटे के बाद चेंज करना सही रहेगा।
- दिन में तीन बार पेरीनियम एरिया को क्लीन करें।
और पढ़ें : सेकेंड बेबी के लिए खुद को कैसे करेंगी प्रिपेयर?
पेरिनियम का प्रभावित भाग
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं डिलिवरी के दौरान होने वाले टीयर पर निर्भर करती हैं। ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि महिला के पेरिनियम का कौन सा भाग प्रभावित हुआ है।
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं : फर्स्ट डिग्री टियर
फर्स्ट डिग्री टियर औमतौर पर छोटा सा कट होता है। ये कट बिना किसी ट्रीटमेंट के कुछ समय बाद ठीक हो जाता है।
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं : सेकेंड डिग्री टियर
सेकेंड डिग्री टियर गहराई से लगाया जाता है। ये पेरिनियम की मसल्स को इफेक्ट करता है। साथ ही स्किन को भी प्रभावित करता है। इसमे स्टिचेस की जरूरत पड़ती है ताकि घाव जल्दी ठीक हो जाए।
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं : थर्ड डिग्री टियर
थर्ड डिग्री टियर वजायना और पेरिनियम की वॉल से होते हुए एनल तक पहुंचता है। एनल स्फिंक्टर (anal sphincter) दो रिंग शेप्ड मसल्स से मिलकर बना होता है जो बाॅवेल को क्लोज रखता है। एक्सटरनल स्फिंक्टर कफ और छींक के समय एक्सट्रा प्रोटक्शन देता है। जबकि इंटरनल स्फिंक्टर ऑटोमैटिकली क्लोज रहता है। थर्ड डिग्री टियर से दोनो स्फिंक्ट प्रभावित हो सकते हैं। थर्ड डिग्री टीयर को 3a, 3b, 3c ग्रेड दिया जाता है। ये ग्रेड स्फिंक्ट को प्रभावित करने के आधार पर दिया जाता है।
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं : फोर्थ डिग्री टियर
फोर्थ डिग्री टियर में फोर्थ डिग्री टीयर एनल स्फिंक्टर(anal sphincter) के साथ ही बैक पैसेज की लाइनिंग और लोअर पार्ट बाउल यानी रैक्टम भी इफेक्ट हो सकता है।
और पढ़ें : अगर आप चाह रही हैं कंसीव करना तो सेक्स करते समय न करें ये गलतियां
एपिसीओटॉमी की जटिलताएं किसी भी महिला को परेशान कर सकती हैं, लेकिन वजायनल डिलिवरी के लिए ये जरूरी प्रक्रिया है। सी-सेक्शन हो या फिर वजायनल डिलिवरी, दोनों में ही जटिलताएं होती हैं। अगर आप भी प्रेग्नेंट हैं और एपिसीओटॉमी की जटिलताएं जानना चाहती हैं तो एक बार अपने डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।
उपरोक्त दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अगर आपको एपिसीओटॉमी की जटिलताएं के बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से जानकारी लें। आप डॉक्टर से नॉर्मल डिलिवरी या सी-सेक्शन के बारे में भी जानकारी ले सकते हैं।
[embed-health-tool-due-date]