डिलिवरी के दौरान एपीसीओटॉमी की जरूरत बच्चे का सिर बाहर निकालने के दौरान पड़ती है। डिलिवरी के दौरान एपीसीओटॉमी को एक प्रक्रिया के तौर पर आपनाया जाता है जिसमें वजायना और एनस के बीच के टिशू में चीरा लगाया जाता है। एपीसीओटॉमी नॉर्मल या वजायनल डिलिवरी के दौरान की जाती है। एपीसीओटॉमी का सामान्य तौर पर नैचुरल टीयरिंग से बचाने के लिए उपयोग होता है। इस प्रक्रिया से पेल्विक मसल्स और कनेक्टिव टिशू को सपोर्ट मिलता है। अगर आप नॉर्मल डिलिवरी के बारे में सोच रही हैं तो डिलिवरी के दौरान एपीसीओटॉमी कैसे की जाती है और इसकी जरूरत क्यों पड़ती है, इस बारे में जरूर पढे़ें।
एपीसीओटॉमी की शुरुआत कब हुई?
1921 में पहली बार फीटल हेड को किसी भी प्रकार के ट्रॉमा से बचाने के लिए एपीसीओटॉमी की शुरुआत की गई थी। एपीसीओटॉमी की एक बार शुरुआत हो जाने के बाद इसका निरंतर प्रयोग किया जाने लगा। इसके साथ जुड़े लाभ ने इसे पॉपुलर बना दिया। यह प्रक्रिया नवजात के लिए भी फायदेमंद थी, जैसे एस्फिक्सिया (asphyxia), क्रेनियल ट्रॉमा, सेरेब्रल ब्लीडिंग, मानसिक मंदता (mental retardation), कंधे के डिस्टोसिया आदि बच्चे को प्रभावित नहीं करते हैं। आज के समय में एपीसीओटॉमी की फ्रीक्वेंसी बहुत बढ़ गई है।
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एपीसीओटॉमी की जरूरत क्यों पड़ती है?
- जब बच्चा समस्या में फंस जाए तो तुरंत एपीसीओटॉमी करनी पड़ती है।
- बच्चे का सिर अधिक बड़ा होने पर।
- जब मां की फॉरसेप्स या वैक्यूम असिस्टेड डिलिवरी चाहिए हो।
- अगर बच्चा ब्रीच पुजिशन में हो और डिलिवरी के समय किसी भी तरह का कॉम्प्लिकेशन न हो।
- लेबर पेन के दौरान जब मां ठीक से पुश नहीं कर पा रही हो तब एपीसीओटॉमी की जरूरत पड़ती है।
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डिलिवरी के दौरान किस तरह काम करती है एपीसीओटॉमी?
डिलिवरी के दौरान एपीसीओटॉमी करने से पहले टिशूज में इंजेक्शन लगाकर सुन्न किया जाता है। प्रक्रिया के दौरान महिला को दर्द महसूस नहीं होता है। प्रक्रिया के कुछ समय बाद दर्द का एहसास हो सकता है। डिलिवरी के दौरान किस तरह की परिस्थितियां हैं, उसी के अनुसार चीरा लगाया जाता है।
एपीसीओटॉमी के प्रकार:
मिडलाइन इंसीजन ( Midline (median) incision)
मिडलाइन इंसीजन वर्टिकल किया जाता है। मिडलाइन इनसीजन आसानी से रिपेयर हो जाता है, लेकिन इसका एनल एरिया तक फैलने का खतरा अधिक होता है। ऐसा होने पर एनस के आसापास के टिशूज को नुकसान पहुंच सकता है।
मेडियोलेटरल इंसीजन (Mediolateral incision)
मेडियोलेटर इंसीजन को अलग एंगल से किया जाता है। एनस के आसपास के टिशूज को इस इंसीजन से कम खतरा रहता है, लेकिन ये चीरा पेनफुल रहता है। साथ ही इसके ठीक होने में भी ज्यादा समय लग सकता है।
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एपीसीओटॉमी के दुष्प्रभाव
एपीसीओटॉमी से जहां एक ओर वजायन डिलिवरी आसान हो जाती है, वहीं दूसरी ओर महिला के ऊपर इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी दिखाई दे सकते हैं।
इंफेक्शन की समस्या
एपीसीओटॉमी के बाद महिलाओं में इंफेक्शन की समस्या हो सकती है। कई बार महिलाओं को यूरिन इंफेक्शन की समस्या से भी जूझना पड़ता है। यूरिन इंफेक्शन के दौरान पेट में दर्द, बार-बार वॉशरूम जाना आदि महसूस हो सकता है।
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वजायना के आसपास चोट
एपीसीओटॉमी के दुष्प्रभाव में ये समस्या आम है। एपीसीओटॉमी के बाद महिला को स्टूल करने या फिर यूरिन पास करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ये समस्या दो से तीन हफ्ते तक रह सकती है।
सूजन
वजायनल डिलिवरी के समय चीरा लगाए जाने के कारण आसपास के हिस्सों में सूजन की समस्या हो सकती है। डिलिवरी के कुछ समय बाद तक सूजन रह सकती है।
ब्लीडिंग
चीरा लगाने के बाद अगर टांके लगाए जाते हैं। अगर घाव में कोई दिक्कत हो गई या फिर घाव ठीक नहीं हुआ तो ब्लीडिंग की समस्या भी हो सकती है।
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घाव भरने में देरी होना
आमतौर पर घाव दो से तीन हफ्ते में भर जाते हैं, लेकिन कुछ महिलाओं को एपीसीओटॉमी के तीन से चार हफ्ते बाद भी दर्द महसूस होता है।
सेक्स के समय समस्या
पेनफुल स्कारिंग के कारण सेक्स करते समय भी दर्द महसूस हो सकता है।
इनकॉन्टिनेंस की समस्या
महिलाओं को डिलिवरी के बाद यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस या फीकल इनकॉन्टिनेंस होने की संभावना रहती है। उन महिलाओं में फीकल इनकॉन्टिनेंस होने की संभावना ज्यादा रहती है जिन्हें एनस में फोर्थ डिग्री टियर हो। जब नॉर्मल डिलिवरी के दौरान बच्चा आसानी से नहीं निकलता है तो डॉक्टर छोटा सा कट लगाते हैं। इसके बावजूद बच्चा नहीं निकल रहा है तो फोर्थ डिग्री टियर यानी लंबा कट लगाने की जरूरत पड़ती है। ये कट वजायना और एनस के बीच में लगाया जाता है। जिन महिलाओं को ये कट लगाया जाता है, उन्हें फीकल इनकॉन्टिनेंस यानी जरा सा दबाव पड़ने पर स्टूल होने की संभावना रहती है।
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घाव कब होता है ठीक?
डिलिवरी के दौरान एपीसीओटॉमी को रिपेयर करने के लिए टांके लगाए जाते हैं। ये टांके काटने वाले नहीं होते हैं। ये कुछ समय बाद अपने आप ही हील हो जाते हैं। इसके दर्द से छुटकारा पाने के लिए ओवर द काउंटर मेडिसिन का यूज किया जा सकता है। पेन रिलीवर क्रीम या फिर बीटाडाइन को गुनगुने पानी में घोल कर सिकाई करने से भी राहत मिलती है। हो सकता है कि घाव वाली जगह से पस निकले या फिर बुखार आ जाए। ये इंफेक्शन के लक्षण हो सकते हैं।ऐसी स्थिति में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर इंफेक्शन नहीं हुआ है तो घाव को ठीक होने में एक से दो सप्ताह लग सकते हैं।
एपीसीओटॉमी की हेल्प से बच्चे की डिलिवरी आसान हो जाती है, वहीं दूसरी ओर एपीसीओटॉमी के अपने रिस्क भी होते हैं। ऐसे में डॉक्टर ही इस बात का सही निर्णय ले सकते हैं कि आपको एपीसीओटॉमी की जरूरत पड़ेगी या नहीं। इसलिए इस बारे में डॉक्टर से जानकारी प्राप्त करना उचित रहेगा। डॉक्टर डिलिवरी के समय परिस्थियों के अनुसार ही कोई भी कदम उठाते हैं।
बच्चे की डिलिवरी वजायनल होगी या फिर सी-सेक्शन से, इस बारे में पहले से कहना मुश्किल होता है। अगर आप प्रेग्नेंट हैं और इस विषय में जानना चाहती हैं तो बेहतर होगा कि आप एक बार डॉक्टर से परामर्श करें। किसी भी महिला को डिलिवरी से पहले नॉर्मल डिलिवरी और सी-सेक्शन दोनों की जानकारी होना जरूरी है। ताकि वो इसके लिए खुद को तैयार कर सके। पहले से जानकारी होने पर माइंड प्रिपेयर हो जाता है और डर और अशंकाएं भी कम रहती हैं।
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